यूपी: मिड डे मील से मुसीबत में गुरुजी, नमक-रोटी पर सस्पेंड, सब्जी-तरकारी दें तो हो जाएं कर्जदार
स्कूलों में मिड डे मील अनिवार्य है। लेकिन यूपी में इसके लिए पैसे देने में सरकार देरी करती है, ऐसे में अगर मिडडे मील न दिया जाए तो गुरुजी सस्पेंड और अगर मिडडे मील दें तो गुरुजी पर चढ़ रहा है मोटा कर्ज। यानी गुरुजी के लिए एक ओर कुआं है, दूसरी ओर खाई।
भगवान राम की नगरी अयोध्या के बीकापुर ब्लॉक के डीहवा प्राथमिक विद्यालय में बीते 28 सितंबर को मिड डे मील में नमक-रोटी परोसने का वीडियो वायरल हुआ तो जिलाधिकारी नीतीश कुमार ने प्रधानाध्यापिका एकता यादव को सस्पेंड कर दिया। वहीं, डीपीआरओ की तरफ से प्रधान अनिल सिंह को नोटिस दे दिया गया। अभी मामले की जांच चल रही है। लेकिन जिम्मेदार इससे बेपरवाह हैं कि स्कूल के पंजीकृत 200 बच्चों के भोजन के लिए अनाज है या नहीं? सब्जी, दूध, फल और सिलेंडर के खर्च का इंतजाम गुरुजी कैसे कर रहे हैं? रसोइयों को कितने महीने से मानदेय नहीं मिला? कन्वर्जन कॉस्ट, मतलब अनाज के अलावा बाकी खर्च मिल रहा है या नहीं?
हकीकत तो यही है कि योगी आदित्यनाथ राज में मिड डे मील व्यवस्था पूरी तरह बेपटरी हो गई है। दावा है कि प्रदेश के 1 लाख 68 हजार विद्यालयों के करीब 1 करोड़ 80 लाख बच्चों को दोपहर का भोजन स्कूल में ही मुहैया कराया जा रहा है। सूबे में गोरखपुर, लखनऊ, वाराणसी, कानपुर सरीखे वीआईपी जिलों के 5 फीसदी स्कूलों में मिड डे मील की व्यवस्था भले ही अक्षय पात्र के सामुदायिक किचन से हो रही है लेकिन अन्य हजारों स्कूलों में जुगाड़ से ही चूल्हा जल रहा है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी में उत्तर भारत की सबसे बड़ी रसोई से 148 स्कूलों के बच्चों के भोजन की व्यवस्था शुरू तो की गई, पर कुछ ही माह में इस व्यवस्था में भी खामियां आने लगी हैं। दरअसल, प्रदेश में मार्च के बाद स्कूलों को कन्वर्जन कॉस्ट नहीं मिला है। इसका इंतजाम शिक्षकों को अपनी जेब से करना पड़ रहा है। इससे हजारों गुरुजी करोड़ों रुपए के कर्जदार हो गए हैं। लेकिन शिक्षक मिड डे मील को लेकर अफसरों के निशाने पर हैं।
गाजीपुर के रेवतीपुर में बीएसए हेमंत राव ने बीते दिनों बच्चों के साथ बैठकर खाना खाया, तो उन्हें स्वाद नहीं मिला। नतीजतन, जिम्मेदार शिक्षक को निलबिंत कर दिया गया। लेकिन जब उनसे पूछा गया कि बिना कन्वर्जन कॉस्ट के बीते छह महीने से स्कूलों में चूल्हा कैसे जल रहा है, तो उनके पास कोई जवाब नहीं था। बीएसए शासन को पत्र लिखने की बात कहते हुए वहां से चले गए।
दरअसल, बच्चों को सेहतमंद करने के लिए मेन्यू बनाकर वाल राइटिंग तो कर दी गई लेकिन न तो दूध-फल के लिए रुपये का इंतजाम है, न तो सिलेंडर रीफिल कराने के लिए बजट। गोरखपुर के बेसिक शिक्षा अधिकारी ने कन्वर्जन कॉस्ट के लिए शासन से 42 करोड़ रुपये मांगे हैं। यही हाल प्रदेश के अन्य 74 जिलों का है। मिड डे मील के लिए प्राथमिक विद्यालय के प्रति बच्चे के हिसाब से औसतन 4.97 रुपये और उच्च प्राथमिक विद्यालय में 7.45 रुपये कन्वर्जन कॉस्ट का प्रावधान है। दाल, सोयाबीन, सब्जी, दूध, फल के साथ सिलेंडर रिफिल कराने का इंतजाम इसी रकम से करना होता है।
