झारखंड में ‘उज्ज्वला योजना’ का हाल, लोगों के पास पांच किलो वाला सिलेंडर भरवाने के भी पैसे नहीं

प्रति व्यक्ति आय के मामले में देश में 30 वें स्थान पर खिसक चुके झारखंड में उज्ज्वला योजना की 60 फीसदी लाभार्थी फिर से चूल्हा फूंक रही हैं, क्योंकि उनके पास गैस भराने के पैसे नहीं हैं। हालत ये है कि इनके पास 5 किलो वाला सिलेंडर भराने के भी पैसे नहीं हैं।

फोटोः रवि प्रकाश
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रवि प्रकाश @raviprakash24

केंद्र की मोदी सरकार का पहला आधा हिस्सा उम्मीद जताती योजनाओं का रहा तो दूसरा इनकी कलई उतारने वाला। तमाम बड़ी-बड़ी योजनाएं लक्षित परिणाम पाने में विफल रहीं। लेकिन इसका संदेश लोगों के बीच काफी गलत गया। उन्हें लगा जैसे मोदी सरकार ने उनके साथ धोखाधड़ी कर दी है। बेशक, चुनावी समय में इसके सियासी निहितार्थ जो भी निकाले जाएं, इतना तो तय है कि इन योजनाओं के नाकाम रहने से आम लोगों में निराशा और खीझ है। मोदी सरकार की उज्जवला योजना की पड़ताल करती नवजीवन की श्रृंखला की इश कड़ी में पेश है झारखंड में इस योजना की जमीनी हकीकत।

झारखंड में उज्ज्वला योजना की 60 फीसदी लाभार्थी महिलाएं फिर से चूल्हा फूंक रही हैं, क्योंकि उनके पास गैस भरवाने के पैसे नहीं। रसोई गैस के 14.2 किलो वजन वाले स्टैंडर्ड सिलेंडर की बात तो छोड़िए, इनके पास 5 किलो वाले सिलेंडर को भरवाने के लिए भी पैसे नहीं हैं। प्रति व्यक्ति आय के मामले में देश में 30 वें स्थान पर खिसक चुके झारखंड के लिए यह कोई आश्चर्यजनक आंकड़ा नहीं है। सरकारी आंकड़े के मुताबिक उज्ज्वला योजना से राज्य में लाभान्वित होने वाले कुल 26.30 लाख लाभार्थियों में से 15.78 लोग सिलेंडर दोबारा नहीं भरवा सके। इनमें सबसे अधिक संख्या खूंटी जिले के लाभार्थियों की है।

राजधानी रांची के भी 59.9 फीसदी लाभार्थियों ने सिलेंडर रिफिल कराने में रुचि नहीं दिखाई। इस कारण यह योजना अपने उद्देश्यों में विफल हो गई। इससे बेखबर झारखंड सरकार अब उज्ज्वला योजना के तीसरे फेज का शुभारंभ करने जा रही है। इसमें 14 लाख नए लाभार्थियों को कवर करने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है। इंडियन ऑयल कॉरपोरेशन (आईओसी) के क्षेत्रीय प्रबंधक रजत कुमार सिंह ने कहा कि हमारे लिए यह चिंता का विषय है कि राज्य के सिर्फ 40 फीसदी लाभार्थियों ने ही अपना सिलेंडर दोबारा रिफिल कराया। कई वैसे लोग भी हैं, जिन्होंने दोबारा रिफिल कराने के बाद गैस सिलेंडर लेना बंद कर दिया। उनकी संख्या इस आंकड़े में शामिल नहीं की गई है। अगर उन्हें शामिल करें तो यह आंकड़ा और बढ़ जाएगा।

पैसे हैं नहीं, कहां से भरवाएं सिलेंडर

जामताड़ा जिले के नारायणपुर की मीना देवी मजदूर हैं। उनके पति अरविंद रजवार भी मजदूरी करते हैं। खेती-बारी सिर्फ नाम की है। भरा-पूरा परिवार है। दोनों पति-पत्नी एक-एक पैसा जोड़कर किसी तरह घर चला पाते हैं। अक्टूबर 2018 में उन्हें उज्ज्वला योजना से जोड़ दिया गया। उन्हें एक गैस चूल्हा, रेगुलेटर, पाइप और भरा हुआ सिलेंडर दिया गया।

