राम मंदिर ट्रस्टः अयोध्या के साधू-संत हुए नाराज, मुस्लिम पक्ष भी मस्जिद की जगह से बिफरा
राम मंदिर के लिए वर्षों से आंदोलन कर रहे अयोध्या के साधु-संत मोदी सरकार द्वारा गठित राम मंदिर निर्माण ट्रस्ट से नाराज हैं। उनका कहना है कि इसमें पुराने लोगों को जगह नहीं दी गई है। पुराने लोगों के साथ अन्याय किया गया है, इसलिए वे इसका विरोध करेंगे।
सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद केंद्र की मोदी सरकार द्वारा राम मंदिर निर्माण ट्रस्ट के ऐलान के बाद नया विवाद खड़ा हो गया है। बुधवार को संसद में पीएम मोदी द्वारा राममंदिर ट्रस्ट के ऐलान के बाद सामने आई ट्रस्ट की रूपरेखा को लेकर अयोध्या के साधू-संतों में नाराजगी है। वहीं मुस्लिम पक्ष भी सुप्रीम कोर्ट के फैसले के अनुसार मस्जिद के लिए सुदूर इलाके में जमीन देने से नाराज है।
दरअसल, बुधवार को पीएम मोदी के संसद में श्रीराम मंदिर तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट के ऐलान के बाद सरकार ने इसका अध्यक्ष अयोध्या विवाद में रामलला पक्ष के वकील रहे के परासरन को बनाया है। लेकिन इस फैसले से वर्षों से राम मंदिर के लिए आंदोलन कर रहे अयोध्या के साधु-संत नाराज हैं और उन्होंने इसका विरोध कर दिया है। इनका कहना है कि पुराने लोगों के साथ अन्याय किया गया है। इस ट्रस्ट में पुराने लोगों को जगह नहीं दी गई, इसलिए वे इसके खिलाफ आवाज उठाएंगे।
इतना ही नहीं, सरकार के फैसले से अयोध्या के साधु-संत इस कदर नाराज हैं कि उन्होंने इसका विरोध करने का फैसला लिया है और आगे की रणनीति के लिए बैठक भी बुलाई है। अयोध्या के साधू-संतों की यह बैठक दिगंबर अखाड़े के महंत सुरेश दास ने बुलाई है। मीडिया से बातचीत में उन्होंने कहा कि सरकार ने संतों का अपमान किया है। सीएम योगी ने खुद नृत्य गोपाल दास को ट्रस्ट में शामिल करने की बात कही थी, लेकिन उन्हें भी शामिल नहीं किया गया। हमने एक बैठक बुलाई है, जिसमें आगे के कदम पर फैसला लिया जाएगा। जरुरत पड़ने पर आंदोलन करने से भी पीछे नहीं हटेंगे।
वहीं श्रीराम मंदिर तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट के सदस्यों के नाम का ऐलान होने के बाद राम मंदिर के प्रमुख पक्षकारों में रहे राम जन्मभूमि न्यास के अध्यक्ष महंत नृत्य गोपाल दास ने भी आरोप लगाया कि सरकार ने अयोध्या के संतों-महंतों का अपमान किया है। उन्होंने कहा कि जिन लोगों ने राम मंदिर के लिए अपना पूरा जीवन बलिदान कर दिया, उन्हें इस ट्रस्ट में शामिल नहीं किया गया। आज उनकी कहीं पूछ नहीं है। इस ट्रस्ट के जरिये अयोध्या के साधू-संतों की अवहेलना की गई है।
बता दें कि मोदी सरकार द्वारा अयोध्या में राम मंदिर निर्माण के लिए गठित ‘श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र’ के सदस्यों में वरिष्ठ अधिवक्ता के.परासरण (अध्यक्ष), विमलेंद्र मोहन प्रताप मिश्र (अयोध्या), जगदगुरु शंकराचार्य, ज्योतिषपीठाधीश्वर स्वामी वासुदेवानंद सरस्वती जी महाराज (इलाहाबाद), जगदगुरु माधवाचार्य स्वामी विश्व प्रसन्नतीर्थ जी महाराज (उडुपी के पेजावर मठ से), युगपुरुष परमानंद जी महाराज (हरिद्वार) और स्वामी गोविंददेव गिरि जी महाराज (पुणे) शामिल हैं।
इस ट्रस्ट के सदस्यों को लेकर भी विवाद खड़ा हो गया है। महंत नृत्य गोपाल दास के उत्तराधिकारी कमल नयन दास का कहना है कि अयोध्या के साधू-संत सरकार के इस ट्रस्ट को मानने के लिए तैयार नहीं हैं। उन्होंने आरोप लगाया है कि ट्रस्ट में वैष्णव समाज के लोगों का अपमान किया गया है। उन्होंने ट्रस्ट में अयोध्या राजघराने के विमलेश मोहन प्रताप मिश्रा को शामिल करने पर सवाल उठाया है। उन्होंने कहा कि वे एक राजनीतिक व्यक्ति हैं। उन्हें ट्रस्ट में क्यों शामिल किया गया।
दूसरी ओर, सुप्रीम कोर्ट के फैसले के अनुसार अयोध्या में मस्जिद के लिए उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा दी गई जमीन की जगह को लेकर मुस्लिम पक्ष भी असंतुष्ट है। योगी सरकार ने सुन्नी वक्फ बोर्ड को अयोध्या जिला मुख्यालय से लगभग 18 किलोमीटर दूर लखनऊ राजमार्ग के पास सोहावल तहसील के धन्नीपुर गांव में जमीन का आवंटन पत्र दिया है। लेकिन जमीन की जगह को लेकर मुस्लिम पक्ष नाराज हैं। उनका कहना है कि मस्जिद के लिए जो जमीनु दी गई है, वह काफी दूर है।
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