यूपी: योगी राज में बड़े पैमाने पर हो रहे पुलिस एनकाउंटर का सच
सूबे में बीजेपी सरकार के आने के बाद से अब तक 1900 से ज्यादा मुठभेड़ हो चुकी है और 41 लोग मारे जा चुके हैं। मगर जनता में जश्न का इक्का-दुक्का मामला ही सामने आया है।
2011 में जब सहारनपुर पुलिस ने एनकाउंटर में मुस्तुफा उर्फ़ कग्गा को मारा था तो भारी संख्या में भीड़ उसे देखने के लिए उमड़ पड़ी थी। दो लाख के इनामी कग्गा का जबरदस्त आतंक था। पुलिस मुठभेड़ में मारे जाने के समय उसने 7 कत्ल की सुपारी ली हुई थी। इसमें एक बड़े नेता का भी नाम था। 2015 में यहां एक और बड़ा एनकाउंटर राहुल खट्टा का हुआ। बागपत के खट्टा पर भी दो लाख का इनाम था। अलग-अलग समय पर इन दोनों की मौत के बाद जनता में खुशी का माहौल था और पुलिस की सराहना हुई। वे कुख्यात थे और उनका सचमुच आतंक था। इनके परिवार के लोगों ने भी इस मौत को चुपचाप सह लिया।
सूबे में बीजेपी सरकार के आने के बाद से अब तक 1900 से ज्यादा मुठभेड़ हो चुकी है और 41 लोग मारे जा चुके हैं। मगर जनता में जश्न का इक्का-दुक्का मामला ही सामने आया है। पुलिस अधिकारियों के कुछ सम्मान समारोह जरूर आयोजित हुए हैं, मगर इनमें भी सिर्फ खास लोगों ने शिरकत की है। इसकी क्या वजह हो सकती है? मुजफ्फरनगर के अधिवक्ता आज़म शम्सी कहते हैं, “यह जानना जरूरी है कि पुलिस ने जिन बदमाशों को मुठभेड़ में ढेर किया है उनके खिलाफ अंतिम बार मामला कब दर्ज किया गया? उनके पुराने मामलों और नए मामले में कितने समय का अंतर है? वे अपराध छोड़ चुके थे या सक्रिय थे?”
दरअसल, इन सवालों की अहमियत इसलिए बढ़ गई है क्योंकि पश्चिमी उत्तर प्रदेश में हुए कई एनकाउंटर में मारे गए बदमाशों के परिजनों ने अलग-अलग दावे किए हैं। मुजफ्फरनगर पुलिस और एसटीएफ की संयुक्त कार्रवाई में मारे गए तीतरवाड़ा के फुरकान (43) की बीवी नसरीन दावा करती हैं कि जब फुरकान 7 साल से जेल में बंद था तो वह डकैती कैसे कर सकता था ! इसी तरह का एक दूसरा एनकाउंटर मुजफ्फरनगर के ककरौली थाना क्षेत्र का है। यहां बागोवाली गांव के नदीम को ककरौली पुलिस ने ढेर कर दिया। नदीम (32) की चाची समरीन कहती हैं कि वह 8 साल बाद तिहाड़ जेल से वापस आया था। आने के बाद उसे एक मामूली मामले में फिर गिरफ्तार कर लिया गया और पुलिस ने बताया कि वह कचहरी में से फरार हो गया। इसके बाद पुलिस ने उसे मार दिया। इसी गांव के यूनुस कहते हैं कि इससे अच्छा तो वह जेल में ही था। फुरकान के मामले में भी यही बात हुई। उसके 5 और भाई भी जेल में बंद हैं। फुरकान के पिता मीरहसन (67) कहते हैं, "अच्छा है वह जेल में ही रहे। बाहर आएगा तो पुलिस मार देगी।”
वैसे कैराना में अफवाह यह भी है कि पुलिस ने खुद ही फुरकान को जेल से बाहर निकलवाया और बाद में यह एनकाउंटर कर दिया।
