संवैधानिक संस्थाओं और लोकतंत्र पर पैदा हुआ खतरा मोदी सरकार के 4 साल की सबसे बड़ी नाकामी: यशवंत सिन्हा
पूर्व वित्त मंत्री और हाल ही में बीजेपी से अलग हुए वरिष्ठ नेता यशवंत सिन्हा ने नवजीवन से खास बातचीत में कहा कि अगर बीजेपी से लड़ना है तो सबको साथ आना होगा। ऐसा नहीं चलेगा कि आप किसी को शामिल करो, किसी को छोड़ दो।
पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने कहा था कि प्रधानमंत्री के तौर पर नरेंद्र मोदी देश के लिए काफी नुकसानदेह साबित होंगे लेकिन एम वैंकेया नायडू जैसे लोग भी हैं जो मानते हैं कि मोदी एक वरदान हैं। इन दो विचारों के बीच ही मोदी सरकार ने 4 साल पूरे कर लिए। आप कैसे आंकेंगे इन 4 सालों को?
अगर आप बीते 4 साल की मोदी सरकार की उपलब्धियां और नाकामियां गिनने बैठें, तो एक ऐसी तस्वीर सामने आती है, जिसमें दुर्भाग्य से नाकामियां ज्यादा हैं। अगर उपलब्धि की बात करें तो उन्होंने 4 साल तक एक स्थाई सरकार चलाई है, उनकी सरकार को कोई खतरा महसूस नहीं हुआ, इस सरकार को मजबूत सरकार के रूप में जाना जाता है, तो इस सरकार ने एक राजनीतिक स्थिरता तो कायम की। लेकिन यह राजनीतिक स्थिरता देश के भले के लिए इस्तेमाल हुई या नहीं, यह बड़ा सवाल है।
दूसरी बात यह कि जब उन्होंने सरकार संभाली तो हालात बहुत अच्छे नहीं थे। कई ऐसे मुद्दे थे जिसमें उन्हें फौरन कदम उठाने थे और समस्या का समाधान करना था। मिसाल के तौर पर बैंकों के एनपीए का मुद्दा है, इस मोर्चे पर सरकार पूरी तरह नाकाम साबित हुई।
बीते 4 साल में इस सरकार की सबसे बड़ी नाकामी संवैधानिक संस्थाओं और लोकतंत्र पर पैदा हुए खतरे की है। इन संस्थाओं में सुप्रीम कोर्ट, चुनाव आयोग, मीडिया और जांच एजेंसियां सब हैं। इसके अलावा बैंकिंग क्षेत्र में आरबीआई, सेबी और आईआरडीए जैसी संस्थाएं हैं। इन सबका सरकार ने अपने तरीके से इस्तेमाल किया। ये सभी संस्थाएं उन मानदंडों के अनुरूप काम नहीं कर रही हैं, जो संविधान से तय हुए हैं।
इस सबको इसी बात से समझा जा सकता है कि लोकसभा में विश्वास मत आने ही नहीं दिया गया।
2014 के चुनाव में भ्रष्टाचार बड़ा मुद्दा था। प्रधानमंत्री बनने के बाद मोदी ने इस बारे में लंबे चौड़े वादे किए। न खाऊंगा, न खाने दूंगा का नारा दिया गया। लेकिन हाल के एक सर्वे में कहा गया है कि 75 फीसदी लोगों की नजर में भ्रष्टाचार पर लगाम नहीं लगी है, बल्कि यह बढ़ा है।
मैंने यह सर्वे नहीं देखा है। लेकिन मैं जरूर कहूंगा कि एक-दो मामले छोड़कर सरकार पर भ्रष्टाचार का कोई बड़ा आरोप नहीं लगा। लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि सबकुछ ठीक हो गया है। फर्क यह है कि बातें सामने नहीं आ रही हैं, और वक्त आने पर हो सकता है कि बहुत कुछ सामने आए।
आंकड़े बताते हैं कि मोदी सरकार महंगाई काबू करने में बुरी तरह फेल हो गई है। तेल की बढ़ती कीमतों ने आम आदमी की कमर तोड़ दी है, लेकिन सरकार कुछ करती नहीं दिख रही। क्या सरकार आम लोगों की दिक्कतों को अनदेखा कर रही है?
