जिस चंद्रयान-2 पर अपनी पीठ थपथपा रही है मोदी सरकार, उसे तैयार करने वालों की जेब काट दी
पीएम नरेंद्र मोदी अपने भाषणों में विज्ञान और शोध के प्रति गंभीरता तो दिखाते हैं, लेकिन उनकी सरकार ने पिछले पांच साल में कई ऐसे फैसले लिए हैं जिनसे वैज्ञानिकों और शोधार्थियों में निराशा है। इतना ही नहीं, मोदी सरकार इसरो के निजीकरण की दिशा में भी बढ़ रही है।
चंद्रयान-2 कितना सफल रहा या क्यों और कितना अपने लक्ष्य से चूका, इस पर वैज्ञानिक ही विचार करें, तो बेहतर है। अपनी चिंता तो यह होनी चाहिए कि इस तरह के अभियान आगे भी बिना बाधा चलते रहें। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ऐसी बातें कर तो रहे हैं जिनसे लगे कि सरकार विज्ञान एवं शोध के प्रति काफी गंभीर है। लेकिन वस्तुतः ऐसा होता दिख नहीं रहा। सरकार ने पिछले पांच साल के दौरान कई ऐसे फैसले लिए हैं जिनसे वैज्ञानिकों और शोधार्थियों को निराशा हुई है। वहीं, सरकार भारतीय अतंरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के निजीकरण की दिशा में भी बढ़ रही है। आने वाले दिनों में इसका फायदा किसे मिलेगा, यह समझा जा सकता है।
चंद्रयान-2 अभियान में कई उद्योगों और संस्थानों ने महत्वपूर्ण निभाई। इनमें नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी प्रमुख है। लेकिन पिछले दो साल से इसकी बजटीय सहायता (ग्राॅस बजटीय सपोर्ट) में ही कमी कर दी गई है। 2017-18 में एनआईटी का बजट 3451.74 करोड़ रुपये था, जिसे घटाकर 2018-19 में 2919.40 करोड़ रुपये किया गया और संशोधित बजट (आरई) में इसे घटाकर 2550.25 करोड़ कर दिया गया। चालू वित्त वर्ष 2019-20 में इसके लिए 2386.27 करोड़ रुपये का बजट है। इतना ही नहीं, इस बजट में अब इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ इंजीनयरिंग, साइंस एंड टेक्नोलॉजी (आईआईईएसटी) को भी शामिल कर लिया गया है, जबकि पहले यह कहा जा रहा था कि आईआईईएसटी को अलग से बजट आवंटित किया जाएगा।
इसी तरह इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस, एजुकेशन एंड रिसर्च (आईआईएसईआर) के बजटीय सपोर्ट पर भी ध्यान नहीं दिया जा रहा और इसकी जितनी मदद की जानी चाहिए थी, नहीं की जा रही है। इसके मद में लिए केंद्र सरकार ने 2017- 18 में 735 करोड़ रुपये का प्रावधान किया था। दो साल बाद यानी चालू वित्त वर्ष में इसमें केवल तीन करोड़ रुपये की वृद्धि की गई है। इस साल बजट में आईआईएसईआर के लिए 738 करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया है।
चंद्रयान-2 अभियान में इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलाॅजी (आईआईटी) की भूमिका महत्वपूर्ण रही है। लेकिन सरकार ने आईआईटी और आईआईएम का कुल बजटीय सपोर्ट (जीबीएस) भी घटा दिया है। आईआईटी के लिए 2018-19 में 236 करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया था। उसे घटाकर 208.16 करोड़ रुपये कर दिया गया। इसी तरह, आईआईएम के लिए 2018-19 में 828 करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया था जिसे रिवाइज करके 200 करोड़ रुपये किया गया और 2019-20 में इसे 445.53 करोड़ रुपये कर दिया है। सरकार आईआईटी और आईआईएम का संचालन पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप (पीपीपी) मॉडल के तहत करना चाहती है। इस बारे में जल्द ही नियम पेश किए जा सकते हैं।
इसी तरह, सरकार इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ इंजीनयिरंग, साइंस एंड टेक्नोलॉजी (आईआईईएसटी) को अपग्रेड करने के लिए पिछले दो साल से 130 करोड़ रुपये का प्रावधान कर रही थी लेकिन इस बार यह प्रावधान हटा दिया गया है। दिलचस्प बात यह है कि केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्रालय को आवंटित बजट के अंत में कहा गया है कि इस मद की राशि मद नंबर 63 में शामिल कर दी गई है लेकिन मद 63 की डिटेल देखने पर पता चलता है कि इस बारे में कोई उल्लेख नहीं किया गया। मद 63 एनआईटी को आवंटित बजट के बारे में है।
