क्या मोदी सरकार में पाठ्य-पुस्तकों से विज्ञान की पढ़ाई बाहर हो जाएगी? निशंक के बयानों से शिक्षाविदों में डर
रमेश पोखरियाल निशंक का दावा है कि अणु की खोज चरक ऋषि ने की और हिंदू धर्मग्रंथों ने गुरुत्वाकर्षण का ज्ञान दिया। अपनी डिग्री और जन्मतिथि को लेकर विवादित निशंक की इन बातों से शिक्षाविदों को डर है कि आधुनिक विज्ञान की पढ़ाई पाठ्य पुस्तकों से बाहर हो सकती है।
फिल्म ‘मिशन मंगल’ ने विज्ञान के क्षेत्र में मोदी सरकार की उपलब्धियों के बखान में कोई कसर नहीं छोड़ी है। लेकिन वास्तविक धरातल पर मोदी सरकार में विज्ञान की सार्थकता की उलटबांसियों पर नित नए विवाद पैदा हो रहे हैं। इधर, केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री रमेश पोखरियाल निशंक शिक्षा की दशा-दिशा के बजाय खुद ही खबर बन रहे हैं। विज्ञान और टेक्नोलॉजी को लेकर वह जिस तरह की बातें कर रहे हैं उससे शिक्षाविदों को डर है कि उनके चलते आधुनिक विज्ञान की पढ़ाई पाठ्य पुस्तकों से बाहर हो सकती है।
पिछले दिनों आईआईटी मुंबई के 57वें दीक्षांत समारोह में उन्होंने यह दावा करके कि अणु-परमाणु की खोज चरक ऋषि ने की थी, विवाद को बढ़ा दिया है। बाद में उनके मंत्रालय को प्रेस बयान जारी कर सफाई देनी पड़ी कि मंत्री का कथन नासा में कार्यरत वैज्ञानिक रिच बिक्स के शोध पत्र पर आधारित है। इसके चंद दिनों बाद निशंक ने न्यूटन के गुरुत्वाकर्षण की खोज का श्रेय हिंदू धर्मग्रंथों को दे डाला। विशेषज्ञ मानते हैं कि देश के शिक्षा मंत्री की देश के सर्वोच्च टेक्नोलॉजी संस्थानों में अनाप-शनाप भाषणों से दुनिया की नजरों में देश की और किरकिरी हो सकती है।
निशंक पर मोदी सरकार की नई शिक्षा नीति को लागू करने की चुनौती है। इससे पहले वह 2014 में संसद में चर्चा के दौरान यह दावा करके सुर्खियों में आए थे कि पूरी दुनिया में विज्ञान से ऊपर ज्योतिष है और ज्योतिष के सामने विज्ञान बौना है। आम लोगों ने उनके इस तरह के बयानों को गंभीरता से लेना तब शुरू किया जब वह मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल में मानव संसाधन विकास मंत्री बने।
ज्ञात रहे कि 2014 में लोकसभा में उसी चर्चा के क्रम में निशंक यह दावा करने से नहीं चूके थे कि आज हम परमाणु परीक्षण की बात करते हैं, तो कनाड एक लाख बरस पहले इस तरह का परीक्षण कर चुके थे। प्रधानमंत्री मोदी का भी उन्होंने यह कहकर पक्का अनुसरण किया था कि विश्व को प्लास्टिक सर्जरी का कौशल भारत की देन है। दुनिया में सबसे पहले गणेशजी की प्लास्टिक सर्जरी हुई थी, जब उनके सिर की जगह हाथी का सिर लगा दिया था।
निशंक का बचपन से ही संघ की छत्रछाया में लालन-पालन हुआ है। उन्होंने आरएसएस द्वारा संचालित शिशु मंदिरों में भी कई सालों तक पढ़ाया। राम मंदिर आंदोलन और बाद में अलग पर्वतीय राज्य के आंदोलन के दौर में बीजेपी का तेजी से पहाड़ों में भी उदय हुआ। इसी दौर में निशंक का भी बीजेपी में कद बढ़ता चला गया। वह सबसे पहले 1991 में तब चर्चा में आए, जब मात्र 34 बरस की उम्र में उन्होंने उत्तर प्रदेश के तत्कालीन उच्च शिक्षा मंत्री और कद्दावर नेता डॉ. शिवानंद नौटियाल को कर्णप्रयाग विधानसभा सीट से परास्त कर दिया था। वह 1997 में दोबारा विधायक बने और उन्हें कल्याण सिंह मंत्रिमंडल में पर्वतीय विकास, संस्कृतिव धर्मस्व मंत्री बनाया गया।