पुराने बदमाशों के मुठभेड़ की तीसरी घटना भोपा की है। इस मामले में सहारनपुर पुलिस फंस गई है। यहां रहने वाला जुल्फान (41) रिक्शा चलाता था। मोरना गांव में 17 फरवरी को सफेद रंग की एक बोलेरो गाड़ी में उसे जबरदस्ती बैठा लिया गया। स्थानीय लोगों ने इस पर शोर मचाया। जुल्फान के भाई गुलफाम ने मोरना के प्रधान शहजाद की मदद ली और डायल 100 को यह जानकारी दी।स्थानीय पुलिस चौकी में भी इसकी सूचना दी गई, मगर यहां रिपोर्ट दर्ज नही हुई। गुलफाम बताते हैं कि अगले दिन उन्हें व्हाट्सएप से पता चला कि जुल्फान सहारनपुर पुलिस के साथ हुई मुठभेड़ में घायल हो गया है और उसके पैर में गोली लगी है। गुलफाम हमें बताते हैं कि जुल्फान के खिलाफ 10 साल पहले का एक मुकदमा था, जिसमें वह बरी हो गया था। अब वह जेल में है और उसका एक पैर खराब हो गया है। उसका पैर कभी ठीक नही हो पाएग। पुलिस ने उसके घुटने के ठीक नीचे गोली मारी है। गुलफाम ने इसकी मानवाधिकार आयोग में शिकायत की है। गुलफाम कहते हैं कि पुलिस को लगता है कि उनसे गलती हो गई है उनके लोग समझौते के लिए प्रयास कर रहे हैं।
एनकाउंटर का अब तक का सबसे बड़ा विरोध नोएडा में हुआ है। यहां चिरचिटा गांव के सुमित गुर्जर के मुठभेड़ में मारे जाने ने राजनीतिक रूप अख्तियार कर लिया। लगातार प्रदर्शन हुए और गुर्जर समाज में भारी नाराजगी देखने को मिली। सपा नेता अतुल प्रधान इसके लिए जेल भी गये। सुमित के खिलाफ एक मुकदमा दर्ज था और उसकी उम्र सिर्फ 19 साल थी। हालांकि, उसके गांव में एक दूसरा सुमित है जिस पर 6 मुकदमें दर्ज हैं। सुमित के परिजनों का दावा था कि पुलिस ने बिना पड़ताल किये एक नाम होने की वजह से सुमित को मार दिया। मुठभेड़ में मारने वाले इंस्पेक्टर जितेंद्र सिंह को इसके बाद प्रमोशन मिला और वे सीओ बन गए।
खास बात यह भी है कि फुरकान को मुठभेड़ में ढेर करने वाले बुढ़ाना के इंस्पेक्टर चमन सिंह चावड़ा और जान मोहम्मद को ढेर करने वाले खतौली के इंस्पेक्टर पीपी सिंह का भी प्रमोशन हो गया और वे भी सीओ बन गए।
सहारनपुर में पुलिस मुठभेड़ में मारे गए सलीम के मामले में अलग वाकया हो गया।उसके एनकाउंटर का श्रेय मुनेंद्र सिंह नाम के इंस्पेक्टर को मिला है। उन्हें शब्बीरपुर में दलित बनाम ठाकुर संघर्ष में लापरवाही बरतने के आरोप में सस्पेंड किया गया था। वे उस समय बड़गांव के प्रभारी थे। उन्हें पास के थाने देवबंद के इंस्पेक्टर रहे चमन सिंह अब सीओ बन गए हैं, मगर मुनेंद्र सिंह अभी इंस्पेक्टर ही हैं। उम्मीद है कि अब जल्दी ही उन्हें भी प्रमोशन मिल जाएगा। वैसे सलीम का एनकाउंटर भी तूल पकड़ रहा है। उसके परिजनों ने उसे फर्जी मुठभेड़ में मारने का आरोप लगाया है। ऐसा बताया गया कि सहरानपुर की सब्जी मंडी में यह मुठभेड़ हुई। वहां चौकीदार सहित कई अधिकारियों ने गोली की आवाज़ सुनने से इंकार किया है।