दरअसल, सरकार उच्चतर शिक्षा को दी जाने वाली बजटीय सहायता से हाथ खींचने की तैयारी कर रही है। इसके बजाय सरकार ने संस्थानों से कहा है कि वे हायर एजुकेशन फाइनेंशियल एजेंसी (हेफा) से लोन लें। इसका विपरीत असर अभी देखने को नहीं मिल रहा है लेकिन यह आने वाले दिनों में दिखाई देगा और अगर ऐसा हुआ तो चंद्रयान जैसे मिशन पर इसका क्याअसर पड़ेगा, यह आने वाला वक्त बताएगा। हेफा में विश्वविद्यालयों और संस्थानों को आसान शर्तों में लोन दिया जाएगा जिसे एक तय समय के बाद लौटाना होगा। लेकिन विश्वविद्यालय शिक्षक संघ का कहना है कि रिसर्च और बड़े संस्थानों की ग्रांट कम कर सरकार लोन लेने के लिए बाध्य कर रही है। ऐसी स्थिति में विश्वविद्यालयों और तकनीकी संस्थानों को लोन लौटाने के लिए अपनी फीस बढ़ानी पड़ेगी।
उच्च एवं विज्ञान शिक्षा के प्रति सरकार के रवैये का उल्लेख करना इसलिए भी जरूरी हो गया है क्योंकि प्रधानमंत्री मोदी चंद्रयान-2 का श्रेय लेने की कोशिशों में जुटे हुए हैं। उन्होंने इसरो से लौटने के बाद हरियाणा में अपनी चुनावी रैलियों में ऐसा किया भी है। ऐसे में, सवाल यह उठता है कि जो संस्थान चंद्रयान-2 की तैयारियों में अहम भूमिका निभा चुके हैं, उनके बजट में कटौती क्यों की जा रही है? यहां यह उल्लेखनीय है कि आईआईटी की कई शाखा और इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस का चंद्रयान के निर्माण में सहयोग रहा है।
इतना ही नहीं, जिन सरकारी कंपनियों (पीएसयू) ने चंद्रयान-2 के निर्माण में भूमिका निभाई है, सरकार उन पीएसयू के भी पीछे पड़ी है। इनमें इसरो के साथ पिछले 40 साल से कदम से कदम मिला कर चल रही हिंदुस्तान एयरोनोटिक्स लिमिटेड (एचएएल) प्रमुख है। एचएएल ने चंद्रयान- 2 का मुख्य स्ट्रक्चर तैयार किया है। राफेल सौदे से बाहर हो चुकी एचएएल की माली हालत किसी से छिपी नहीं है। इसी तरह इसरो को लिथियम बैटरी के लिए टैक्नोलॉजी ट्रांसफर करने वाली भारत हेवी इलेक्ट्रिकल लिमिटेड की हालत भी नरेंद्र मोदी सरकार में खराब है।
खुद इसरो की भी स्थिति ठीक नहीं है। जुलाई, 2018 में डॉ. तपन के. मिश्रा को अहमदाबाद में इसरो अंतरिक्ष उपयोग केंद्र के डायरेक्टर के पद से इसलिए हटा दिया गया क्योंकि वह इसरो के उपक्रमों के निजीकरण का विरोध कर रहे थे। मिश्रा को उनके पद से हटाने से एक दिन पहले ही इसरो ने दो प्राइवेट कंपनियों और एक सार्वजनिक उपक्रम के साथ 27 सेटेलाइट बनाने का करार किया था। इस करार से तपन मिश्रा सहमत नहीं थे और उन्होंने इसका विरोध किया था। बावजूद इसके, इसरो के कामकाज में निजी क्षेत्रों की भूमिका बढ़ाने के लिए एक और बड़ा कदम उठाया गया है। इसरो ने न्यू स्पेस इंडिया लिमिटेड (एनएसआईएल) के नाम से एक कंपनी बनाई है। इसका मुख्य रूप से काम अनुसंधान और विकास गतिविधियों को बढ़ावा देना है। इसरो व्यावसायिक रूप से इसका इस्तेमाल करेगा।
27 जून, 2019 केंद्रीय राज्य मंत्री जितेंद्र सिंह ने राज्यसभा में एक प्रश्न के लिखित जवाब में इसकी जानकारी दी। राज्य मंत्री ने कहा, “एनएसआईएल इसरो के लिए व्यावसायिक रूप से स्पेस एजेंसी के अनुसंधान और विकास का काम करेगी। यह ध्रुवीय उपग्रह प्रक्षेपण यान (पीएसएलवी) बनाएगी। साथ ही कंपनी स्मॉल सेटेलाइट लॉन्च व्हीकल (एसएसएलवी) के जरिये उपग्रहों को लॉन्च भी करेगी। कंपनी भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम की बढ़ती जरूरतों को पूरा करने के लिए उच्च- प्रौद्योगिकी का निर्माण और उत्पादन करेगी। यहां यह समझना जरूरी है कि चूंकि एनएसआईएल एक सरकारी कंपनी है, इसलिए वे सीधे-सीधे निजी क्षेत्र से काम करवा सकती है, उसके लिए इसरो जैसी बाध्यताएं नहीं होंगी।”
वैसे, सरकार ने इसरो को एक और झटका तो दे ही दिया है। सरकार ने इसरो के सीनियर वैज्ञानिकों और इंजीनियरों की इंक्रीमेंट में कटौती कर दी है। भारत सरकार के उपसचिव एम. रामदास के हस्ताक्षर से इस आशय का पत्र हाल ही में जारी किया गया। इस पत्र में कहा गया है कि भारत सरकार के वित्त मंत्रालय के निर्देश पर अंतरिक्ष विभाग के अंतर्गत आने वाले एसडी, एसई, एसएफ और एसजी ग्रेड के वैज्ञानिकों और इंजीनियरों को पांचवें वेतन आयोग के अनुसार मिलने वाले दो अतिरिक्त इंक्रीमेंट को बंद कर दिया गया है। यह आदेश 1 जुलाई, 2019 से लागू होगा। सरकार की ओर से इस संबंध में ज्ञापन जून, 2019 में जारी किया गया था।
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