विकास को हथियार बनाकर सत्ता में आए, पर करने लगे नफरत और मंदिर-मस्जिद की राजनीति: शरद यादव
इस समय सीबीआई, चुनाव आयोग, रिजर्व बैंक, सीवीसी और ईडी जैसी देश की तमाम संस्थाओं में कोहराम मचा हुआ है। हालात ऐसे कर दिये गए हैं कि ये संस्थाएं सारा काम छोड़कर सुप्रीम कोर्ट में लगी हुई हैं। सरकार का सारा तंत्र अब सुप्रीम कोर्ट के जरिये चल रहा है।
शरद यादव लोहियावादी परंपरा की राजनीति के उन खांटी नेताओं में से हैं जो अपनी साफगोई और खरी-खरी कहने के लिए जाने जाते हैं। जब बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने आरजेडी से गठबंधन खत्म करके बीजेपी और मोदी का दामन थामा तो उन्होंने नीतीश कुमार के साथ जाने के बजाय देश में सांप्रदायिक राजनीति और मोदी सरकार के खिलाफ लोहा लेने का रास्ता अख्तियार किया। जेडीयू छोड़ने के बाद उन्होंने लोकतांत्रिक जनता दल का गठन किया। वह विपक्ष की एकता को लेकर तो आश्वस्त हैं ही, साथ ही उनका कहना है कि हिंदी पट्टी में इस बार मोदी और उनकी पार्टी चारों खाने चित्त हो जाएगी। देश के ज्वलंत मुद्दों पर शरद यादव से भाषा सिंह ने बातचीत की।
आपने भारतीय राजनीति का लंबा दौर देखा है। वर्तमान दौर में जिस तरह की घटनाएं लगातार घट रही हैं, उससे साफ है कि लोकतंत्र पर गहरा खतरा है। राजनीति के इस दौर पर आपकी क्या राय है?
लोकतंत्र ही नहीं समूचे संविधान पर खतरा है। सारी संस्थाओं पर खतरा है। ऐसा खतरा देश पर पहले कभी नहीं रहा। यह समझने की बात है कि भारत का संविधान साझा संस्कृति का संविधान है। इसलिए उन्होंने इस पर इतना हमला बोल रखा है। यह अपने आप में अभूतपूर्व है कि इस समय तमाम संस्थाओं-सीबीआई, चुनाव आयोग, रिजर्व बैंक, सीवीसी, ईडी- में कोहराम मचा हुआ है। हालात ऐसे कर दिए गए हैं कि ये संस्थाएं सारा काम छोड़कर सुप्रीम कोर्ट में लगे हुए हैं। सरकार का सारा तंत्र अब सुप्रीम कोर्ट के जरिए हो गया है। सीबीआई का जो घटनाक्रम है, उससे साफ हो गया है कि स्थिति कितनी भयावह है। सीबीआई के दोनों वरिष्ठ ऑफिसर एक-दूसरे के खिलाफ अदालत में खड़े हैं। अब देखिए, अस्थाना को बचाने के लिए सारा तंत्र लगा हुआ है। लोग कह रहे हैं कि दोनों ही इनके द्वारा नियुक्त किए गए अधिकारी हैं। सोचने की बात यह है कि ये अधिकारी भी तो आखिर इंसान हैं और भारतीय नागरिक हैं। कब तक झेलेंगे ये लोग। इनका जमीर भी तो जागता है। मनीष कुमार सिन्हा के मामले में यही दिखाई दे रहा है। वह सुप्रीम कोर्ट में जाकर सारे खुलासे करने की हिम्मत कर रहे हैं। राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल के बारे में खुलकर बोल रहे हैं। सीधे-सीधे कह रहे हैं कि अस्थाना को बचाने के लिए पूरा पीएमओ, लॉ सेक्रेटरी, कैबिनेट सेक्रेटरी यानी सारी सरकार लगी हुई है। अब तो यह बात जनता के सामने है कि अगर उसे बचाने का काम पीएमओ कर रहा है, तो आखिर क्यों। सौ टके की बात है कि यह (अस्थाना) प्रधानमंत्री की आदमी है। एक अफसर को बचाने की इतनी चिंता क्यों है, वह आपके पापों का राज़दार है क्या? ऐसा पहले कभी हुआ है क्या, कभी नहीं।
विपक्षी दलों को सीबीआई का डंडा दिखाया जा रहा है, उन्हें धमकाया जा रहा है...
