मुजफ्फरनगर में नफरत का चक्रव्यूह तोड़ने उतर रहे हैं ‘छोटे चौधरी’ अजित सिंह!
आरएलडी सुप्रीमो चौधरी अजीत सिंह इस बार मुजफ्फरनगर से लोकसभा चुनाव लड़ंगे। अजीत सिंह ने इस बात का ऐलान शनिवार को मुजफ्फरनगर में गठबंधन द्वारा आयोजित एक बैठक में किया। एसपी, बीएसपी और आरएलडी में तय समझौते के आधार पर आरएलडी के खाते में तीन लोकसभा सीटें आई हैं।
आरएलडी सुप्रीमो चौधरी अजीत सिंह ने मुजफ्फरनगर से चुनाव लड़ने का ऐलान कर दिया है। यह ऐलान उन्होंने शनिवार को मुजफ्फरनगर में गठबंधन द्वारा आयोजित की गई एक मीटिंग में किया। इसके एक दिन बाद ही चुनाव आयोग ने देश भर लोकसभा चुनाव की तारीखों का ऐलान कर दिया। समाजवादी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी और राष्ट्रीय लोक दल में तय समझौते के आधार पर आरएलडी के खाते में तीन लोकसभा सीटें आई हैं। अजित सिंह की परंपरागत सीट बागपत पर उनके बेटे जयन्त चौधरी चुनाव लड़ेंगे।
चौधरी अजित सिंह लगभग एक साल से लगातार मुजफ्फरनगर में गांव-गांव घूम रहे थे। कैराना उपचुनाव भी उन्होंने बेहद गंभीरता से लड़ा था। पिछले एक साल में उन्होंने यहां डेढ़ दर्जन से ज्यादा बैठकें की है। इस दौरान वो किसान नेताओं के घर घर गए और उलेमाओं से भी मिले। और साथ ही दंगे से जाटों और मुस्लिम की बीच पैदा हुई खाई पाटने की कोशिश की।
शनिवार को चौधरी अजित सिंह में मुजफ्फरनगर से लड़ने के अपने फैसले पर यह भी कहा कि वो बीजेपी को दफनाने की नीयत रखते हैं क्योंकि बीजेपी समाज मे नफरत फैलाने का काम करती है।उन्होंने कहा कि 2014 में मुजफ्फरनगर दंगे का षडयंत्र करके वो सत्ता में आए थे। इस बार मुजफ्फरनगर से ही उनकी हार तय होगी। मुजफ्फरनगर में पहले चरण में 11 अप्रैल को चुनाव है।
अजित सिंह के मुजफ्फरनगर से चुनाव लड़ने के बाद गठबंधन के नेताओं में जबरदस्त उत्साह है।2014 में बसपा प्रत्याशी रहे पूर्व सांसद क़ादिर राणा ने उनके चुनाव का खर्च उठाने और उन्हें चुनाव प्रचार के लिए अपनी सभी गाड़ियां देने तथा अपना एक बंगला बतौर चुनाव कार्यालय देने की घोषणा की है। क़ादिर राणा आरएलडी से भी विधायक रह चुके हैं।
यही नहीं 2014 में समाजवादी पार्टी के लोकसभा प्रत्याशी रहे वीरेंद्र सिंह भी चौधरी अजित सिंह की पार्टी से पांच बार विधायक रह चुके हैं। आरएलडी के पश्चिमी उत्तर प्रदेश के प्रवक्ता अभिषेक गुर्जर कहते हैं, "चौधरी साहब बहुत बड़े कद के नेता हैं, मुजफ्फरनगर के आसपास के दर्जनों नेतागणों के नाम के आगे माननीय शब्द उनके दल की वजह से लगा है। किसानों में उनका सम्मान है। यही वजह है कि गठबंधन के समस्त नेता उन्हें दिल से जीतने की कवायद कर रहे हैं।"
