वसुंधरा सरकार का तुगलकी फरमान : सोशल मीडिया पर की सरकार की खिंचाई, तो खैर नहीं
वसुंधरा राजे सरकार ने राजस्थान के सभी सरकारी कर्मचारियों को चेतावनी दी है कि अगर उन्होंने सरकार के खिलाफ कोई टिप्पणी की तो उनके खिलाफ कार्रवाई की जाएगी। यह अभिव्यक्ति की आजादी का सरासर उल्लंघन है
राजस्थान में वसुंधरा राजे की अगुवाई वाली बीजेपी सरकार ने अभिव्यक्ति की आजादी पर पाबंदी लगा दी है। सरकार ने एक तुगलकी फरमान जारी कर कहा है कि अगर किसी भी सरकारी कर्मचारी या अधिकारी ने सरकार की किसी भी नीति या फैसले की आलोचना की तो उसकी खैर नहीं। इस सिलसिले में बाकायदा एक सर्कुलर जारी कर दिया गया है।
सर्कुलर में कहा गया है कि, “ कुछ अधिकारी / कर्मचारियों के द्वारा नियमों का पालन नहीं किया जा रहा है और प्रेस और सोशल मीडिया के माध्यम से अन्य अधिकारियों और कर्मचारियों के खिलाफ मनगढ़ंत और अनर्गल आरोप प्रचारित और प्रसारित किए जा रहे हैं। उनके इस अनुचित और अशोभनीय आचरण से कार्यालय की छवि धूमिल होती है।”
इस सर्कुलर में चेतावनी दी गयी है कि सभी अधिकारी और कर्मचारी सुनिश्चति करें कि वे सार्वजनिक तौर पर किसी व्यक्ति विशेष या किसी पार्टी अथवा संस्थान के खिलाफ तथ्यहीन, निराधार, असत्यापित, गरिमा और प्रतिष्ठा को ठेस पहुंचाने वाली टिप्पणियां न प्रसारित या प्रचारित करें। ऐसा न करने पर कठोर अनुशास्नात्मक कार्रवाई की चेतावनी दी गयी है।
राजस्थान सरकार के शासन सचिव भास्कर ए सावंत की तरफ से ये सर्कुलर सभी आयुक्तों, जिलाधिकारियों और पुलिस महानिदेशक को भेजा गया है। इस पत्र की एक कॉपी राज्यपाल और मुख्यमंत्री को भी भेजी गई है।
यानी अब अगर में राजस्थान में सरकारी कर्मचारी ने सोशल मीडिया पर सरकार की आलोचना या छवि खराब करने वाली पोस्ट डाली तो उसकी खैर नहीं। सर्कुलर में कहा गया है कि सोशल मीडिया में आलोचना वाली पोस्ट को शेयर भी किया तो भी कार्रवाई होगी। सर्कुलर में राजस्थान सिविल सेवा आचरण नियम 1971 के नियम 3,4 और 11 का हवाला दिया गया है।
अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर ताला
राजस्थान सरकार ने 12 अक्टूबर 2017 जारी यह फरमान भारतीय संविधान के अनुच्छेद 19 का पूर्णतः उल्लंघन करता है, क्योंकि अभिव्यक्ति की आज़ादी का अर्थ सरकार या किसी व्यक्ति विशेष की प्रशंसा या यशोगान करना नहीं है, अगर ऐसा होता तो इसे लिखने की भी जरूरत नहीं थी। दरअसल अभिव्यक्ति की आज़ादी का अर्थ ही है, आलोचना का अधिकार, क्योंकि इसके बिना अभिव्यक्ति निरर्थक है।
कामेश्वर प्रसाद बनाम बिहार सरकार के मुकदमे में सुप्रीम कोर्ट ने ये अभिनिर्धारित किया था कि कर्मचारी सरकारी नीतियों की आलोचना करने के लिए प्रदर्शन हेतु स्वतंत्र हैं। यही नहीं संविधान के अनुच्छेद 309 में 4 ए, बंध जोड़ा गया है, जो ये स्पष्ट रूप से कहता है कि सरकार के बनाये गए नियमों से सहमति व्यक्त करने के बावजूद, व्यक्ति अपने मौलिक अधिकारों को राज्य को नहीं सौंप देता।
सन 1993 के देवेंद्रप्पा बनाम कर्नाटक स्माल स्केल इंडस्ट्री के मुकदमे में भई सुप्रीम कोर्ट ने ये निर्धारित किया कि अच्छे इरादे से की गई आलोचना सरकार की क्षमता को बढ़ाती ही है।
इन सभी संवैधानिक और न्यायिक फैसलों से स्पष्ट होता है कि राजस्थान सरकार का यह आदेश संविधान की मूल भावना से इतर है। जितने भी कर्मचारी और अधिकारियों के संगठन हैं, वे सरकार का यशोगान करने के लिए नहीं हैं उनका काम सरकार की समालोचना करना ही है ,जिससे उन्हें ऐसे आदेश द्वारा रोका नहीं जा सकता है।
राजस्थान सरकार के इस आदेश से ईदी अमीन का एक वाक्यांश चरितार्थ होता है, “तुम्हें बोलने की आज़ादी तो है पर उसके बाद तुम्हारा क्या होगा मुझे नहीं पता।”
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