प्रमोशन की सबसे हैरतअंगेज कहानी ककरौली की है। 6 महीने पहले यहां अनिल सिंह बतौर थाना प्रभारी तैनात थे। तब वे सब इंस्पेक्टर थे और उन्हें दो स्टार मिला हुआ था। नदीम के मुठभेड़ में मारे के बाद उनको जानसठ कोतवाली का चार्ज दिया गया, जो सिर्फ 3 स्टार होने पर ही बनाया जाता है। वैसे अब अनिल कुमार सिंह का प्रमोशन हो गया है। एक आंकड़े के मुताबिक, अब तक 88 पुलिसकर्मियों को भी मुठभेड़ में गोली लगी है जिनमें ज्यादातर को गोली हाथ से छूकर निकल गई है। लगभग इतने ही बदमाशों को पैर में गोली लगी है, जिससे उनके पैर खराब हो गए हैं।
मेरठ जोन में सबसे ज्यादा मुठभेड़ हुई है और शनिवार को गाजियाबाद पहुंचे उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने एडीजीपी प्रशांत कुमार की तारीफ की है। एडीजीपी प्रशांत कुमार कहते हैं कि हम गोली का जवाब गोली से देते रहेंगे। हालांकि, यहां के कई बड़े बदमाश अदालत में आत्मसमर्पण कर जेल चले गए हैं। बिजनौर के आदित्य और मुजफ्फरनगर के रुचिन जाट एक-एक लाख के इनामी हैं, लेकिन उन्होंने अदालत में आत्मसमर्पण कर दिया।
मुजफ्फरनगर के सपा नेता साजिद हसन कहते हैं, “मुख्यमंत्री को यह बताना चाहिए कि उनकी पुलिस 19 साल के सुमित की छाती में और 10 हजार के इनामी नदीम के सिर में गोली मारती है, जबकि एक-एक लाख के इनामी आसानी से बच जाते है, ऐसा क्यों होता है?”
मुठभेड़ की इस होड़ में एक जिले की पुलिस दूसरे जिले की पुलिस से टकराव भी पाल रही है। मेरठ में सपा नेता बलन्दर और उसकी मां का कत्ल करने के आरोपी विकास जाट को जब मुजफ्फरनगर पुलिस ने मार दिया, तो मेरठ पुलिस कप्तान मंजिल सैनी ने नाराज होकर पूरी क्राइम ब्रांच टीम निलबिंत कर दी ।
इन मुठभेड़ों की एक और पर्दे के पीछे की कहानी यह है कि इनमें नये पुलिसकर्मी रुचि नहीं ले रहे हैं। ज्यादातर मुठभेड़ में एक जैसी ही टीम है, जो पहले भी मुठभेड़ों का अनुभव रखती है। उन्हें एनकाउंटर स्पेशलिस्ट कहा जाता है। यह एक महत्वपूर्ण बात है क्योंकि इससे पता चलता है कि मुठभेड़ 'अचानक' नहीं हो रही है।
मुठभेड़ में मारे गए कथित बदमाशों के परिजन मानवाधिकार आयोग के दरवाजे खटखटाने की तैयारी में जुटे हैं। कुछ ने ऐसा किया भी है। कुछ जगह पुलिस ने उन्हें अपने तरीके से रोकने की कोशिश भी की है। मानवाधिकार कार्यकर्ता राजीव यादव कहते हैं, "योगी सरकार हमेशा नहीं रहेगी। इन फर्जी मुठभेड़ों में शामिल रहे पुलिसकर्मियों को एक दिन पछताना होगा।”
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