स्मार्ट सिटी योजनाः मोदी सरकार की ‘अनस्मार्ट सिटी’ योजना साबित हुई

राजधानी दिल्ली के विज्ञान भवन में साल 2015 में पीएम नरेंद्र मोदी ने देश के 100 शहरों को स्मार्ट बनाने का दावा करते हुए बड़े-बड़े वादे किए थे। लेकिन साढ़े 3 साल से ज्यादा बीत जाने के बाद भी जमीन पर देश का एक भी शहर स्मार्ट होता नजर नहीं आ रहा है।

फोटोः सोशल मीडिया
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नवजीवन डेस्क

केंद्र की मोदी सरकार ने बड़े ताम-झाम के साथ सौ शहरों को स्मार्ट बनाने की महत्वाकांक्षी योजना शुरू की थी। इन्हें विकास के वैसे मॉडल सेंटर के रूप में विकसित करने की योजना थी जो अपने आसपास विकास का माहौल बना दें। लेकिन इस योजना का हश्र भी वही हुआ जो केंद्र की अन्य बड़ी-बड़ी योजनाओं का हुआ। आज स्थिति यह है कि कागज पर जो भी हो, जमीन पर कहीं कुछ नहीं दिखता। सरकार ने शायद मान लिया कि बैठकें करके ही सपनों को पूरा कर लिया जाएगा। अब लोगों में निराशा है, उन्हें लगता है कि सुहाने सपने दिखाने के अलावे सरकार ने कुछ नहीं किया। स्मार्ट सिटी योजना की जमीनी सच्चाई से पाठकों को बाखबर करने के लिए नवजीवन आज से एक श्रंखला शुरू कर रहा है, जिसकी पहली कड़ी में उत्तराखंड और बिहार में योजना की पड़ताल की गई है।

उत्तराखंड में स्मार्ट सिटी योजनाः ताबड़तोड़ हुई बैठकों का नतीजा निकला शून्य

उत्तराखंड की राजधानी देहरादून को स्मार्ट बनाने के लिए चयन किया गया था। बैठक पर बैठकें हुईं, लेकिन इसके अलावा ऐसा कुछ नहीं हुआ जो दिख सके। लोगों का मानना है कि स्मार्ट सिटी की सपना पूरा हो या नहीं, जीवन की मूलभूत सुविधाएं तो कम से कम मिलनी चाहिए।

साल 2005 में शुरू की गई जवाहर लाल नेहरू राष्ट्रीय शहरी नवीकरण योजना को डिब्बे में डालकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 100 शहरों को आधुनिक सुविधाओं से युक्त स्मार्ट सिटी बनाने की घोषणा की और मिशन के तीसरे चरण में 30 शहरों को स्मार्ट बनाने के लिए चुना गया जिसमें देहरादून का नंबर 16वां था। इन 30 शहरों के चुने वार्डों में चरणबद्ध तरीके से आधुनिक सुविधाओं की व्यवस्था होनी थी और इसके पहले चरण को पूरा करने की समय सीमा 2020 तय की गई थी।

देहरादून में कालिका मंदिर, तिलक रोड, खुड़बुड़ा, शिवाजी मार्ग, धामावाला और झंडा मोहल्ला सहित10 वार्डों को पूर्णतः और करनपुर, बकरालवाला, घंटाघर व एमकेपी रोड क्षेत्र को आंशिक रूप से अपग्रेड करना था। इस योजना के तहत1407.5 करोड़ की लागत से सड़कों का चौड़ीकरण, फुटपाथ निर्माण और चौराहों के चौड़ीकरण के साथ स्वास्थ्य, बिजली, पानी, टेलीफोन और सफाई-व्यवस्था जैसी बुनियादी सुविधाएं उपलब्ध कराना और इन्हें अत्याधुनिक प्रोद्योगिकी से जोड़ना था। देहरादून के चयन को डेढ़ साल से अधिक समय हो चुका है लेकिन अफसरों की बैठकों और बीजेपी नेताओं के बड़े-बड़े दावों के अलावा स्मार्ट सिटी के नाम पर यहां एक ईंट भी नहीं लगी और एक भी प्रस्ताव फाइलों से बाहर नहीं आ सका।