साल 2001 में उत्तराखंड राज्य बना, तो उस समय पौड़ी गढ़वाल से तीसरी बार सांसद बने मेजर जनरल भुवनचंद्र खंडूड़ी, भगत सिंह कोश्यारी और नित्यानंद स्वामी के मुकाबले नई पीढ़ी के निशंक की मुख्यमंत्री पद पर दावेदारी को बीजेपी आलाकमान ने ज्यादा तवज्जो नहीं दी। निशंक को राज्य बनने के बाद बनी अंतरिम सरकार में कैबिनेट मंत्री पद पर ही संतोष करना पड़ा। 2007 में नारायण दत्त तिवारी वाली कांग्रेस सरकार के हटने और जनरल खंडूड़ी के नेतृत्व में बीजेपी सरकार बनने के बाद भी निशंक को नंबर दो की कुर्सी पर ही संतोष करना पड़ा।
उस दौर में जनरल खंडूड़ी के मुख्यमंत्री बनने के बाद से ही असंतुष्ट गतिविधियों को हवा देकर भगत सिंह कोश्यारी प्रमुख सूत्रधार बन गए। कोश्यारी ने नवंबर 2009 में जनरल खंडूड़ी को कुर्सी से हटाने में अहम भूमिका निभाई। कोश्यारी-खंडूड़ी की लड़ाई में निशंक बाजी मार ले गए। 2009 में निशंक मुख्यमंत्री तो बन गए, लेकिन चंद महीनों बाद ही कई तरह के विवादों में उलझते चले गए।
साल 2010 के आरंभ में हरिद्वार के कुंभ मेले में करोड़ों रुपये के निर्माण कार्यों पर सीएजी ने अपनी रिपोर्ट में कहा था कि 43 करोड़ रुपये अनधिकृत खर्चों में स्वाहा कर दिए गए थे। इतना ही नहीं 180.07 करोड़ रुपये के 54 कार्य योजनाओं पर काम पैसा लेकर अधूरा छोड़ दिया गया। उसके साथ ही ऋषिकेश में गंगा के किनारे स्टूजिया कैमिकल फैक्टरी के बंद होने के बाद कई दर्जनों एकड़ भूमि के लैंड यूज बदलवाने और राज्य में बड़े पैमाने पर सरकारी तबादलों में खुलेआम भ्रष्टाचार के बोलबाले और लघु पनबिजली परियोजनाओं को हरी झंडी देने और बाद में निरस्त करने की विवादास्पद घपलों के जाल में घिरने के बाद निशंक ऐसे फंसते चले गए कि पार्टी के भीतर ही उन्हें कुर्सी से हटाने की खुली मुहिम शुरू हो गई।
अपने खिलाफ असंतोष को दबाने के लिए निशंक ने कुछ पार्टी जनों को अलग-थलग करने और उन्हें सरकारी दायित्व से हटाने के कदम भी उठाए, लेकिन ये कदम उल्टे पड़ गए। खंडूड़ी और कोश्यारी ने जब हाथ मिला लिया, तो निशंक को मुख्यमंत्री पद से हटाने का काम बीजेपी आलाकमान के लिए सरल हो गया। यह वह दौर था जब भ्रष्टाचार के खिलाफ अन्ना आंदोलन चरम पर था, तो उत्तराखंड में भाजपाइयों का आंदोलन अपने ही मुख्यमंत्री निशंक को कुर्सी से हटाने की मुहिम में तब्दील हो गया था।
सियासत की महत्वाकांक्षाओं के साथ ही निशंक की डिग्रियों, डॉक्टरेट और जन्मतिथियों के विवाद हमेशा ही सुर्खियों में आते रहे हैं। प्रशासनिक अनुभव, ईमानदारी से सरकार चलाने और सरकार के फैसलों में पारदर्शिता के मामलों में जनरल खंडूड़ी और निशंक एकदम विपरीत ध्रुवों पर खड़े माने जाते रहे हैं। दूसरी ओर, आज भी निशंक के कई करीबी लोग मानते हैं कि बीजेपी के भीतर-बाहर विरोधियों ने उनके प्रति गलत धारणा की ऐसी दीवार खड़ी कर दी है जिसका साया आज भी उनका पीछा नहीं छोड़ पाता।
(ये लेखक के अपने विचार हैं)
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