बिहार को विशेष राज्य का दर्जा वहां की जनता का हक, राज्य इस दर्जा का सबसे ज्यादा हकदार: अखिलेश सिंह

अखिलेश प्रसाद सिंह ने कहा कि मानव विकास के सभी सूचकांकों से लेकर राष्ट्रीय आय और औद्योगिकीकरण सहित मानदंडों को देखते हुए कहा जा सकता है कि बिहार इस दर्जा का सबसे ज्यादा हकदार है।

फोटो: सोशल मीडिया
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नवजीवन डेस्क

राज्यसभा में बृहस्पतिवार को कांग्रेस सदस्य अखिलेश प्रसाद सिंह ने बिहार को विशेष राज्य का दर्जा दिए जाने की मांग करते हुए कहा कि यह वहां की जनता का हक है।

सिंह ने कहा कि मौजूदा सरकार गठबंधन की है और ऐसे में उम्मीद बढ़ गयी थी कि राज्य को यह दर्जा अब मिल जाएगा। उन्होंने कहा कि लेकिन सरकार ने संसद के पहले सत्र में ही कह दिया कि बिहार को विशेष राज्य का दर्जा नहीं दिया जा सकता, क्योंकि वह विभिन्न मानदंडों को पूरा नहीं करता।

उन्होंने कहा कि मानव विकास के सभी सूचकांकों से लेकर राष्ट्रीय आय और औद्योगिकीकरण सहित मानदंडों को देखते हुए कहा जा सकता है कि बिहार इस दर्जा का सबसे ज्यादा हकदार है। उन्होंने कहा कि बिहार बाढ़ एवं सुखाड़ से स्थायी तौर पर प्रभावित रहता है।

सिंह ने कहा कि मानदंड सरकार ही बनाती है और उसे इसमें संशोधन करना चाहिए ताकि बिहार को यह दर्जा मिल सके।

उन्होंने कहा कि बिहार में कई विधानसभा एवं लोकसभा चुनावों में एनडीए के नेता राज्य को विशेष दर्जा दिए जाने का गुलाबी सपना दिखाते रहे हैं।


कांग्रेस सदस्य ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने बिहार में एक बड़ी रैली में 1.25 लाख करोड़ रुपये के पैकेज की घोषणा की थी लेकिन आज तक पता नहीं चला कि उस पैकेज का क्या हुआ। उन्होंने कहा कि 2000 में बिहार के विभाजन के बाद तत्कालीन गृह मंत्री लालकृष्ण आडवाणी ने भी बिहार के लिए एक पैकेज की घोषणा की थी।

कांग्रेस सदस्य सिंह ने वैद्यनाथ धाम, वासुकीनाथ, रजरप्पा सहित बिहार एवं झारखंड के कई धार्मिक स्थानों को विकसित किए जाने की मांग की। वह उच्च सदन में आम बजट 2024-25 और जम्मू कश्मीर के बजट पर संयुक्त चर्चा में भाग ले रहे थे।

चर्चा में भाग लेते हुए निर्दलीय सदस्य कपिल सिब्बल ने देश में बेरोजगारी का मुद्दा उठाया। उन्होंने कहा कि बढ़ती बेरोजगारी से जुड़ी चिंताओं को दूर करने के लिए बजट में कोई रोडमैप नहीं है।

उन्होंने ‘आईएलओ’ की एक रिपोर्ट का हवाला दिया, जिसमें दावा किया गया है कि भारत के 83 प्रतिशत युवा बेरोजगार हैं। उन्होंने कहा कि वित्त मंत्री को बेरोजगारी के संकट से निपटने के लिए कोई रोडमैप देना चाहिए था।


सिब्बल ने कहा कि विकसित देशों की आबादी घट रही है और बुजुर्गों की संख्या युवाओं से अधिक है। उन्होंने कहा कि विकसित देशों को अपना काम करने के लिए कृत्रिम बुद्धिमत्ता (एआई) की जरूरत है, लेकिन भारत में 83 प्रतिशत बेरोजगारी के कारण एआई का उपयोग करना मुश्किल है।

तृणमूल कांग्रेस सदस्य डोला सेन ने बजट को जनविरोधी और संघवाद विरोधी करार दिया और कहा कि इसमें पश्चिम बंगाल की अनदेखी की गयी है। उन्होंने कहा कि केंद्र मनरेगा के तहत पश्चिम बंगाल के बकाए का भुगतान नहीं कर रहा है।

सेन ने पुरानी पेंशन व्यवस्था को बहाल करने की मांग करते हुए कहा कि इस बजट में आम आदमी को कोई राहत नहीं दी गयी है। उन्होंने श्रमिकों, खासकर खेतिहर मजदूरों के कल्याण पर ध्यान दिए जाने की भी मांग की। चर्चा अधूरी रही।

पीटीआई के इनपुट के साथ

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