स्मार्ट सिटीः साढ़े 3 साल में चले ढाई कदम, जो काम हो जाने थे पूरे, अब तक कर रहे हैं प्रक्रिया का इंतेजार
पीएम नरेंद्र मोदी ने 25 जून 2015 को दिल्ली के विज्ञान भवन में देश के 100 शहरों को स्मार्ट बनाने का दावा करते हुए बड़े-बड़े वादे किए थे। लेकिन साढ़े 3 साल से ज्यादा बीत जाने के बाद हाल ये है कि वह आज भी स्मार्ट सिटी परियोजनाओं का शिलान्यास कर रहे हैं।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने साल 2015 के जून में देश के 100 शहरों को स्मार्ट बनाने का दावा करते हुए बड़े-बड़े वादे किए थे। योजना की घोषणा करते हुए कहा था कि वह ऐसा शहरी भारत देंगे जिसे 100-200 साल बाद भी याद किया जाएगा। लेकिन 3 साल और 6 महीने से ज्यादा समय बीत जाने के बाद भी स्थिति यह है कि प्रधानमंत्री अब भी स्मार्ट सिटी परियोजनाओं का शिलान्यास कर रहे हैं।हाल ही में 9 जनवरी को पीएम मोदी ने शोलापुर और आगरा में स्मार्ट सिटी परियोजनाओं का शिलान्यास किया।
स्मार्ट सिटी परियोजना का ऐलान होने के साढ़े 3 साल बाद हाल ये है कि अब तक केवल 9 फीसदी काम पूरा हो पाया है, जबकि 20 शहरों में टेंडर की प्रक्रिया तक शुरू नहीं हो पाई है। चुनाव जीतने के एक साल बाद तक मोदी सरकार स्मार्ट सिटीज कीअवधारणा पर ही काम करती रही। मिशन लॉन्च होने के दो साल तक सरकार यह तय नहीं कर पाई कि किन शहरों को स्मार्ट बनाया जाएगा। इसी काम में तीन साल लग गए। इतना ही नहीं, सरकार ने शहरों का चुनाव किया, तो उसे लेकर ही विवाद होने लगा।
आखिरकार, हुआ यह कि100 की बजाय 110 शहरों की लिस्ट तैयार की गई। स्मार्ट सिटी चयन प्रक्रिया के चौथे चरण का परिणाम जनवरी 2018 में आया। इसमें 10 शहरों का चयन किया गया। लेकिन राज्यों के दबाव के चलते जून, 2018 में 10 अन्य शहरों की घोषणा की गई और जो मिशन साल 2022 तक पूरा होना था, उसे बढ़ाकर साल 2023 कर दिया गया।
शहरों के चयन की ही तरह केंद्र सरकार का यह नियम भी जानकारों के गले नहीं उतरा कि हर स्मार्ट सिटी की परियोजनाओं को पूरा करने की जिम्मेदारी एक लिमिटेड कंपनी (स्पेशल परपज व्हीकल) की होगी। अभी 3 जनवरी, 2019 को राज्यसभा में स्मार्ट सिटी मिशन में देरी की वजह को लेकर पूछे गए सवालों के जवाब में सरकार ने तर्क दिया कि एसपीवी और प्रोजेक्ट मैनेजमेंट कंसल्टेंट की नियुक्ति में 12 से 18 महीने का समय लग गया। लगभग सभी स्मार्ट सिटी नगर निगम क्षेत्र में शामिल हैं, जिनके आयुक्त कोई वरिष्ठ आईएएस अधिकारी होते हैं। लेकिन इन निगमों की बजाय एसपीवी की नियुक्ति राज्य सरकारों को समझ नहीं आई तो उन्होंने निगमायुक्तों को ही एसपीवी के मुख्य कार्यकारी अधिकारी (सीईओ) की अतिरिक्त जिम्मेवारी दे दी।
मंत्रालय कीओर से 3 अक्टूबर, 2018 को एक एडवाइजरी जारी कर कहा गया कि एसपीवी में फुलटाइम सीइओ तैनात किया जाए, क्योंकि पार्ट टाइम सीईओ स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट्स पर पूरा ध्यान नहीं दे पा रहे हैं। जब सरकार ने स्मार्ट सिटी मिशन डॉक्यूमेंट जारी किया था, तब कहा गया था कि साल 2015 से 2020 के बीच शहरों को 5 साल में 500 करोड़ रुपये केंद्र की ओर से दिए जाएंगे।
मैचिंग ग्रांट के तौर पर 30 फीसदी राज्य सरकार और 30 फीसदी शहरी निकाय संस्था की ओर से दिए जाएंगे। यही वजह है कि 2016 में जब पहली 20 स्मार्ट सिटीज का चयन किया गया था तो उन्हें यह कहते हुए दो साल का पैसा इकट्ठा (196 करोड़ रुपये) दिया गया था कि उन्हें पिछले साल का पैसा भी दिया जा रहा है। लेकिन यह परंपरा आगे नहीं चल पाई। उसके बाद चुने गए शहरों को इस तरह पैसा देना बंद कर दिया गया। कई शहरों को तो अब तक 54 से 56 करोड़ रुपये ही दिए गए हैं। मिशन डॉक्यूमेंट के मुताबिक, 2015 से लेकर 2018 के बीच केंद्र सरकार की ओर से 100 शहरों को अब तक 40 हजार करोड़ रुपये जारी किए जाने चाहिए थे।
लेकिन राज्यसभा को दिए गए जवाब में मोदी सरकार ने बताया है कि 1 नवंबर, 2018 तक केंद्र की ओर से 14,221 करोड़ रुपये ही रिलीज किए गए हैं और शहरों ने अब तक 3560.22 करोड़ रुपये ही खर्च किए हैं। इसी तरह 3 जनवरी, 2019 को मंत्रालय ने बताया कि 30 नवंबर, 2018 तक 2342 प्रोजेक्ट्स के टेंडर जारी किए गए। यानी अब तक आधे से भी कम परियोजनाओं के टेंडर जारी किए गए हैं। इनमें से 525 परियोजनाएं ही पूरी हो पाई हैं जिनकी लागत 10,079 करोड़ रुपये है। यानी कि परियोजनाओं के हिसाब से देखा जाए तो लगभग 9 फीसदीऔर लागत के हिसाब से देखा जाए तो मात्र 5 फीसदी ही काम पूरा हो पाया है।
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