एमपॉक्स से बचाव के लिए क्या करें क्या ना करें, बीएचयू के डॉक्टर से समझिए
बता दें कि इस वायरस की खोज मूल रूप से 1958 में डेनमार्क में अनुसंधान के लिए रखे गये बंदरों में हुई थी। इंसानों में इसका पहला मामला 1970 में कांगो में दर्ज किया गया था।
मध्य अफ्रीका में दिखाई पहली बार पनपने वाला एमपॉक्स वायरस अब पूरी दुनिया में पैर पसारने लगा है। इस वायरस को सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिए एक गंभीर खतरा माना जा रहा है। एमपॉक्स को लेकर भारत भी अलर्ट मोड पर है।
राजधानी दिल्ली में सरकार के द्वारा अस्पतालों में एमपॉक्स मरीजों के लिए बेड आरक्षित किए गए हैं। वहीं, इन सबके बीच एमपॉक्स वायरस से बचाव के लिए बीएचयू के माइक्रोबायोलॉजी विभाग के डॉक्टर गोपाल नाथ ने बचाव के तरीके सुझाए हैं। आईएएनएस से बातचीत के दौरान, उन्होंने कहा है कि एमपॉक्स के बढ़ते खतरे को लेकर भारत पूरी तरह अलर्ट मोड पर है। हमारी स्वास्थ्य विभाग की टीम भी पूरी तरह अलर्ट है। उन्होंने कहा कि एमपॉक्स का वायरस निकालकर अगर उसे कमजोर कर दिया जाए तो वह वैक्सीन के तौर पर कारगर साबित होगा। उन्होंने कहा कि किसी भी वैक्सीन का यही रूल होता है।
उन्होंने आगे कहा कि वैक्सीन बनी हुई है। दो तरह के वेरिएशन हैं। अगर वह लगाएंगे तो बचाव होगा। डॉक्टर गोपाल नाथ ने कहा कि काउ पॉक्स और एमपॉक्स के बीच के लक्षण सामान्य जैसे ही होते हैं। बस थोड़ा सा अंतर होता है। जैसे कि काउ पॉक्स में पस बन जाता है। वायरस के लिए कोई दवा नहीं होती है। वायरस के लिए वैक्सीन दी जाती है। वायरस को निकालकर उसे थोड़ा कमजोर कर इंजेक्शन के माध्यम से दिया जाता है, जिससे शरीर में एंटीबॉडी बन जाए, एंटीबॉडी बनने से वह वायरस से लड़ने में कारगर होता है।
बता दें कि इस वायरस की खोज मूल रूप से 1958 में डेनमार्क में अनुसंधान के लिए रखे गये बंदरों में हुई थी। इंसानों में इसका पहला मामला 1970 में कांगो में दर्ज किया गया था। सन 1980 में चेचक के खात्मे के बाद, एमपॉक्स मध्य, पूर्वी और पश्चिमी अफ्रीका में उभरने लगा।
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, कांगो में मंकीपॉक्स के कारण कम से कम 610 लोगों की मौत हो गई है। सरकार ने यहां के लोगों से सुरक्षात्मक उपायों को अपनाने के बारे में कहा है। इसके साथ ही उन्होंने लोगों से टीकाकरण करवाने को कहा है। देश में अब तक 17,801 संदिग्ध मामले सामने आए हैं।
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