ऐसा रहा साल 2018ः एसपी-बीएसपी के साथ आने से उत्तर प्रदेश के राजनैतिक परिदृश्य में हुए दूरगामी बदलाव
बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह भी कह चुके हैं कि एसपी और बीएसपी के साथ आने से पार्टी को उत्तर प्रदेश में नुकसान होगा। बीजेपी यह सुनिश्चित करने की भरपूर कोशिश कर रही है कि ऐसा ना हो। लेकिन एसपी के नेताओं का कहना है कि वह इस बार बीजेपी को हराने के लिए तैयार हैं।
राजनीति में एक साल का समय लंबा होता है। उत्तर प्रदेश में 2017 से 2018 के दौरान राजनैतिक परिदृश्य में दूरगामी बदलाव हुए। इनमें एक बदलाव तो ऐसा रहा जिसने बीजेपी और इसके कार्यकर्ताओं को स्तब्ध कर दिया। यह बदलाव 2 जून 1995 को समाजवादी पार्टी के कार्यकर्ताओं द्वारा एक गेस्ट हाऊस में जानलेवा हमले का शिकार बनने के बाद इस पार्टी की कट्टर दुश्मन बनीं बीएसपी नेता मायावती द्वारा पुरानी बातों को भुलाकर एसपी के साथ हाथ मिलाने के रूप में सामने आया।
इसे गुजरने की कगार पर खड़े इस साल की उत्तर प्रदेश की सबसे बड़ी राजनैतिक घटना माना गया, क्योंकि इसने दशकों से एक-दूसरे की दुश्मन जैसी रहीं बीएसपी और एसपी के बीच मतभेदों को कम करने की कोशिश की। बीजेपी को दोनों पार्टी के बीच मतभेदों का हमेशा फायदा मिलता रहा था और पार्टी हमेशा यह सोचती थी कि दोनों पार्टियां कभी एकसाथ नहीं होंगी। इसी वजह से बीजेपी की सीट में चुनाव दर चुनाव इजाफा होता चला गया। लेकिन, इनके साथ आने के साथ ही गोरखपुर, कैराना और फूलपुर की संसदीय सीट उपचुनाव में बीजेपी के हाथ से निकल गई।
मायावती और अखिलेश यादव प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से अपनी राजनैतिक दूरी की वजह से एक-दूसरे से जुड़े हैं। इसके अलावा दोनों 2019 में मोदी के दोबारा सत्ता में वापसी को लेकर भी आशंकित हैं।
उत्तर प्रदेश के राजनीतिक पर्यवेक्षकों का कहना है कि यह क्षेत्रीय छत्रपों के लिए एकमात्र विकल्प है, क्योंकि इन्होंने पहले खुद को बचाने के लिए चुनाव लड़ा और सफलता नहीं मिली। 2014 के लोकसभा चुनाव में जब मोदी को यहां जबरदस्त जीत मिली थी, तो बीएसपी को एक भी सीट प्राप्त नहीं हुई थी और एसपी को केवल 4 सीट प्राप्त हुई थी। वहीं विधानसभा चुनाव में एसपी को केवल 50 सीटें मिलीं और बीएसपी 19 सीटों पर सिकुड़ गई।
दोनों पार्टियों के बीच गठजोड़ से उन्हें मतदाताओं का साथ भी मिला, एसपी को गोरखपुर, फुलपूर और इसकी समर्थित राष्ट्रीय लोकदल को कैराना उप-चुनाव में जीत हासिल हुई। उपचुनाव में हाथ आजमाने के बाद, दोनों पार्टी 2019 लोकसभा चुनाव के लिए सीट बंटवारे के समझौते पर कमोबेश तैयार हैं। अखिलेश यादव जानते हैं कि मायावती को अपने पाले में बनाए रखना आसान काम नहीं है, लेकिन उनका रवैया अपने पिता मुलायम सिंह यादव से अलग है और वह बीएसपी से गठबंधन के लिए थोड़े-बहुत समझौते के लिए भी तैयार हैं।
यहां तक की बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह भी कह चुके हैं कि एसपी और बीएसपी के साथ आने से पार्टी को उत्तर प्रदेश में हानि होगी। बीजेपी कैंप के शीर्ष नेता हालांकि ऐसा न हो, यह सुनिश्चित करने के लिए भरपूर कोशिश कर रहे हैं। एसपी के पुष्ट सूत्रों ने कहा कि “प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) से लेकर सीबीआई तक सभी काम में लगे हुए हैं, लेकिन हम इसबार बीजेपी को हराने के लिए तैयार हैं।”
एक अन्य बड़े घटनाक्रम में एसपी से शिवपाल सिंह यादव का अलग होकर प्रगतिशील समाजवादी पार्टी बनाना भी रहा। इस पार्टी के प्रवक्ता दीपक मिश्रा ने कहा कि बेहद कम समय में हमारी पार्टी का सांगठनिक ढांचा बन गया है और हम 2019 के आम चुनाव को लेकर उत्साहित हैं। वहीं कुंडा के बाहुबली विधायक राजा भैया द्वारा जनसत्ता नाम से अपनी पार्टी बनाना भी एक बड़ा राजनैतिक घटनाक्रम रहा। वह सवर्णो के पक्ष में एससी-एसटी कानून का विरोध कर रहे हैं।
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