पिछले साल दिसंबर में कमांड एंड कंट्रोल सेंटर के लिए 234.85 करोड़ की डीपीआर तो मंजूर की गई मगर काम कब शुरू होगा, यह बताने को कोई तैयार नहीं। मिशन के तहत चयनित वार्डों में तीन स्मार्ट स्कूल बनाए जाने थे। साढ़े पांच करोड़ से अधिक धनराशि से राजकीय बालिका इंटर कॉलेज राजपुर रोड, राजकीय इंटर कॉलेज खुड़बुड़ा तथा जूनियर हाई स्कूल खुड़बुड़ा को स्मार्ट स्कूल के रूप में विकसित करना था, लेकिन हुआ कुछ नहीं।

देहरादून में सड़कों के बेहद तंग होने और वाहनों में बेतहाशा वृद्धि के कारण ट्रैफिक जाम गंभीर समस्या बन गया है। एक सर्वे के अनुसार शहर में निकलने वाला व्यक्ति औसतन 7 से 20 मिनट तक जाम में फंसता है और अगर इसी तरह वाहनों की संख्या बढ़ती रही और समाधान नहीं निकाला गया तो 2025 में हर वाहन करीब एक से डेढ़ घंटे तक जाम में फंसा रहेगा। अकेले देहरादून आरटीओ कार्यालय में पिछले कुछ महीनों पहले तक 8,87,678 वाहन पंजीकृत हो चुके थे। इस गंभीर समस्या से निजात के लिए राजपुर रोड पर घंटाघर से सिल्वर सिटी तक कम लागत वाले सेंसर लगाए जाने थे जिससे वाहन चालकों को पता चल सके कि पार्किंग की क्या स्थिति है? ऐसा होने से लोगों को जाम की समस्या से निजात मिलती। लेकिन अभी तक इस दिशा में भी कोई पहल नहीं हुई।

स्मार्ट सिटी के तहत रिस्पना पुल से महाराजा अग्रसेन चौक (हरिद्वार रोड), स्वर्गीय माहेश्वरी चौक से बहल चौक (ईसी रोड), घंटाघर से दिलाराम चौक (राजपुर रोड) और घंटाघर से किशन नगर चौक (चकराता रोड) को स्मार्ट बनाना था। साथ ही, इंटेलिजेंट ट्रैफिक सिस्टम, स्मार्ट पार्किंग समेत अन्य सुविधाएं भी विकसित की जानी थी।

यह दावा भी फिलहाल हवा-हवाई ही नजर आ रहा है। योजना के तहत शहर के 22 चौराहों को चौड़ा और सुंदर बनाना था। एक साल पहले हुई बैठक में गांधी पार्क, परेड मैदान, कलेक्ट्रेट और कांवली रोड स्थित एमडीडीए कॉलोनी में स्मार्ट टॉयलेट लगाए जाने थे।

स्मार्ट सिटी के तहत बिजली, पानी, यातायात, सीवर आदि नागरिक सुविधाओं के लिए आईटी पार्क में एक कंट्रोल (इंटीग्रेटेड कंट्रोल कमांड सेंटर) रूम बनाया जाना था। इसके जरिये स्मार्ट सिटी में दी जाने वाली सुविधाओं की निगरानी और संचालन किया जाना था। इसी तरह शहर में हाइब्रिड बसें चलाने का निर्णय लिया गया है जिसके तहत रेलवे स्टेशन से आईएसबीटी और आईएसबीटी से जौली ग्रांट हवाई अड्डे तक यह सेवा शुरू होनी थी।

दून में 24 वाटर एटीएम लगाने की भी योजना है ताकि लोगों को पीने का साफ पानी मिल सके। लेकिन ये तमाम सरकारी दावे अभी तक दूर-दूर तक साकार होते नजर नहीं आ रहे हैं। जबकि कुछ ही महीनों बाद लोकसभा चुनाव की आचार संहिता लग जानी है।

बिहार में स्मार्ट सिटी का हालः होगा-बनेगा-दिखेगा…... सुनते-सुनते थक गए!

