राहुल पर वंशवाद का आरोप लगाने से पहले क्या अपने गिरेबान में झांक कर देखेगी बीजेपी !
राहुल गांधी को राजनीति में कथित वंशवाद के लिए कोसना बीजेपी के पाखंड को ही उजागर करता है। बीजेपी में ऐसे नेताओं की फेहरिस्त बहुत लंबी है जिनका परिवार राजनीति से जुड़ा है।
बीजेपी इस बात को लेकर खूब हो हल्ला कर रही है कि कांग्रेस में अंदरूनी लोकतंत्र नहीं है। लेकिन बीजेपी अगर अपने गिरेबान में झांक कर देखे तो पता चलेगा कि बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्षों का चुनाव बिना किसी वोटिंग के ही होता रहा है। वैसे जानकारी के लिए यह बताना जरूरी है कि कांग्रेस अध्यक्ष का चुनाव देश के चुनाव आयोग की देखरेख में हो रहा है। और, इसके बाद किसी पारदर्शिता और विश्वसनीयता की बात करने वाले मुंह ताकते रह जाएंगे। वहीं दूसरी तरफ बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह का मामला है, जिनके चुनाव आयोग के साथ उलझे रिश्ते जगजाहिर हैं।
जुलाई 2014 में बीजेपी का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने से कुछ महीने पहले ही अमित शाह को चुनाव आयोग ने इस बात पर फटकार लगाई थी और एक संप्रदाय विशेष के खिलाफ भड़काऊ भाषण देने के कारण उनकी रैलियों पर रोक लगा दी थी। शाह से पहले बीजेपी के अध्यक्ष राजनाथ सिंह थे, जिन्होंने केंद्र में मंत्री बनने के बाद पार्टी अध्यक्ष पद छोड़ दिया था। इस तरह जुलाई 2014 में अमित शाह बिना किसी विरोध या प्रतिद्धंदी के बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष वैसे ही चुने गए थे, जैसा कि राहुल गांधी के मामले में होने की संभावना है।
जहां तक वंशवाद की बात है बीजेपी में भी वंशवाद की फेहरिस्त बहुत लंबी है। केंद्रीय मंत्री राजनाथ सिंह के पुत्र उत्तर प्रदेश में बीजेपी के विधायक हैं, स्वर्गीय गोपीनाथ मुंडे की बेटी पंकजा मुंडे महाराष्ट्र में मंत्री हैं, यशवंत सिन्हा के पुत्र जयंत सिन्हा केंद्र में मंत्री हैं, हिमाचल प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल के पुत्र अनुराग ठाकुर सांसद हैं। इसके अलावा भी बीजेपी नेताओं के कई बेटा-बेटी इसी परंपरा के तहत पार्टी या सरकार में शामिल हैं।
वैसे भी ध्यान से देखें तो भारतीय राजनीति में वंशवाद हमेशा से कायम रहा है। बीजेपी के अलावा तमिलनाडु की द्रविड़ मुन्नेत्र कषगम यानी डीएमके, बिहार की राजेडी, बीजेपी की सहयोगी अकाली दल और शिवसेना जैसी पार्टियां एक ही परिवार के हाथों में रही हैं। ऐसे में सिर्फ राहुल गांधी को वंशवाद के लिए निशाना बनाना बीजेपी के पाखंड को ही दर्शाता है।
भारतीय राजनीति में वंशवाद के इतिहास पर आम आदमी का नजरिया साफ करने के लिए नीचे लिखे हुए तथ्यों पर गौर करना काफी होगा :
- जिस कांग्रेस पार्टी पर वंशवाद के आरोप लगते हैं, उसके पहले अध्यक्ष गांधी नेहरू परिवार से नहीं थे।1885 में स्थापित कांग्रेस पार्टी के पहले अध्यक्ष डब्ल्यू सी बनर्जी थे।
- जिस समय कांग्रेस पार्टी की स्थापना हुई, पंडित जवाहरलाल नेहरू के पिता मोतीलाल नेहरू की उम्र महज 24 साल की थी।
- मोतीलाल नेहरू अमृतसर अधिवेशन – 1919 में पहली बार कांग्रेस के अध्यक्ष बने। 1928 में कोलकाता अधिवेशन में वो दूसरी बार कांग्रेस के अध्यक्ष बने। दूसरी बार जब वो अध्यक्ष बने तब उनकी उम्र 67 साल की थी। तीन साल बाद 70 साल की उम्र में उनका निधन हो गया।
- स्थापना के 34 साल बाद गांधी नेहरू परिवार का कोई भी सदस्य कांग्रेस का अध्यक्ष नहीं बना।
- पंडित जवाहर लाल नेहरू लाहौर अधिवेशन में 1929 में पहली बार कांग्रेस के अध्यक्ष बने। छह साल बाद 1936 में दोबारा वो कांग्रेस के अध्यक्ष चुने गए। तीसरी बार वो फैजपुर अधिवेश में 1937 में वो कांग्रेस के अध्यक्ष निर्वाचित हुए.
