हमने जो सवाल उठाए हैं, उन्हें नजरअंदाज करना सरासर गलत होगा: जस्टिस चेलमेश्वर

जस्टिस जे चेलमेश्वर इस बात पर जोर देते हैं कि सुप्रीम कोर्ट के अपने कार्यकाल में उन्होंने वही किया जो देश और लोकतंत्र के लिए अच्छा था। उन्हें सुकून इस बात का है कि स्वतंत्र न्यायपालिका के लिए उन्होंने सही और जरूरी सवाल उठाए, जिससे राष्ट्रव्यापी बहस शुरू हुई।

फोटो: सोशल मीडिया
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भाषा सिंह

जस्टिस जे चेलमेश्वर देश के पॉवर सेंटर राजधानी दिल्ली से अपना बोरिया-बिस्तर समेटने में लग गए हैं। किताबों की अलमारियां खाली हो रही हैं, सामान बांधा जा रहा है। देश की सबसे बड़ी अदालत सुप्रीम कोर्ट से अपने सात साल के कार्यकाल के बाद आज सेवानिवृत हुए जस्टिस चेलमेश्वर को राजधानी से कोई प्रेम नहीं है, वह वापस आंध्र प्रदेश जाकर बसने की तैयारी कर रहे हैं। उनका कहना है कि न तो उन्हें कोई सत्ता चाहिए और न ही कोई पद। लिहाजा, दिल्ली में रहने का कोई भी कारण नहीं है क्योंकि दिल्ली बस इन्हीं दो चीजों को इज्जत देती है - पॉवर और पोजीशन। उन्होंने पहले ही यह ऐलान कर दिया था कि रिटायर होने के बाद वे न तो केंद्र सरकार से और न ही किसी राज्य सरकार से कोई पद लेंगे। उन्होंने बताया कि अभी वह सबसे पहले तिरुपति जाएंगे और फिर वहां से ‘अपने लोगों के बीच’। वह इस बात पर जोर देते हैं कि सुप्रीम कोर्ट के अपने कार्यकाल में उन्होंने वही किया जो देश और लोकतंत्र के लिए अच्छा था। उन्हें सुकून इस बात का है कि स्वतंत्र न्यायपालिका के लिए उन्होंने सही और जरूरी सवाल उठाए, जिससे राष्ट्रव्यापी बहस शुरू हुई।

नवजीवन के लिए भाषा सिंह ने जस्टिस जे चेलमेश्वर का एक्सक्लूसिव इंटरव्यू लिया। पेश हैं उसके अंश।

आपने सुप्रीम कोर्ट ही नहीं, देश की न्यायपालिका के इतिहास में अपना नाम दर्ज कराया। 12 जनवरी को आपने जस्टिस गोगोई, जस्टिस लोकूर और जस्टिस कूरियन जोसेफ के साथ मिलकर प्रेस कॉन्फ्रेंस की और यह ऐलान किया कि न्यायपालिका की स्वतंत्रता खतरे में हैं। क्या कुछ बदला इसके बाद?

हमें जो काम करना था, वह हमने किया। अब यह आने वाली पीढ़ी तय करेगी कि जो हमने किया, वह सही था या गलत। आज का दिन मेरे लिए बहुत अहम है और आज मैं यह दोहराना चाहता हूं कि हमने देश में लोकतंत्र की स्थिति, न्यायपालिका की स्थिति से जुड़े बेहद जरूरी सवाल उठाए थे। उन्हें नजरदांज करना सरासर गलत होता। न्यायपालिका की स्वतंत्रता लोकतंत्र के लिए अनिवार्य शर्त है और यह खतरे में है। हमने साफ तौर पर कहा कि सुप्रीम कोर्ट का प्रशासन सही ढंग से नहीं चल रहा है। मैंने कभी दबाव में कोई कम नहीं किया, जो सही लगा, न्यायपूर्ण लगा, उसके पक्ष में खड़ा हुआ चाहे इसके लिए जो भी कीमत चुकानी पड़ी हो।

आपकी ऐतिहासिक प्रेस कांफ्रेंस के बाद सुप्रीम कोर्ट की कार्यप्रणाली में कुछ सुधार हुआ?

