‘गुजरात फाइल्स’ के प्रकाशन के बाद से मेरी मुश्किलें बढ़ींः राणा अय्यूब
‘गुजरात फाइल्स’ की लेखिका राणा अय्यूब ने कहा है कि विरोधी चाहे जो भी कर लें, वे मुझे शर्मिंदा कर खामोश नहीं करा सकते।
यह पोस्ट थोड़ी लंबी है, इसलिए मुझे उम्मीद है कि आप इसके लिए मुझे माफ करेंगे। चार साल पहले जुलाई 2013 में तहलका ने गुजरात में मोदी सरकार के करीबी आईबी अधिकारियों के फर्जी मुठभेड़ों की श्रृंखला में शामिल होने वाली मेरी एक रिपोर्ट प्रकाशित की थी। यह पहली बार हुआ था जब किसी रिपोर्ट में ईमानदार माने जाने वाले आईबी अधिकारियों का नाम लिया गया था।
इस रिपोर्ट ने मीडिया में सनसनी पैदा कर दी थी, जिसके बाद मेरे काम को बदनाम करने के लिए बहुत बड़ी कोशिशें की गईं। सोशल मीडिया पर #राणाअय्यूबसीडी का हैशटैग चलाने वालों के द्वारा मेरी बदनामी और चरित्र हनन करने का एक अभियान दो दिनों तक चला था।
गुजरात सरकार और आईबी के अधिकारियों ने व्यक्तिगत रूप से संपादकों और पत्रकारों को फोन कर इस खबर को महत्व नहीं देने के लिए कहा था। साथ ही उन्होंने यह भी इशारा किया था कि मैंने खबर पाने के लिए सीबीआई में अपनी खास 'दोस्ती' का इस्तेमाल किया है। इन संकेतों को हल्के में नहीं लिया जा सकता था। अगले सप्ताह तहलका ने अपने जुलाई अंक में एक संपादकीय छापा, जो इस तरह से थाः
“पिछले कुछ हफ्तों से संपादक राणा अय्युब पूर्वाग्रह का सामना कर रही हैं। तहलका की सबसे शानदार और नीडर पत्रकारों में से एक राणा पिछले तीन सालों से बेहद मजबूती के साथ गुजरात में फर्जी मुठभेड़ों पर खबर करती रही हैं। उनकी पत्रकारिता न्याय और संवैधानिक मूल्यों के गहरे रूप से प्रेरित रही है। फिर भी, इशरत जहां मामले पर उनकी खबरें जैसे ही राष्ट्रीय सुर्खियां बनने लगीं, उन्हें अपना मूल्यांकन एक पेशेवर के तौर पर नहीं, बल्कि एक मुस्लिम पत्रकार के रूप में किये जाने के अपमानजनक अनुभव से गुजरना पड़ा। इसके साथ ही सीबीआई अधिकारियों के साथ उनकी एक सीडी की निराधार अफवाह फैलाकर उनके खिलाफ बेहद घिनौना अभियान शुरू कर दिया गया, जिसमें कहीं कोई सच्चाई नहीं थी।”
यह झूठ अपनी मौत तभी मर गया जब मैंने अंध भक्तों और झूठ फैलाने वालों को सीडी सामने लाने की चुनौती दी और कहा कि मैं भी अपने परिवार के साथ उसे देखना चाहती हूं। उन्होंने मुझे शर्मिंदा कर चुप कराने की कोशिश की, लेकिन सच्चाई ने झूठ फैलाने वालों को मात दे दी।
2016 में मेरी किताब आने के बाद से एक सच्चाई जो मेरे कुछ खास दोस्त जानते हैं, वह यह है कि मेरी जिंदगी पहले जैसी नहीं रही। मेरे बैंक खाते की नियमित रूप से जांच की जाती है और हमेशा मेरे फोन कॉल को टेप किया जाता है। सरकार के लोगों द्वारा संपादकों को उनके न्यूज चैनलों पर मुझे नहीं बुलाने और मेरी किताब का कोई जिक्र नहीं करने के लिए कहा गया (इस हफ्ते निधी राजदान और राजदीप सरदेसाई ने अपने कार्यक्रम में मेरी पुस्तक की सामग्री पर बात कर बहुत साहस का प्रदर्शन किया है)।