- जब भारत को स्वतंत्रता मिली तब जे बी कृपलानी कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष थे न कि नेहरू गांधी परिवार का कोई सदस्य।
- स्वतंत्रता के बाद से कांग्रेस पार्टी के 31 अध्यक्ष निर्वाचित हुए। इनमें से केवल चार – पंडित जवाहरलाल नेहरू, इंदिरा गांधी, राजीव गांधी और सोनिया गांधी ही, गांधी परिवार से ताल्लुक रखते है। यानी कांग्रेस के 29 अध्यक्ष गांधी परिवार से नहीं थे।
- पिछले 28 साल से गांधी नेहरू परिवार का कोई सदस्य प्रधानमंत्री नहीं बना, जबकि इन 28 सालों में कांग्रेस ने 1991 से लेकर 1996 तक और 2004 से लेकर 2014 तक देश पर राज किया।
- कांग्रेस की तुलना में देखा जाए तो बीजेपी के 37 साल के इतिहास में केवल लाल कृष्ण आडवाणी ने 13 साल तक पार्टी पर राज किया।
- पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी छह साल और मुरली मनोहर जोशी दो साल तक बीजेपी के अध्यक्ष रहे। वर्तमान गृहमंत्री राजनाथ सिंह पांच साल तक बीजेपी के अध्यक्ष थे।
- आंतरिक लोकतंत्र के पैमाने पर कम्यूनिस्ट पार्टियों का इतिहास भी उजला नहीं। 1964 में स्थापित कम्यूनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया - मार्क्सवादी (सीपीएम) में अब तक केवल पांच महासचिव ही बने। पी सुंदरैया करीब 14 साल तक पार्टी के सचिव रहे। ईएमएस नंबूदरीपाद 14 साल तक महासचिव रहे। उनके बाद कॉमरेड हरकिशन सिंह सुरजीत 13 साल तक सीपीएम के महासचिव रहे। प्रकाश करात 10 साल तक और अब सीताराम येचुरी सीपीएम के महासचिव हैं।
- कम्यूनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया (सीपीआई) के 92 साल के इतिहास में कुछ मुट्ठी भर लोग ही पार्टी शीर्ष तक पहुंचे। बी टी रणदिवे, इंद्रजीत गुप्ता, ए बी वर्धन जैसे नेता दशकों तक पार्टी के शीर्ष पर विराजमान रहे। वर्तमान में सुधाकर रेड्डी पार्टी के महासचिव है।
- मुलायम सिंह ने 1992 में समाजवादी पार्टी की स्थापना की और तब से लेकर पिछले साल तक वो पार्टी के अध्यक्ष रहे। उत्तर प्रदेश चुनाव के ठीक पहले उनके बेटे अखिलेश ने उनसे सत्ता छीन कर पार्टी के अध्यक्ष कब्जाया
- लालू प्रसाद यादव ने 1997 में राष्ट्रीय जनता दल की स्थापना की और तब से लेकर वो अब तक पार्टी के अध्यक्ष हैं
- कांशीराम ने 1984 में बहुजन समाज पार्टी - बीएसपी की स्थापना की थी। तब से लेकर वो 1990 तक पार्टी के प्रमुख रहे। उसके बाद मायावती ने अनौपचारिक तौर पर पार्टी अध्यक्ष की हैसियत से काम किया। 2003 में उन्हें कांशीराम की उत्तराधिकारी घोषित किया गया. मायावती पिछले 27 साल से बीसपी सुप्रीम के तौर पर काम कर रही हैं।
- बाल ठाकरे ने 1966 में शिवसेना की स्थपना की. तब से लेकर अपने निधन तक वो पार्टी के प्रमुख बने रहे. 2013 में उन्होंने अपने बेटे उद्धव ठाकरे को अपना उत्तराधिकारी घोषित किया. इसी मुद्दे पर उनके भतीजे राज ठाकरे शिवसेना से अलग हो गए।
- द्रविण राजनीति करने वाले दलों का हाल भी वंशवाद और आंतरिक लोकतंत्र के पैमाने पर कुछ ठीक नहीं. 1959 में स्थापित द्रविण मुनेत्र कडगम (डीएमके) के प्रमुख 94 साल के एम करुणानिधि हैं. वो पार्टी की स्थापना से लेकर अभी तक पार्टी के शीर्ष पर हैं।
- तमिलनाडु की पूर्व मुख्यमंत्री जे जयललिता ने 27 साल तक अपनी पार्टी – ऑल इंडिया द्रविण मुनेत्र कडगम (एआईएडीएमके) पर राज किया. एआईएडीएमके की स्थापना 1972 में हुई थी।
- ओडीशा में राज कर रही बीजू जनता दल का रिकॉर्ड आंतरिक लोकतंत्र के मामले में बेहद खराब है. 1997 में स्थापित बीजू जनता दल के अध्यक्ष नवीन पटनायक हैं. वो पार्टी की स्थापना से लेकर अब तक पार्टी के प्रमुख हैं।
- कश्मीर पर शासन करने वाली दो अहम पार्टियां पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) की स्थापना 1999 में हुई थी. तब से लेकर अब तक, पिछले 30 साल से पार्टी पर मुफ्ती मोहम्मद सईद और उनकी बेटी महबूबा मुफ्ती का ही राज है।
- इसी तरह से 1932 में स्थापित नेशनल कॉन्फ्रेंस में पिछले 85 साल से अबद्दुल्ला परिवार का ही कब्जा है।
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