2014 की लोकसभा चुनाव में मुजफ्फरनगर से बीजेपी के संजीव बालियान सांसद चुने गए थे।उन्होंने बीएसपी के क़ादिर राणा को चार लाख वोटों से हराया था। संजीव बालियान पर एक ही जाति के लोगों के लिए काम करने के आरोप लगते रहे हैं। चर्चा है कि इस बार बीजेपी उन्हें टिकट नहीं दे रही।
2013 में मुजफ्फरनगर में हुए भीषण दंगे ने पश्चिमी उत्तर प्रदेश में जबरदस्त धुर्वीकरण किया था।पहले चरण के चुनाव के बाद देश भर में एक अलग तरह का माहौल बना और बीजेपी पूर्ण बहुमत से सत्ता में आई।
लेकिन इस बार माहौल थोड़ा अलग है। किसान राहुल राठी के मुताबिक गन्ना किसानों के भुगतान, बिजली के बिल को लेकर किसानों का उत्पीड़न, मेरठ-मुजफ्फरनगर रेल मार्ग का दोहरीकरण, पानीपत-खटीमा और मेरठ-करनाल राजमार्ग निर्माण, निरंकुश मनमानी करते अफसर और प्रधानमंत्री की जुमलेबाजी के साथा साथ दो समुदायों में नफरत फैलाना का षड्यंत्र इस बार के प्रमुख मुद्दे हैं।
वहीं अभिषेक का मानना है कि मुजफ्फनरग की जनता इस चुनाव में बीजेपी से मुक्ति पा लेगी। वो कहते हैं, "मुजफ्फरनगर में कुल 16 लाख 85 हजार 594 मतदाता है।इनमे 5 लाख 70 हजार सिर्फ मुसलमान है जबकि ढाई लाख दलित है।1 लाख 90 हजार जाट मतदाता है।इसके अलावा सेकुलर हिन्दू वोट है जो भाजपा के झूठ से मुक्ति चाहता है।"
भारतीय किसान यूनियन के जिलाध्यक्ष राजू अहलावत के अनुसार मुजफ्फरनगर की धरती को किसानों की राजधानी कहा जाता है। अभी किसानों को पानी की बौछारों और बदन पर पड़ी लाठी याद है और कृषि कैपिटल से किसान विरोधियों को जोरदार जवाब दिया जाएगा।
चौधरी अजित सिंह के मुजफ्फरनगर से चुनाव लड़ने पर आसपास की सीटों पर भी असर पड़ेगा कैराना, बिजनौर और मेरठ ऐसी सीटें है जहां अजित सिंह का अच्छा प्रभाव है।
पूर्व सांसद अमीर आलम कहते हैं, "चौधरी साहब बड़े किसान नेता हैं। उनकी राजनीति साम्प्रदयिकता विरोधी है। उनके पिता बड़े चौधरी चरण सिंह ने भी मुसलमानों को राजनीतिक प्रतिनिधित्व दिया और हाल में कैराना में उन्होंने तबस्सुम हसन की जीत सुनिश्चित करने के लिए घर-घर दौरे किए। अब उनको यहां से सांसद बनाने के लिए सभी गठबंधन के नेता और जनता जोशोखरोश से लग रहे हैं।"
पिछले कुछ माह से बीजेपी के खेमे में भी चौधरी अजीत सिंह के मुजफ्फरनगर से चुनाव लड़ने की अटकलें थी। यही वजह है कि बीजेपी जाट वोट को रिझाने की कोशिश में लगी हुई थी। इसके लिए योगी सरकार ने दंगे के दौरान दर्ज हुए 38 मुकदमे वापस लेने का कार्ड खेल।
समाजवादी पार्टी के नेता प्रमोद त्यागी के मुताबिक उनका मकसद धुर्वीकरण को हवा देना था, मगर इसमें कानूनी अड़चन बहुत है। यह भी एक ढकोसला है, जैसा मोदी सरकार करती रही है।इस बार बीजेपी उसे दोहरा नहीं पाएगी।
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