मीना देवी ने बताया कि उसके बाद उन्होंने गैस चूल्हे पर खाना बनाना सीखा और उसी पर खाना बनाने लगीं। लागातार खाना बनाने के कारण उनका सिलेंडर दिसंबर में खत्म हो गया। तब से वे फिर से मिट्टी के चूल्हे पर खाना बनाने लगी हैं। उऩके पास एकमुश्त 750 रुपये हुए ही नहीं कि वे गैस सिलेंडर दोबारा भरवा सकें। उन्होंने बताया कि मनरेगा में हमेशा काम नहीं मिलता और उसकी मजदूरी भी लंबे वक्त तक बकाया रह जाती है। ऐसे में हमलोग गैस सिलेंडर भरवाएं या बच्चों का पेट भरने का जुगाड़ करें।

पिछली कड़ी में आपने पढ़ाः मोदी सरकार की ‘उज्ज्वला योजना’ का हाल, कनेक्शन 50 प्रतिशत बढ़े, लेकिन खपत बढ़ी सिर्फ 15 फीसद

खूंटी जिले के तोरपा की सबीना बेग की हालत भी ऐसी ही है। उन्हें अगस्त 2018 में उज्ज्वला योजना के तहद मुफ्त गैस कनेक्शन मिला था। उन्होंने बताया कि सिलेंडर मिलने के बाद उनके घर में भी गैस चूल्हे पर खाना बनने लगा। इस बीच, नवंबर में उनकी पुत्र वधू बीमार हो गई। घर का पैसा उसके इलाज में खर्च हो गया। तब से वे अपना गैस सिलेंडर दोबारा नहीं भरवा सकी हैं। उनके पास पैसे नहीं हैं कि वे सिलेंडर रिफिल करा सकें। उनकी मासिक आमदनी भी तय नहीं। कई दफा यह चार अंकों में भी नहीं पहुंच पाती है। ऐसे में घर चला पाना उनके लिए बड़ी चुनौती है। उन्होंने बताया कि उन्होंने इसके लिए आवेदन भी नहीं दिया था लेकिन बीपीएल कार्ड धारक होने के कारण उनका चयन उज्ज्वला योजना के लिए कर लिया गया।

दरअसल, 14.2 किलो वाला गैस सिलेंडर रिफिल कराने के लिए गैस एजेंसी के प्रतिनिधि को 750 रुपये देने होते हैं। इसके कुछ सप्ताह बाद उनकी सब्सिडी उनके खाते में आ जाती है। क्योंकि, इस योजना का लाभ बीपीएल परिवारों को मिलना है। ऐसे में गरीबी रेखा से नीचे जीवन बसर करने वाले अधिकतर लोगों के पास एक मुश्त 750 रुपया हो ही नहीं पाता, जो वे गैस सिलेंडर दोबारा भरवा सकें। इससे आजीज सरकार ने 5 किलो के सिलेंडर का भी प्रावधान किया। ऐसे सिलेंडर महीने में कई बार भरवाए जा सकते हैं, लेकिन लोगों ने उसके प्रति भी रुचि नहीं दिखाई। इस कारण यह योजना सिर्फ आंकड़ों की कलाबाजी में सिमट कर रह गई है।

जुमलों की सरकार, हवा-हवाई योजना

महिला कांग्रेस की राष्ट्रीय सचिव दीपिका पांडेय सिंह कहती हैं कि सरकार उज्ज्वला योजना के तहत सिर्फ कवरेज बढ़ाना चाहती है, घरों से धुंआ हटाने में उसकी रुचि नहीं है। अगर रुचि होती, तो पहले लोगों की आमदनी बढ़ाने की कोशिशें की जातीं ताकि वे सिलेंडर भरवा सकें। उन्होंने आरोप लगाया कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनके सहयोगी सिर्फ जुमलों के आधार पर अपनी सियासत करना चाहते हैं। उज्ज्वला योजना इसका जीता-जागता सबूत है।

बकौल दीपिका, “झारखंड की रघुवर दास और केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार सिर्फ झूठे दावे करती है। वे दावा करेंगे कि हमने इतने लोगों को उज्ज्वला योजना का लाभ दिया, लेकिन यह नहीं बताएंगे कि इनमें से कितने लोग दोबारा सिलेंडर ही नहीं भरवा सके। क्योंकि इससे उनकी पोल खुलती है। ये दरअसल एसी में बैठकर प्लानिंग करने वाले लोग हैं, जिनका योजनाओं की वास्तविकता से कोई लेना-देना नहीं। वे अपनी योजनाएं कंपनियों के हितों को ध्यान में रखकर बनाते हैं। आम लोगों से उनका वास्ता नहीं है।”

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