मोदी सरकार की ‘उज्ज्वला योजना’ का हाल, कनेक्शन 50 प्रतिशत बढ़े, लेकिन खपत बढ़ी सिर्फ 15 फीसद
मोदी सरकार के कार्यकाल का पहला आधा हिस्सा उम्मीद जताती योजनाओं की घोषणाओं का रहा तो दूसरा उनकी कलई उतारने वाला। तमाम बड़ी-बड़ी योजनाएं लक्षित परिणाम पाने में विफल रहीं। योजनाओं की पड़ताल करती नवजीवन की श्रृंखला में इस बार पेश है उज्ज्वला योजना की हकीकत।
केंद्र की मोदी सरकार का पहला आधा हिस्सा उम्मीद जताती योजनाओं का रहा तो दूसरा इनकी कलई उतारने वाला। तमाम बड़ी-बड़ी योजनाएं लक्षित परिणाम पाने में विफल रहीं। लेकिन इसका संदेश लोगों के बीच काफी गलत गया। उन्हें लगा जैसे मोदी सरकार ने उनके साथ धोखाधड़ी कर दी है। बेशक, चुनावी समय में इसके सियासी निहितार्थ जो भी निकाले जाएं, इतना तो तय है किइन योजनाओं के नाकाम रहने से आम लोगों में निराशा और खीझ है। सरकारी योजनाओं की पड़ताल करती नवजीवन की श्रृंखला में इस बार पेश है उज्ज्वला योजना की हकीकत।
यूपीए सरकार की योजनाओं का टारगेट बढ़ा-चढ़ा कर अपनी योग्यता साबित करने की प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की एक और कोशिश नाकाम हुई है। इससे सरकारी खजाने की बर्बादी हुई है सो अलग। यूपीए सरकार में साल 2009 से चल रही राजीव गांधी ग्रामीण एलपीजी वितरण योजना को बंद कर मोदी सरकार ने प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना शुरू की और 8 करोड़ गैस सिलेंडर बांटने की ऐसी जल्दबाजी दिखाई कि योजना पर ही सवाल उठने लगे हैं।
जब मोदी सरकार ने राजीव गांधी ग्रामीण एलपीजी वितरण योजना बंद की थी तो उस समय तक देश के 1.01 करोड़ से अधिक गरीबी रेखा से नीचे रह रहे परिवारों (बीपीएल) को मुफ्त गैस कनेक्शन बांटे जा चुके थे और इस योजना से सरकार पर कोई अतिरिक्त भार भी नहीं पड़ रहा था। दरअसल, इस योजना के तहत तेल कंपनियां अपने कॉर्पोरेट सामाजिक जिम्मेदारी (सीएसआर) खाते से बीपीएल परिवारों को मुफ्त कनेक्शन देती थीं। 31 मार्च, 2016 तक ओएनजीसी, गेल, ओआईएल, एचपीसीएल और बीपीसीएल कुल 69 लाख 32 हजार और इंडियन ऑयल लगभग 32.4 लाख कनेक्शन दे चुकी थीं।
मोदी सरकार ने राजीव गांधी एलपीजी वितरण योजना बंद कर दी और 1 मई, 2016 को प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना (पीएमएवाई) शुरू की। इसके तहत पहले बीपीएल परिवारों को गैस कनेक्शन और 1600 रुपये दिए जाते हैं। ये 1600 रुपये किस्तों में वापस ले लिए जाते हैं। अब बीपीएल परिवारों के साथ-साथ अन्य गरीब परिवारों को भी इस योजना में शामिल कर लिया गया है। 31 दिसंबर, 2015 तक एलपीजी उपभोक्ताओं की संख्या 16.31 करोड़ थी जिनकी संख्या 31 दिसंबर, 2018 में बढ़कर 25.2 करोड़ हो गई, इसमें उज्ज्वला उपभोक्ता भी शामिल हैं। यानी कि तीन साल में एलपीजी उपभोक्ताओं की संख्या में 50 फीसदी का इजाफा हुआ।
इस योजना में 1 फरवरी, 2019 तक 6.31 करोड़ परिवारों को सिलेंडर दिए जा चुके हैं। हालांकि संसद में सरकार ने जवाब में बताया है कि 80 फीसदी लोग ही दोबारा सिलेंडर भरवा रहे हैं, यानी कि लगभग 1 करोड़ परिवारों ने सिलेंडर तो ले लिया, लेकिन उसे दोबारा भरवाया नहीं और अब भी चूल्हे पर ही खाना पका रहे हैं। इतना ही नहीं, जो 5.30 करोड़ लोग दोबारा सिलेंडर भरवा भी रहे हैं, वे भी इस गैस सिलेंडर का इस्तेमाल पूरी तरह कर रहे हैं, इस पर भी सवाल है।
एक और उदाहरण। सरकार के आंकड़ों के मुताबिक, सबसे अधिक 1.10 करोड़ पीएमयूवाई कनेक्शन उत्तर प्रदेश में दिए गए। लेकिन 6 फरवरी, 2019 को संसद में दिए गए जवाब के मुताबिक, केवल 40,48,596 उपभोक्ता ही सिलेंडर रिफिल करा रहे हैं। यानी कि लगभग 62 फीसदी उपभोक्ता सिलेंडर रिफिल नहीं करा रहे हैं।
