हिंदुस्तानी क्रांतिकारियों की एक ही विरासत का हिस्सा थे भगत सिंह और पाश 

पाश हिन्दुस्तानी क्रांतिकारियों की जिस बिरादरी का हिस्सा हैं, उसमें भगत सिंह शायद सबसे चमकता नाम है। और पाश का नाम कई वजहों से उस नाम के साथ लिया जाता है।

फोटो: सोशल मीडिया 
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रोहित प्रकाश

हत्यारों की नासमझी के बारे में एक बात मशहूर है कि वे समझते हैं कि उन्होंने अपने शिकार को मार दिया! और पंजाबी के क्रांतिकारी कवि पाश को लेकर तो उनकी यह समझ कुछ ज्यादा ही धोखा दे गई। आज पाश की शहादत के 30 साल हो गए, लेकिन पाश अब भी जिंदा हैं।

हिन्दुस्तानी क्रांतिकारियों की जिस बिरादरी का वे हिस्सा हैं, उसमें भगत सिंह शायद सबसे चमकता नाम हैं। और पाश का नाम कई वजहों से उस नाम के साथ लिया जाता है। उन दोनों की मौत का दिन भी एक है (23 मार्च) और उनके जन्म का महीना भी (सितंबर)। यहां तक कि उनकी परवरिश का इलाका भी एक है (पंजाब)। लेकिन जो बात इन दोनों शख्सियतों की एकता की बुनियाद है, वो हैं उनके विचार। विचार जो बदलाव के लिए हैं। विचार जो समानता के लिए हैं। विचार जो मनुष्यता और प्रेम के पक्ष में हैं। विचार जो हर तरह के शोषण के खिलाफ हैं। विचार जो साम्प्रदायिकता के खिलाफ हैं। विचार जिसे मारा नहीं जा सकता।

न अंग्रेज भगत सिंह के विचारों को मार पाए और न खालिस्तानी पाश के विचारों को। अवतार सिंह संधु के रूप में जन्मे पाश कवि थे, क्रांतिकारी कवि। पूरी दुनिया में यह उनकी सर्वाधिक लोकप्रिय पहचान है। हिन्दुस्तानी क्रांतिकारियों की कम से कम चार पीढ़ियों ने पाश की कविताओं से अपनी सांसों में दम और मुट्ठियों में हौसला भरा है।

पंजाबी साहित्य के कुछ अध्येता 1980 के दशक में पाश को पंजाब में सबाल्टर्न कविता या पोएट्री फ्रॉम बीलो की शुरुआत करने वाला मानते हैं। भारतीय इतिहास लेखन के क्षेत्र में भी उसी दौर में सबाल्टर्न इतिहास यानी हिस्ट्री फ्रॉम बीलो की शुरूआत हुई थी जिसका ज्यादातर श्रेय इतिहासकार रणजीत गुहा को दिया जाता है।

इस पूरी वैचारिकता और सौंदर्यशास्त्र का प्रस्थानबिंदु किसी न किसी रूप में 1967 में शुरू हुए नक्सलबाड़ी आंदोलन से जुड़ा है। आंदोलन की तमाम असफलताओं और वैचारिक कमियों के बावजूद नक्सलबाड़ी के हिस्से में इतना श्रेय तो आया ही कि इसने दुनिया को देखने की एक नई समझ और तमीज दी।

पाश की कविताओं में वह समझ और तमीज बार-बार दिखाई देती है। उसके साथ-साथ पाश की ग्रामीण पृष्ठभूमि, पत्रकारिता, राजनीतिक गतिविधि और क्रांतिकारी विचारधारा ने उनकी कविता का तेवर रचा। पाश की पहली कविता 1967 के आसपास छपी थी। उन्होंने कुछ पत्रिकाओं का संपादन किया, लेकिन आर्थिक संसाधनों के अभाव में वे जल्द ही बंद हो गईं। अपनी पत्रकारिता के दौरान पाश थोड़े समय के लिए नक्सली आंदोलन से जुड़े, लेकिन बहुत जल्द बाहर भी निकल गए। एक हत्या के झूठे मुकदमे में उन्हें जेल की सजा भी काटनी पड़ी जहां रहते हुए 1970 में उन्होंने अपना पहला कविता संग्रह ‘लौह कथा’ छपने को भेजा। इस संग्रह में कुल 36 कविताएं हैं जिसने उस दौर में पंजाबी कवियों के बीच पाश की ‘लाल तारा’ वाली पहचान को जन्म दिया था। इस संग्रह की कविताओं में शोषित जनता की गुस्से से भरी आवाज सुनाई देती है:

उनके पास, सिवाय पेट के, कोई समस्या नहीं

और वह भूख लगने पर

अपने अंग भी चबा सकते हैं

उनके लिए जिंदगी एक परंपरा है

और मौत का अर्थ है मुक्ति (भारत)

1974, 1978, 1988 और 1989 में पाश के चार और कविता संग्रह छपे। पाश की कविता की तरह उनकी जिंदगी में भी काफी आवेग था और इन आवेगों के जरिये आने वाले उतार-चढ़ाव का सामने करते हुए पाश ने अपनी ईमानदारी और कविता को बचाए रखा:

हम लड़ेंगे साथी, उदास मौसम के लिए

हम लड़ेंगे साथी, गुलाम इच्छाओं के लिए

हम चुनेंगे साथी, जिंदगी के टुकड़े

हम लड़ेंगे जब तक

दुनिया में लड़ने की जरुरत बाकी है

जब तक बंदूक न हुई, तब तक तलवार होगी

जब तलवार न हुई, लड़ने की लगन होगी

लड़ने का ढंग न हुआ, लड़ने की जरूरत होगी (लड़ेंगे साथी)

पाश सिर्फ क्रांति के नहीं, प्रेम के भी कवि थे। और वैसे भी बिना प्रेम की गहराई समझे कोई क्रांति के बारे में सोच भी कैसे सकता है! ‘तुम मुझे हासिल हो (लेकिन) कदम भर की दूरी से…’ पाश की इस पूरी कविता में प्रेम हौसले और उदासी के न जाने कितने रंगों में रंगा है:

कभी तुमने देखा है - लकीरों को बगावत करते?

कोई भी अक्षर मेरे हाथों से

तुम्हारी तस्वीर बन कर ही निकलता है

तुम मुझे हासिल हो (लेकिन) कदम भर की दूरी से

शायद यह कदम मेरी उम्र से ही नह‍ीं

मेरे कई जन्मों से भी बड़ा है (वफा)

कई बार तो पाश एक ही कविता में बदलाव की जरूरत और प्रेम की छवियों को आपसे में ऐसे मिला देते हैं जैसे यह दोनों एक ही बात हो। ज्यादातर कवियों ने ऐसा करने की कोशिश की है लेकिन कुछ चुनिंदा कवि ही इसमें सफल हो सके हैं। पाश उनमें एक हैं। उनकी सर्वाधिक चर्चित कविता ‘सबसे खतरनाक’ में भी यह दुर्लभ जोड़ दिखता है:

सबसे खतरनाक होता है मुर्दा शांति से भर जाना

तड़प का न होना

सब कुछ सहन कर जाना

घर से निकलना काम पर

और काम से लौटकर घर आना

सबसे खतरनाक होता है

हमारे सपनों का मर जाना

सबसे खतरनाक वो घड़ी होती है

आपकी कलाई पर चलती हुई भी जो

आपकी नजर में रुकी होती है

सबसे खतरनाक वो आंख होती है

जिसकी नजर दुनिया को मोहब्‍बत से चूमना भूल जाती है (सबसे खतरनाक)

पिछले दिनों बेंगलुरू में जुझारू पत्रकार और एक्टिविस्ट गौरी लंकेश की हत्या उस लंबे सिलसिले का हिस्सा है जिसका पाश लगभग 30 साल पहले शिकार हुए थे। हत्यारे यह नहीं जानते कि 30 साल बाद भी प्रगतिशील मूल्यों के पक्ष में खड़े लोगों की अनगिनत कतारों का उन्हें सामना करना होगा। हत्यारे यह भी नहीं जानते कि पाश का अर्थ होता है महक और विचार और कविता की यह महक हमारे बीच से कभी नहीं जाएगी।

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Published: 09 Sep 2017, 6:34 PM