याद रहेगा न्यायपालिका का यह सबसे खराब दिन: जस्टिस कोलसे पाटिल

19 अप्रैल के दिन को देश की न्यायपालिका के इतिहास का सबसे बुरा दिन बताते हुए बॉम्बे हईकोर्ट के पूर्व जस्टिस बीजी कोलसे पाटिल ने कहा कि सच को छुपाया नहीं जा सकता और ये फैसला न्यापालिका पर कलंक है।

फोटोः सोशल मीडिया
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भाषा सिंह

देश की सबसे बड़ी अदालत सुप्रीम कोर्ट ने आज जज लोया की मौत के मामले में जाच की मांग के लिए दायर जनहित याचिका को खारिज कर दिया और कहा कि यह राजनीतिक रूप से प्रेरित थी। जज बीएच लोया सोहराबुद्दीन शेख के कथित एनकाउंटर मामले की सुनवाई कर रहे थे, जिसमें बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह भी आरोपी थे। जज लोया की 2014 में संदिग्ध परिस्थितियों में पुणे में आकस्मिक मौत हो गई थी, जिसे लेकर गंभीर सवाल उठे थे और पूरे मामले की निष्पक्ष जांच कराने के लिए बॉम्बे हाईकोर्ट और नागपुर की अदालत में जनहित याचिकाएं डाली गई थीं। इस मामले पर सुप्रीम कोर्ट ने केवल खुद सुनवाई करने का फैसला किया था। सुप्रीम कोर्ट के इस कदम का भी काफी विरोध हुआ था। इस विरोध के सबसे मुखर आवाजों में से एक बॉम्बे हाईकोर्ट से सेवानिवृत जस्टिस बीजी कोलसे पाटिल हैं। जज लोया की मौत को संदिग्ध बताने के साथ-साथ जस्टिस पाटिल उन व्यक्तियों में से हैं जिन्होंने खुल कर कहा कि उन्हें यह जानकारी मिली थी कि जज लोया को इस मामले में सरकार के पक्ष में फैसला देने के लिए 100 करोड़ रुपये ऑफर किए गए थे। उन्होंने ये बातें उस समय भी निर्भीकता से कहीं और आज भी दोहरा रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले पर नवजीवन के लिए जस्टिस बीजी कोलसे पाटिल से भाषा सिंह ने बातचीत की।

सुप्रीम कोर्ट ने जस्टिस लोया के मामले में फैसला सुनाया...

मुझे लगता है कि भारतीय न्यायपालिका के इतिहास में आज का दिन सबसे बुरे दिन के तौर पर याद किया जाएगा। मेरी समझ से ऐसा कोई भी नहीं कह सकता और न ही कहना चाहिए कि जस्टिस लोया की मौत प्राकृतिक थी। सारे दस्तावेज हैं, कम से कम उनकी जांच होनी चाहिए थी। मांग क्या थी, कि इस मौत की जांच हो। इसकी भी सुनवाई नहीं हो, तो कैसे।

जज लोया वाले मामले को लेकर सुप्रीम कोर्ट के कई जज भी लंबे समय से आवाज उठा रहे थे, फिर भी तमाम सवालों की अनदेखी क्यों की गई

देखिए, 12 जनवरी को सुप्रीम कोर्ट के चार जजों ने ऐतिहासिक काम किया। ऐसा भारत के इतिहास में पहले कभी नहीं हुआ था। उन्होंने प्रेस कॉन्फ्रेंस करके सीधे-सीधे बोला कि सुप्रीम कोर्ट में जो चल रहा है, वह सही नहीं है। उन्हें जस्टिस लोया वाले मामले में सुप्रीम कोर्ट के रवैये से नाराजगी थी। और तो और, 100 से ज्यादा सांसद राष्ट्रपति से मिले थे और कहा था कि उन्हें मुख्य न्यायधीश पर भरोसा नहीं है। यह अमित शाह से जुड़ा केस है, लिहाजा इसे लेकर ज्यादा पारदर्शिता बरतनी चाहिए थी।

आप लंबे समय से जज लोया की मौत से जुड़े दस्तावेजों को सामने ला रहे हैं, अब क्या करेंगे

देखिए दस्तावेज तो आज सामने हैं। तथ्य अपनी भाषा बोलेंगे। लोया की मौत की सूचना के लिए उनके घर आए फोन का समय, पोस्टमार्टम में दर्ज मोत के समय से काफी पहले है। उनके घर 5 बजे फोन आया कि जस्टिस लोया की मौत हुई है, लेकिन पोस्टमार्टम में मौत का समय 7.15 दर्ज है। पोस्टमार्टम और विसरा की रिपोर्टों में कोई तालमेल नहीं है। इतना गोलमाल है कि ये मामला दबाए नहीं दब रहा है। सच को छुपाया नहीं जा सकता। यह फैसला न्यापालिका पर कलंक है।

अब, आगे क्या

सच के साथ हम कल थे और आज भी हैं। आज जनता के पास दस्तावेज भी है। हमारे देश की जनता जिंदा है। उम्मीद है जैसे दलितों के मामले में सड़कों पर गुस्सा उतरा वैसा ही उतर सकता है। मैं सभी जजों को यही कहना चाहता हूं कि आज सीता मइया की तरह सबको अग्निपरीक्षा से गुजरना होगा।

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