संसद में ही दिए गए एक अन्य जवाब में सरकार ने कहा है कि जहां सामान्य उपभोक्ता साल भर में 7.3 बार सिलेंडर भरवाते हैं, वहीं पीएमएवाई उपभोक्ता 3.28 बार ही सिलेंडर भरवाते हैं। सरकार खुद मानती है कि गैस की अनुपलब्धता और एलपीजी की कीमतों के कारण पीएमएयू उपभोक्ता सिलेंडर नहीं भरवा रहे हैं। हालांकि जवाब देते वक्त सरकार यह भी जोड़ देती है कि इन लोगों की खाने और खाना बनाने की आदतों की वजह से सिलेंडर रिफिल नहीं हो रहे हैं।
आपूर्ति के बारे में नहीं सोचा
दरअसल, सरकार ने प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना के तहत करोड़ों गैस सिलेंडर बांटने का तो फैसला ले लिया लेकिन सिलेंडर आपूर्ति कैसे होगी, इस बारे में नहीं सोचा। सरकार के ही आंकड़े बताते हैं कि देश में पहले 187 बॉटलिंग प्लांट थे। 2018 में इनकी संख्या तीन बढ़ गई, मतलब, 191 प्लांट काम कर रहे थे। हर साल एक ही प्लांट लगाया गया। साल 2018 में सरकार को लगा कि प्लांट की संख्या बढ़ानी चाहिए तो योजना बनाई गई कि देश में 60 प्लांट लगाए जाएंगे और इन पर 400 करोड़ रुपये निवेश किए जाएंगे।
ऐसे में, अनुमान लगाया जा सकता है कि देश में हर साल करोड़ों कनेक्शन धारकों की संख्या तो बढ़ रही है, लेकिन जब बॉटलिंग प्लांट ही नहीं हैं तो कितनी गैस लोगों तक पहुंच रही होगी। पेट्रोलियम प्लानिंग एंड एनालिसिस सेल (पीपीएसी) के आंकड़ों के मुताबिक, 2016 में अप्रैल से दिसंबर के बीच एलपीजी की खपत 15.9 मिलियन मीट्रिक टन खपत रही, जबकि अप्रैल से दिसंबर 2018 के बीच 18.1 मिलियन मीट्रिक टन खपत हुई यानी कि खपत केवल 2.2 मीलियन मीट्रिक टन ही बढ़ी। यानी कि पीएमयूवाई शुरू होने के बावजूद खपत में केवल 15 फीसदी का ही इजाफा हुआ।
सब्सिडी को खाते से जोड़ने का असर
उज्ज्वला योजना की विफलता के लिए मोदी सरकार की दूसरी नीतियां भी जिम्मेवार मानी जा सकती हैं। दरअसल, 10 मार्च, 2016 को सरकार ने गैस कीमतों पर सरकार का नियंत्रण समाप्त करने का निर्णय लिया। और तो और, सरकार ने सब्सिडी सीधे देने की बजाय बैंक खातों में देने का भी निर्णय लिया। इसका सीधा असर गरीब उपभोक्ताओं पर पड़ा। जब रसोई गैस की कीमत बाजार तय करने लगा तो गैस की कीमतें हर महीने बदलने लगी और नवंबर में तो पहली बार गैस की कीमत 1000 रुपये प्रति सिलेंडर तक पहुंच गई थी। जाहिर सी बात है, जो गरीब परिवार लगभग मुफ्त में लकड़ी या कोयले का इस्तेमाल करके अपना चूल्हा जला रहे हैं, उनके लिए 1000 रुपये का भुगतान करना आसान नहीं है।
गैस एजेंसियों पर दबाव
सरकार इन खामियों को दूर करने की बजाय लोकसभा चुनाव में उज्ज्वला योजना के आंकड़ों को भुनाने की कोशिश कर रही है। इसके लिए जहां गैस एजेंसियों पर दबाव बनाया जा रहा है कि वे अधिक से अधिक लोगों को कनेक्शन दें, वहीं गैस रिफिलिंग के आंकड़ों को भी दुरुस्त करने का दबाव गैस एजेंसी संचालकों पर है। इसीलिए गैस एजेंसी संचालक सिलेंडर रिफिल के नाम पर उपभोक्ताओं को छोटे सिलेंडर (5 किलो गैस वाले) लेने या अपने सिलेंडर में 2 से 4 किलो गैस भरवाने का आग्रह कर रहे हैं। उत्तर प्रदेश के एक गैस एजेंसी संचालक ने नाम न छापने की शर्त पर कहा कि उन पर तेल कंपनियों का दबाव है कि वह पीएमयूवाई उपभोक्ताओं के घर जा-जाकर उन्हें गैस भरवाने के लिए कहें। ऐसे में, हम लोग दो-चार किलो गैस भर कर अपना रजिस्टर मेनटेन कर रहे हैं।
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