मै समझती हूं कि यह प्रतिशोध की भावना सामान्य है। मेरे बहुत से सहकर्मियों को सत्ता को पसंद न आने वाली खबर करने या ऐसी बात करने की वजह से सत्ताधारी लोगों की नाराजगी का सामना करना पड़ रहा है।
दो हफ्ते पहले मेरी दोस्त गौरी की हत्या के ठीक एक दिन पहले मैंने अपनी व्यक्तिगत जिंदगी को लेकर सरकार के हस्तक्षेप और कई प्रचार वेबसाइट के जरिये झूठ फैलाने के बारे में एक फेसबुक पोस्ट लिखा था। गौरी की मौत के तुरंत बाद मुझे इस पोस्ट को हटाना पड़ा क्योंकि मैं ‘प्लीज सुरक्षित रहो’ के संदेशों से तंग आ गई थी।
पिछले एक हफ्ते से किताब का हिंदी संस्करण आने के बाद से खुद के चरित्रहनन का सामना करने के अपमानजनक अनुभव से गुजरने की एक बार फिर शुरुआत हो गई है। वे कथित संबंध जिनकी वजह से मुझे खबरें मिलीं और मैं किताब लिख पाई जैसी बातें और किसी स्त्री से नफरत करने की हद तक लगाए जाने वाले झूठे आरोपों का दौर फिर से शुरू हो गया है। मैं न तो आश्चर्यचकित हूं और न ही गुस्से में हूं क्योंकि अपने हिसाब से खबर नहीं चलने पर किसी को भी खामोश कराने का यह सबसे कामयाब तरीका है।
इस साल टाइम्स लिटफेस्ट में जब मैं सिद्धार्थ वर्द्धराजन से बात कर रही थी तो दर्शकों में से एक सज्जन ने मुझसे एक सवाल किया। उन्होंने कहा कि वे मेरा काम पसंद करते हैं, लेकिन अगर मैं थोड़ा कम ग्लैमरस दिखने का प्रयास करूंगी तो मुझे ज्यादा गंभीरता से लिया जाएगा। यह देखना खुशी की बात रही कि दर्शकों ने उस शख्स की लैंगिकवादी टिप्पणी के लिए उन्हें शर्मिंदा किया और माफी मांगने के लिए मजबूर किया। चंडीगढ़ में एक अन्य कार्यक्रम में जहां मैंने अपना पंजाबी संस्करण लॉन्च किया, दर्शकों में से एक सज्जन ने मुझसे कहा कि मेरे जैसी एक आकर्षक लड़की को अधिकारियों से वह सब बुलवाने में कोई परेशानी नहीं हुई होगी, जो मैंने किताब में लिखी हैं।
स्त्री-विरोधी समझ मौजूद है और इसका कुछ नहीं किया जा सकता। हालांकि मैं एक बात जानती हूं कि अतीत की तरह पत्रकारिता के हर महत्वपूर्ण दौर में मुझसे धर्म और देशभक्ति के प्रमाण-पत्रों के अलावा इस बात के लिए चरित्र का प्रमाण-पत्र मांगा जाएगा कि मैंने सही तरीके से खबर हासिल की है। लेकिन उनको पता है कि वे चाहे जो भी कर लें, वे मुझे शर्मिंदा कर खामोश नहीं करा सकते, जैसा कि वे चाहते हैं। इसलिए अगली बार वे जब भी आएं, अपनी कल्पना के इस लैंगिकवादी सोच की जगह वास्तव में कुछ अधिक ठोस लेकर आएं।
(पत्रकार राणा अय्यूब गुजरात में हुए फर्जी मुठभेड़ों पर कई अहम खुलासे करने वाली किताब ‘गुजरात फाइल्स’’ की लेखिका हैं। इस किताब के हिंदी संस्करण के प्रकाशन के बाद से एक बार फिर सोशल मीडिया पर उन्हें बदनाम करने की कोशिशें शुरू हो गई हैं। इस तरह की कोशिशों से निर्भिक राणा अय्यूब ने फेसबुक पोस्ट लिखकर अपनी आपबीती बताई है और ऐसा करने वालों को चुनौती भी दी है। हम यहां उनके फेसबुक पोस्ट को साभार प्रकाशित कर रहे हैं।)
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Published: 23 Sep 2017, 2:25 PM