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की महत्वाकांक्षी स्मार्ट सिटी योजना में अपने नाम शुमार कराने के लिए बिहार के शहरों ने काफी मशक्कत की, लेकिन इस चरण के पूरा होने के बाद उनकी उम्मीदें धरी की धरी रह गईं। केंद्र सरकार अपना कार्यकाल खत्म करने वाली है और जमीन पर दिखाने के लिए इनमें से किसी शहर के पास कुछ नहीं। राजधानी पटना में बिहार विधानसभा से कुछ ही दूर स्मार्ट सिटी का डेवलपमेंट एरिया है लेकिन यहां अब भी लोग खुले में शौच जाते हैं, सीवर का पानी इधर-उधर बहता रहता है, कचरे का टीला खड़ा हो गया है। इनकी मिलीजुली दुर्गंध के बीच लोग समय-समय पर सुनते-पढ़ते रहते हैं कि स्मार्ट सिटी ऐसा होगा-वैसे होगा, यहां ये बनेगा-वहां वो बनेगा, ऐसा दिखेगा-वैसा दिखेगा। लेकिन जमीन पर कुछ भी नहीं हो रहा।

स्मार्ट सिटी के लिए चयन की दौड़ में पटना काफी पिछड़ा हुआ था। सूची में आने के लिए पटना नगर निगम ने जोरदार मुहिम चलाई। खूब प्रचार किया और फिर तरह-तरह के उलटफेर दिखाते हुए रिपोट-प्रजेंटेशन के जरिए पटना को स्मार्ट सिटी सेलेक्शन के तीसरे राउंड में शामिल करा लिया। 2.94 लाख घरों के अलावा सड़क किनारे, पुल के नीचे, फुटपाथऔर झोपड़ियों में बसे 16.84 लाख से ज्यादा की जनसंख्या वाले पटना के तीन किलोमीटर हिस्से को एरिया बेस्ड डेवलपमेंट के लिए चुना गया।

महागठबंधन के लिए जनादेश लेकर आए नीतीश कुमार पहले तो बीजेपी की इस योजना को लेकर हतोत्साहित करने वाले बयान दे रहे थे, लेकिन बीजेपी का दामन थामा तो स्मार्ट सिटी के काम में तेजी की भी उम्मीद जगी। इसी उम्मीद के तहत नगर निगमने ताकत लगाई, लेकिन गति सिर्फ उसी समय दिखी। स्मार्ट सिटी की सूची में आने के बाद जमीनी स्तर पर जो काम दिखना चाहिए था, वह आज तक नहीं दिखा।

पटना में 2499 करोड़ खर्चकर स्मार्ट सिटी विकसित करने की योजना का काम जिस धीमी गति से हो रहा है, उससे आम लोग चिंतित हैं और परेशान भी। पांच प्रोजेक्ट का काम 15 दिसंबर तक शुरू होना था, लेकिन तकनीकी प्रक्रिया पूरी नहीं होने के कारण यह 2019 के खाते में आ गया। इसमें 140 करोड़ रुपये का काम होना है। इसके तहत प्रारंभिक तौर पर सभी 75 वार्डों में जन सुविधा केंद्र, वीरचंद पटेल पथ स्मार्ट रोड प्रोजेक्ट, अदालतगंज तालाब का विकास और गांधी मैदान में मेगा स्क्रीन लगाने का टेंडर फाइनल होने के बाद भी 2018 में काम शुरू नहीं हो सका।