सत्ता और सत्ता के संस्थानों का बेजा इस्तेमाल करने में तो मोदी सरकार रिकॉर्ड बना रही है। तमाम विपक्षी दलों, उनके नेताओं को घेरने के लिए केंद्र सरकार ने अपने तमाम घोड़े छोड़ रखे हैं। पिछले साढ़े चार सालों का उनका यही कामकाज है, सबको डराना, धमकाना, खौफ का माहौल बनाना, विपक्ष को निपटाना। हाल के समय में यह ज्यादा बढ़ गया है।
आर्थिक मोर्चें पर इस सरकार के कामकाज को आप किस तरह आंकते हैं?
ये लोग अपने हिसाब से एजेंडा सेट करने में लगे हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अब सालाना करोड़ों रोजगार पैदा करने की बात नहीं करते। विदेशों से काला धन वापस लाने की बात नहीं करते। सबका साथ-सबका विकास करने वाला अपना जुमला भी याद नहीं करते। विकास की भी बात नहीं करते। वह नोटबंदी करते हैं। जीएसटी लगाते हैं और हमारी अर्थव्यवस्था को 10-15 साल पीछे धकेल देते हैं। आज हाल यह है देश का एक भी हिस्सा ऐसा नहीं है जो तंग और तबाह न हो। चाहे वह किसान हो, चाहे दलित हो, आदिवासी हो, चाहे दुकानदार हो, चाहे वह छोटा उद्योगपति हो...यानी ऐसा दौर तो कभी देखा ही नहीं। चंद मुट्ठी भर लोगों को छोड़कर बाकी जनता परेशान और नाराज है।
लेकिन फील गुड के बारे में तो मोदी सरकार का दावा लगातार बना हुआ है। उसका कहना है कि ईज ऑफ डुइंग बिजनेस में भारत तो चमक रहा है..
कौन कह रहा है कि फील गुड है? सारे देश में जनता इनके खिलाफ है। लोग सड़कों पर उतर रहे हैं। नाराजगी जाहिर कर रहे हैं। ईज ऑफ डुइंग बिजनेस कोई बांझ है क्या, जो कोई रोजगार नहीं पैदा कर रहा। बिजनेस क्या आसमान में हो रहा है, कि जमीन पर रोजगार-धंधा नहीं दिखाई दे रहा है। देश के युवा परेशान हैं, हताश हैं और देश के प्रधानमंत्री उन्हें पकौड़ा बेचने की सलाह दे रहे हैं। डिजिटल इंडिया करके उन्होंने गांव के आदमी को बर्बाद कर दिया है। वह पढ़ा-लिखा नहीं है, उसे आपने डिजिटल के फेर में फंसा दिया है। उसे लूटने के लिए एक और तंत्र बैठा दिया है। मनरेगा खत्म कर दिया है। दिन भर बस झूठ बोलते रहते हैं कि इतने मकान बना दिए, इतने चूल्हे बांट दिए। ये झूठों के सरदार हैं। गरीब के सब कार्यक्रम बंद हैं।
फिर भी ये चुनाव कैसे जीत जाते हैं?
चुनाव क्या है, चुनाव तो गुंडे भी जीत जाते हैं। अब तो ये लगातार उप-चुनाव हार रहे हैं। जनता अपना गुस्सा दिखा रही है। गोरखपुर से लेकर कैराना और कर्नाटक तक में अब अलटी-पलटी हो रही है। नोटबंदी का असर अब लोगों को समझ आ रहा है।
और नफरत की राजनीति भी करते हैं...
हमारी आजादी खून में नहाई हुई है। इसके लिए बहुत कुर्बानियां हुई। हमारा संविधान इसकी उपज है। यह जिंदा लोगों का और जिंदा लोगों के लिए संविधान है। यह किसी भजन-कीर्तन के लिए नहीं हैं। यह मंदिर-मस्जिद के लिए नहीं है। अब ये सिर्फ हिंदू-मुसलमान पर आ गए हैं और अब जब चुनाव लड़ने जाते हैं तो जातियों को आपस में लड़ाते हैं। ये आज भी भारत के बंटवारे का लाभ उठा रहे हैं। दरअसल, ये लोग बंटवारे की नाजायज औलादें हैं। आजादी की लड़ाई में तो ये लोग अंग्रेजों की गोद में बैठे हुए थे और आज भी नफरत को बोने-काटने में लगे हुए हैं।
राम मंदिर को एक बार फिर से बहुत ही आक्रामक तरीके से मुद्दा बनाया जा रहा है।
यह अब कुछ चलने वाला नहीं है। दिक्कत यह है कि ये लोग अब बेनकाब हो रहे हैं, साथ-ही साथ पूरी तरह से बेशर्म भी हो गए हैं। एक बात समझिए, काठ की हांडी एक ही बार चढ़ती है, बार-बार नहीं। ये तो इस पर कई बार खिचड़ी पका चुके हैं। जनता को बेवकूफ नहीं समझना चाहिए। जोर तो पूरा लगा ही रहे हैं, इनकी मजबूरी जो है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनकी सरकार को देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू से इतनी परेशानी क्यों है?