तेल कीमतों पर कौन बोल रहा है, विपक्ष। जाहिर है सरकार इस पर नहीं बोलेगी। विपक्ष को तो इस मुद्दे पर सड़कों पर उतर जाना चाहिए था। लेकिन विपक्ष क्या कर रहा है। वे भी सिर्फ प्रेस कांफ्रेंस कर रहे हैं। किसी ने कर्नाटक राज्यपाल के फैसले का विरोध नहीं किया। सिर्फ प्रेस कांफ्रेंस की। मैं अकेला व्यक्ति था जो धरने पर बैठा।
विपक्ष दरअसल न तो संसद में और न ही सड़कों पर विपक्ष की भूमिका निभा रहा है। यह सरकार जब सत्ता में आई तो सरकार के पास सस्ते कच्चे तेल की बहुत बड़ी सुविधा थी, इसी के चलते इनका सालाना राजस्व 1.3 लाख करोड़ से बढ़कर 2.7 लाख करोड़ तक पहुंचा। इसके अलावा इन्होंने अरबों रुपए सब्सिडी खत्म करके बचाए। लेकिन वह पैसा गया कहां, यह कोई नहीं बता रहा। सरकार को बताना चाहिए कि उसने यह 3-4 लाख करोड़ कहां खर्च किया।
अब जबकि कच्चा तेल महंगा हुआ है, तो सारा बोझ आम लोगों पर डाला जा रहा है। पहले इस बोझ को तीन जगह बांटा जाता था, सरकार, तेल कंपनियां बड़ा बोझ उठाती थीं और कुछ बोझ आम आदमी पर पड़ता था। अब तो सिर्फ आम आदमी बोझ उठा रहा है।
मोदी सरकार ने किसानों की आय दोगुनी करने और फसलों का समर्थन मूल्य बढ़ाने का वादा किया था। किसान उपज के अच्छे दामों के लिए आंदोलन कर रहे हैं। आप भी किसानों को लामबंद कर रहे हैं इन मुद्दों पर। क्या यह आंदोलन 2019 आते-आते कोई आकार ले पाएगा?
यह कोई राजनीतिक आकार लेगा या नहीं, यह अलग बात है। बड़ी बात यह है कि इस समय देश में भयंकर कृषि संकट है। मैंने कुछ आंदोलनों और प्रदर्शनों में हिस्सा लिया है, मुझे पता है कि देश भर के किसान भयंकर कष्ट में जी रहे हैं। 110 किसान संगठनों ने साम मिलकर 1 से 10 जून तक गांव बंद का आव्हान किया है। यानी इस दौरान गांव से शहरों को आने वाली हर चीज बंद कर दी जाएगी। दूध, सब्जी, फल, सब बंद हो जाएगा। इस दौरान गांव वाले भी शहरों से कुछ नहीं खरीदेंगे। देखिए इसका क्या असर होता है। गन्ना किसानों का 10-11 हजार करोड़ रुपया अकेले उत्तर प्रदेश में सरकार पर बकाया है। लेकिन मोदी सरकार कुछ नहीं कर रही है।
विपक्षी दलों के गैर-बीजेपी गठबंधन की बात हो रही है। इसमें ज्यादातर क्षेत्रीय दल हैं। क्या यह गठबंधन मोदी को अगले आम चुनाव में मात दे सकता है?
मेरा साफ मानना है कि अगर बीजेपी से लड़ना है तो सबको साथ आना होगा। ऐसा नहीं चलेगा कि आप किसी को शामिल करो, किसी को छोड़ दो। यह मेरा फार्मूला है। ऐसा होगा तो कुछ नहीं होगा। एक के ऊपर एक का फार्मूला बनाना पड़ेगा बीजेपी को हराने के लिए।
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