उत्तराखंड: प्रवासी मजदूरों के पास न पैसे हैं और न राशन, आश्वासन पर कैसे रहेंगे जिंदा?

कोटद्वार में होटल, रेस्टोरेंट से लेकर सरकारी और निजी कार्यालय सब बंद हो चुके हैं। फैक्ट्रियों में भी लॉकडाउन के कारण ताला लटक चुका है और इसलिए इन फैक्ट्रियों में काम करने वाला श्रमिक तबका इन दिनों बड़े संकट से गुजर रहा है।

फोटो: सोशल मीडिया  
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नवजीवन डेस्क

कोरोना नाम की ऐसी महामारी आई जिसने पूरे देश को घरों में बंद कर दिया है। लॉकडाउन लगाना जरूरी भी था मजबूरी भी। लेकिन इसकी वजह से लाखों दिहाड़ी मजदूरों की रोजी-रोटी छिन गई। ये लोग सैकड़ों किलोमीटर की यात्रा कर अपने घरों को पैदल ही लौटने पर मजबूर हुए। शुरुआती दिनों में घरों को पैदल लौटते दिहाड़ी मजदूरों की तस्वीरों से देश भर में सहानुभूति का जो सागर उमड़ा था उसकी वजह से सरकारें, स्थानीय प्रशासन और सामाजिक-धार्मिक संस्थाएं, लोग इनकी मदद के लिए देश भर में आगे आए हैं।

लेकिन कई इलाके ऐसे भी हैं जहां लोग अब भी मदद के इंतजार में हैं। उत्तराखंड के कोटद्वार भी ऐसा ही इलाका है जहां की स्थिति ठीक नहीं है। यहां की फैक्ट्रियों में काम करने वाले बाहर के मजदूर न तो घर लौट सकते हैं और न ही उन्हें यहां खाना नसीब हो रहा है। गढ़वाल के द्वार कोटद्वार में होटल, रेस्टोरेंट से लेकर सरकारी और निजी कार्यालय सब बंद हो चुके हैं। फैक्ट्रियों में भी लॉकडाउन के कारण ताला लटक चुका है और इसलिए इन फैक्ट्रियों में काम करने वाला श्रमिक तबका इन दिनों बड़े संकट से गुजर रहा है।

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न्यूज 18 की खबर के मुताबकि कोटद्वार के जशोरधपुर इलाके में सैकड़ों मजदूरों के लिए दो वक्त की रोटी जुगाड़ करना मुश्किल हो रहा है। दरअसल यहां इस्पात बनाने वाली फैक्ट्रियों में बड़ी संख्या में बिहार और यूपी के श्रमिक काम करते हैं, जो सामान्य दिनों में तो गुज़ारा कर लेते थे। अब लॉकडाउन के कारण बंद पड़ी फैक्ट्रियों के कारण आमदनी का ज़रिया बंद हो चुका है।

लॉकडाउन लागू होने के बाद से ही सरकार ने कंपनियों से कहा है कि किसी भी कर्मचारी का वेतन न काटा जाए। लेकिन यहां के फैक्ट्रियों के मालिक मजदूरों को वेतन नहीं दे रहे। कई फैक्ट्रियों में तो मजदूरों को दो महीने का वेतन नहीं मिला है। ऐसे में मजदूरों के पास खाने को पैसे नहीं है और न ही इन्हें किसी तरह की मदद मिल सकी है।


स्थानीय प्रशासन इस मामले में जांच की बात कहते हुए फैक्ट्री प्रबंधन को पिछला वेतन का भुगतान के निर्देश का भरोसा दे रहा है, लेकिन क्या यह समय जांच और आश्वासन का है? जब किसी को यह पता नहीं कि कब कौन कोरोना का शिकार हो जाएगा और भूखे मज़दूरों को इस महामारी से बड़ा डर भूख से मौत का लग रहा हो तो क्या सरकारी अधिकारियों के लिए अपनी कुर्सियां छोड़ हरकत में आने का समय नहीं है? और अगर यह समय अभी नहीं है तो फिर कब आएगा?

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