अधिकारी होगा, बनेगा, दिखेगा जैसी बातें ही करते हैं। पूछने पर कहते हैं कि राजधानी के हर इलाके को स्मार्ट कंट्रोल एंड कमांड सेंटर से जोड़ा जाएगा ताकि ट्रैफिक की लाइव मॉनिटरिंग हो। इस बात का जवाब नहीं है कि अब तक लगे सीसीटीवी कैमरों से क्या रिजल्ट आया, लेकिन अधिकारी यह जरूर बताते हैं कि हर चौक-चौराहे पर हाई क्वालिटी के कैमरे लगेंगे और इसकी मॉनीटरिंग ऐसे की जाएगी कि जाम की स्थिति में ट्रैफिक को डायवर्ट किया जा सके।

काम की स्थिति पर अधिकारी कहते हैं कि गांधी मैदान के आसपास एक-दो साल में बहुत कुछ दिखेगा। गांधी मैदान को जोड़ने वाली 16 सड़कों को स्मार्ट सड़क में बदला जाएगा। गांधी मैदान से फ्रेजर रोड होते हुए स्टेशन गोलंबर, फिर आगे जीपीओ से आर. ब्लॉक होकर इनकम टैक्सऔर आगे मंदिरी नाला होकर गांधी मैदान के कलेक्ट्रेट तक की सभी प्रमुख 16 सड़कें बेहतरीन हो जाएंगी। काम में इतना वक्त क्यों लग रहा है, इसके जवाब में अधिकारी दोबारा टेंडर की बात कह रहे हैं, क्योंकि पहला टेंडर फेल हो गया था।

मुजफ्फरपुर में कंसल्टेंट पर उतारा गुस्साः मुजफ्फरपुर में स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट की हालत पहले ही खराब है। यहां सौंदर्यीकरण से जुड़े नौ डीपीआर की तकनीकी स्वीकृति का मामला लटके होने की बात नगर विकास मंत्री तक पहुंची तो उन्होंने कंसल्टेंट बदलने तक की चेतावनी दे दी। नगर आयुक्त ने दो कदम आगे बढ़कर घोषणा कर दी कि अब कंसल्टेंट के सीओओ अपनी निगरानी में प्रोजेक्ट पूरा कराएंगे। स्मार्ट सिटी के तीसरे राउंड में मुजफ्फरपुर के चार वर्ग किमी को एरिया बेस्ड डेवपलमेंट के लिए चयनित किया गया था। यहां कुल 1580 करोड़ रुपये का प्रोजेक्ट दिया गया है।

भागलपुर में फाइलों की जांचः भागलपुर में स्मार्ट सिटी की अजीब स्थिति हो गई। काम कुछ होता तो दिखा नहीं, लेकिन इसके फंड में उलटफेर की बात सामने आ गई। भागलपुर स्मार्ट सिटी लिमिटेड के पदेन अध्यक्ष ने डीएम को कहा है कि वह स्मार्ट सिटी से जुड़े कैशबुक, बैंक स्टेटमेंट और साल भर में किए भुगतान से संबंधित फाइलों की जांच कराएं। जांच के लिए बाकायदा तीन सदस्यीय जांच टीम भी गठित कर दी गई। खास बात यह है कि यहां अब तक स्मार्ट सिटी की बैठक पर ही पैसे खर्च हुए हैं। काम कुछ नहीं हुआ। भागलपुर में 1309 करोड़ रुपये से दो वर्ग किलोमीटर को एरिया बेस्ड डेवलपमेंट के लिए चिह्नित किया गया है।

बिहारशरीफ में जागे लोगों के कारण थोड़ी गतिः बिहारशरीफ में इस हिसाब से स्थिति कुछ उत्साहजनक है, क्योंकि उम्मीद नहीं होते हुए भी नगर निगम और बाशिंदों ने ताकत लगाकर अब तक विकास की चर्चा से दूर रहे शहर को स्मार्ट सिटी की सूची में शामिल कराया। पांच वर्ग किमी के दायरे को डेवलप किया जाना है। इसके लिए 1517 करोड़ रुपये की योजनाएं दी गई हैं। यहां कई प्रोजेक्ट का काम जमीन पर भी दिख रहा है।

(उत्तराखंड से जयसिंह रावत और पटना से शिशिर की रिपोर्ट)

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