केंद्र सरकार ने कहा था मनरेगा के तहत हो चुका 85 फीसदी भुगतान, असलियत में सिर्फ 32 फीसदी, शोध रिपोर्ट का दावा
ग्रामीण विकास मंत्रालय ने पिछले दिनों कहा था कि इस वित्तीय वर्ष में मनरेगा के तहत 85 फीसदी पारिश्रमिक का भुगतान कर दिया गया है, जबकि अध्ययन के अनुसार अब तक केवल 32 फीसदी का ही भुगतान किया गया है।
मनरेगा को लेकर हुए एक ताजा अध्ययन में कई चौंकाने वाले तथ्य सामने आए हैं, जिनसे केंद्र के कई दावे सिरे से खारिज हो जाते हैं। सबसे बड़ी बात तो यह है कि ग्रामीण विकास मंत्रालय ने पिछले दिनों कहा था कि इस वित्त वर्ष में मनरेगा के तहत 85 फीसदी पारिश्रमिक का भुगतान समय पर कर दिया गया है, जबकि अध्ययन के अनुसार अब तक केवल 32 फीसदी का ही भुगतान समय पर किया गया है। अध्ययन में इस महत्वपूर्ण तथ्य को भी रेखांकित किया गया है कि वित्त वर्ष 2018 की पहली तिमाही में ही मनरेगा के लिए आवंटित बजट का 90 फीसदी हिस्सा खर्च किया जा चुका है। ऐसे में बड़ा सवाल यह है कि मनरेगा में काम करने वाले मजदूरों का बकाया पारिश्रमिक कैसे दिया जाएगा?
1 दिसंबर को ‘नरेगा संघर्ष मोर्चा’ के सामाजिक कार्यकर्ताओं ने राजेन्द्रन नारायणन, सकीना धोराजीवाला और राजेश गोलानी द्वारा किया गया मनरेगा भुगतान में हो रही देरी पर आधारित यह शोध अध्ययन मीडिया के साथ साझा किया। राजेंद्रन नारायणन ने कहा कि इस अध्ययन में वित्त वर्ष 2018 की पहली दो तिमाही में 10 राज्यों की 3,603 पंचायतों में हुए लगभग 45 लाख लेन-देन का विश्लेषण किया गया है। महत्वपूर्ण बात यह है कि इसके लिए ग्रामीण विकास मंत्रालय के ज्यादातर आंकड़ों का इस्तेमाल किया गया है।
नरेगा संघर्ष मोर्चा से जुड़े पहले भी केंद्र सरकार के दावों और मंशा पर कई बार संदेह जता चुके हैं। 2016 में स्वराज अभियान के नेता योगेन्द्र यादव की याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र से मनरेगा के तहत बकाया मजदूरी जल्द से जल्द देने को कहा था। इस मामले में वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण ने मनरेगा मजदूरों का पक्ष कोर्ट के सामने रखा था। प्रेस कांफ्रेंस में प्रशांत भूषण ने कहा कि मनरेगा योजना को मोदी सरकार बंद करने की साजिश रच रही है। योगेंद्र यादव ने कहना था कि पिछले कई सालों से मजूदरों का पैसा रोक कर रखा गया है और यह देरी जानबूझकर की जा रही है।
नरेगा संघर्ष मोर्चा का कहना है कि वित्त वर्ष 2018 की शुरूआत से ही उन्होंने मजदूरी भुगतान में जानबूझकर की जा रही देरी, मनरेगा के बजट के तहत मजदूरों के बकाया पारिश्रमिक की तरफ ध्यान दिलाया है, लेकिन उसके बावजूद ग्रामीण विकास मंत्रालय ने इस जानकारी पर कोई कार्रवाई नहीं की, जबकि वित्त मंत्रालय ने मजदूरी भुगतान में देरी को लेकर तैयार की गई रिपोर्ट को जांच-परख की और 21 अगस्त को जारी अपने आंतरिक पत्र में मनरेगा में जारी इन समस्याओं को स्वीकार किया।
इस अध्ययन को आधार बनाकर मोर्चा ने दावा किया है कि पर्याप्त फंड के अभाव में मनरेगा में इस तरह की समस्याएं आ रही है और एक मांग आधारित कार्यक्रम होने का इसका पूरा उद्देश्य ही भटक गया है।
सुप्रीम कोर्ट के आदेश को ध्यान में रखते हुए उन्होंने मांग की है कि जल्द से जल्द सारे बकाया पारिश्रमिक को चुकाया जाए, मजदूरी भुगतान में राज्य और केंद्र के स्तर पर हुई देरी का मजदूरों को पूरा मुआवजा दिया जाए, मनरेगा कार्यक्रम के लिए पर्याप्त फंड की व्यवस्था की जाए और मांग के आधार पर काम दिया जाए।
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