क्या सुधार हुआ, कितना सुधार हुआ - इन सबका मूल्यांकन अभी नहीं किया जा सकता। आने वाला समय और आने वाली पीढ़ी बताएगी कि हम सही थे या गलत। लेकिन एक बात साफ है कि जो बात सही लगी, वह कहा। हमने जो सवाल उठाए, उसने एक बहुत बड़ी बहस को जन्म दिया। और लोकतंत्र के लिए बहस का होना बहुत जरूरी है। इसके बिना लोकतंत्र की कल्पना भी नहीं की जा सकती। शिष्ट आवाजों का सम्मान किया जाना चाहिए और उन्हें जगह मिलनी चाहिए।

आप बहुत समय से सुप्रीम कोर्ट की कार्यप्रणाली की खामियों को लेकर आवाज उठा रहे थे...

हां, मैंने बहुत पहले सितंबर 2016 में कॉलेजियम की बैठकों में जाना बंद कर दिया था। ऐसा करने के पीछे मेरे पास कुछ विशिष्ट कारण थे, जिन्हें मैंने सार्वजनिक नहीं किया। मैं ऐसा यह निश्चित करने के लिए कह रहा हूं कि कुछ मुद्दों और समस्याओं को लेकर मेरा विरोध था, जिन्हें मैंने कभी छिपाया नहीं। मैंने अपने पत्र सार्वजनिक नहीं किए क्योंकि वे कुछ लोगों के निजी दायरे में थे। जब मुझे मेरी आस्था ने राष्ट्र के भले के लिए ऐसा करने को मजबूर नहीं किया। यहां तक प्रेस कांफ्रेंस के दिन भी हमने किसी व्यक्ति का नाम नहीं लिया और न ही कोई निजी आरोप लगाए। यह पहले से सुविचारित था और इस पर ठीक से चर्चा हो चुकी थी। मैंने उस दिन जो भी कहा, उस पर मैं अभी भी कायम हूं। हमने बहुत संतुलित वक्तव्य दिए। जो सूचनाएं मेरे या हमारे पास थे, उनके आधार पर हमने वक्तव्य दिए। मैं कई चीजें उजागर नहीं कर रहा हूं क्योंकि हम संस्थाओं को बचाना चाहते हैं।

आप सेवानिवृत हो चुके हैं, अब जस्टिस केएम जोसेफ के मामले में क्या होगा?

मैंने ही सबसे पहले इस मुद्दे को उठाया था। मैंने अपना मत खुले तौर पर रख दिया है। मैंने 10 दिन पहले ही कॉलेजियम को लिखा था ताकि मेरी राय सबके सामने हों।

फिलहाल लोकतंत्र की स्थिति कितनी गंभीर है?

लोकतंत्र में खुदकुशी की प्रवृति होती है। समाज में अधिकार और लोकतांत्रिक जिम्मेदारी में संतुलन बनाने की परिपक्वता होनी चाहिए। इसलिए अभी की स्थिति काफी गंभीर है। अगर यह गंभीरता और बढ़ जाती है तो खतरा हो सकता है। सवाल संतुलन का है।

तो क्या वह संतुलन बचा हुआ है या खत्म हो चुका है?

हम नहीं जानते। 60 साल पहले लोगों ने कहा कि यह एक क्रियाशील अराजकता है, लेकिन फिर भी हमने सबकुछ संभाल लिया, बिना सड़क की लड़ाईयों के। लोकतंत्र अभी भी काम रहा है। समस्याएं आएंगी, बुरा और अच्छा दौर भी रहेगा।

अपकी खुशी का पल कौन सा रहा?

(हंसते हुए) आज 11 बजे (जब मैं सुप्रीम कोर्ट से सेवानिवृत हुआ), अब मैं अपनी जिम्मेदारी से मुक्त हूं। जिम्मेदारियां आपको परेशान करती हैं।

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