बीते एक अक्तूबर को योगी सरकार ने कन्वर्जन कॉस्ट में 9.6 प्रतिशत की बढ़ोतरी की है। लेकिन शिक्षक नेता ज्ञानेन्द्र ओझा का कहना है कि ढाई साल में सिलेंडर से लेकर तेल-सब्जी की कीमतों में दो गुने की बढ़ोतरी हो गई है। ऐसे में 9.6 फीसदी कन्वर्जन कास्ट में बढ़ोतरी मजाक है। मेरठ के एक स्कूल में शिक्षक रमेश त्यागी बताते हैं कि ‘100 छात्रों पर अनाज को छोड़कर अन्य इंतजाम कराने में 18,000 से 20,000 रुपये प्रति माह खर्च होते हैं। मार्च के बाद से कन्वर्जन कॉस्ट नहीं मिलने से दुकान पर 2 लाख से अधिक की उधारी हो गई है।’
सोचिए कि शिक्षक इतनी उधारी कैसे और क्यों करते हैं। सरकार से पैसे न मिलने के बावजूद उन्हें मिड डे मील की व्यवस्था इसलिए करनी पड़ती है कि न करें, तो उन्हें सस्पेंड तक हो जाना पड़ेगा। मिड डे मील के लिए सामान की खरीद वे स्थानीय या आसपास की दुकानों से करते हैं। ये दुकानदार जानते हैं कि सरकार जब पैसे देगी, तो उसे इन शिक्षकों से पैसे मिल जाएंगे क्योंकि शिक्षक सालों भर इस तरह सरकार से देरी से भुगतान झेलते रहते हैं। एक तरह से यह वर्षों से निरंतर चलने वाली प्रक्रिया है।
लेकिन मसला सिर्फ अनाज का हो, तो चलता है। कानपुर में तो बिना भुगतान भोजन ही नहीं, फल और दूध भी मेन्यू के मुताबिक बच्चों को देना पड़ रहा है। यहां की शिक्षिका जागृति श्रीवास्तव बताती हैं कि ‘फल के लिए प्रति छात्र 4 रुपये मिलते भी हैं लेकिन दूध के लिए कोई रकम नहीं मिलती है। वैसे, स्कूल में बच्चों की उपस्थिति भले ही 80 से 90 फीसदी से अधिक हो लेकिन विभाग विद्यालयों में अधिकतम उपस्थिति 60 फीसदी ही मानता है।’
कानपुर में कटरी, तिलसहरी, बैकुंठपुर, सोना आदि विद्यालयों में बच्चों की उपस्थिति 90 फीसदी से अधिक होने के बाद कन्वर्जन कॉस्ट का भुगतान 60 फीसदी उपस्थिति को आधार मानते हुए किया जाता है। कानपुर के बीएसए सुरजीत कुमार सिंह का कहना है कि ‘पूरे मामले को लेकर शासन में रिमांइडर भेजा गया है।’ एटा जिले के अलीगंज ब्लॉक में कन्वर्जन कॉस्ट नहीं मिलने से मिड डे मील बनना बंद हुआ तो शिक्षकों में आपस में विवाद हो गया। भोजन की रार में तीन शिक्षक निलंबित हो गए।
वर्तमान में प्राथमिक विद्यालय हिरदेपुर कुदेशिया के शिक्षक सुनीत चौहान को स्कूल का चार्ज मिला है। अब वह खुद के वेतन और पड़ोस की दुकान से उधार लेकर स्कूल के 162 बच्चों का पेट भर रहे हैं। सिद्धार्थनगर जिले में बांसी प्राथमिक विद्यालय की प्रधानाचार्य ज्योत्सना त्रिपाठी मिड डे मील का इंतजाम करने में 2 लाख से अधिक की कर्जदार हो गई हैं।
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