इन्हें बांटना और लड़वाना आता है, जोड़ना नहीं। सरदार पटेल और नेहरू के बीच जो लड़ाई करवा रहे हैं, वह शर्मनाक है। इससे पता चलता है कि ये लोग इतिहास में साथ-साथ रहे लोगों को भी लड़वाने से नहीं चूकते। दोनों नेताओं ने आजादी की लड़ाई साथ लड़ी, देश को साथ बनाया। सरकार पटेल किसानों के नेता थे, उन्हें गांधी जी ने सरदार का ओहदा किसान आंदोलन की वजह से दिया था। आज मोदी सरकार किसानों को तो तबाह कर रही है और उनकी चिंता करने के बजाय मूर्ति बना रही है। पटेल की सबसे पहली मूर्ति पटेल चौक पर है और उसे मोदी के सत्ता में आने का इंतजार करने की जरूरत नहीं पड़ी।
विपक्ष क्या वाकई एकजुट हो पाएगा?
मोदी सरकार जो कर रही है और जो हथकंडे वह अपना रही है, उससे विपक्ष की एकता को और मजबूती मिलेगी। वे सभी को डंडा मार रहे हैं। एक-एक करके लोग बाहर भी आ रहे हैं, कुछ हवा के बदलने का इंतजार कर रहे होंगे। 2019 के लिए हम तैयार हैं। कहीं कोई दुविधा नहीं है। यह एकता एक प्रक्रिया में बनी है। संविधान और सांझी विरासत को बचाने के लिए तमाम विपक्षी दल साथ आ गए हैं। संविधान बचाने के लिए पिछले एक साल में 7 बड़े आयोजन हो चुके हैं। इसका सिलसिला पिछले साल 17 अगस्त 2017 को दिल्ली से शुरू हुआ। इसके बाद इंदौर, जयपुर, मुंबई आदि तमाम जगहों पर आयोजन हुए। बीजेपी के खिलाफ विपक्ष एक है। सबसे पहले हम भूमि अधिग्रहण बिल के खिलाफ साथ आए थे। उसमें हम सब साथ थे। सोनिया जी और मैं आगे-आगे चल रहे थे। राष्ट्रीय स्तर पर यह समझदारी बन चुकी है, जिसे अब बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी साम-दाम-दंड भेद का इस्तेमाल करके भी नहीं तोड़ सकते।
हिंदी पट्टी में बीजेपी का जो दबदबा है, क्या उसमें गिरावट के आसार दिख रहे हैं?
गंगा के मैदान से ही ये लोग बैठे थे और यहीं से 2019 में उनको सरका दिया जाएगा। उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड में ही इन्होंने सबसे ज्यादा फायदा काटा था, अब देखिएगा यहां हाल। अरे, 2014 में तो ये विकास को हथियार बनाकर सत्ता पर पहुंच गए, लेकिन कुत्ते की पूंछ तो टेढ़ी की टेढ़ी ही रहती हैं न। फिर वही नफरत, हिंदू-मुसलमान, मंदिर-मस्जिद करने लगे। ये बुरी तरह से बेनकाब हो गए हैं और पूरी तरह से बेशर्म भी। कांग्रेस को सत्ता से बाहर हुए साढ़े चार साल हो गए लेकिन अभी भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हर भाषण में लगातार कांग्रेस को ही गाली देते रहते हैं। इससे समझा जा सकता है कि उनके पास अपना कुछ भी नहीं है। देश की जनता के लिए उन्होंने कुछ नहीं किया। दरअसल, हमें जनता के विवेक पर भरोसा करने की जरूरत है, वह बड़े-बड़े तानाशाहों का सफाया कर देती है।
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