बाढ़ में डूबा पंजाब; हर तरफ अफरा-तफरी का माहौल, कई जिलों में हालत बेहद खराब

भगवंत मान सरकार ने पहले कहा था कि पंजाब सरकार अपने तौर पर हालात काबू में कर लेगी लेकिन आज मुख्य सचिव ने केंद्र से वित्तीय मदद के साथ-साथ केंद्रीय टीम भेजने का औपचारिक अनुरोध भी किया है।

फोटोः IANS
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अमरीक

पंजाब के जालंधर, कपूरथला, होशियारपुर, नवांशहर, पटियाला और लुधियाना सहित कई जिलों में मॉनसून की मूसलाधार बारिश शनिवार सुबह से बदस्तूर हो रही है। इनमें से कुछ जिलों में बीते दो दिन से बरसात हो रही थी लेकिन इतनी प्रचंड धारा के साथ नहीं। सतलुज और घग्गर सहित कई दरियाओं, नहरों और नालों में जलस्तर कमोबेश कम हुआ था। पाकिस्तान की ओर से आने वाला पानी भी रुक गया था। लोग उम्मीद में थे कि अब सामान्य बारिश होगी, मूसलाधार नहीं। बेशक राज्य के मौसम विभाग ने मूसलाधार बारिश की चेतावनी दी थी और येलो अलर्ट जारी किया था। आपदा की घड़ी में जैसे होता है, लोग अपने अनुमान के अनुसार भी चलते रहे। नतीजतन अनौपचारिक सरकारी आंकड़ों के मुताबिक एक हजार से ज्यादा गांव पानी की चपेट में आकर बाढ़ ग्रस्त हो गए। माल-पशु का भारी नुकसान हुआ और 500 के करीब कच्चे-पक्के घर ढह गए। बाढ़ के लिए बनाए गए कंट्रोल रूम में लगातार भारी नुकसान की खबरें आ रही हैं। शनिवार की शाम तक कुछ लोगों के मरने और कुछ के दुर्घटना ग्रस्त होने की खबर है। भगवंत मान सरकार ने पहले कहा था कि पंजाब सरकार अपने तौर पर हालात काबू में कर लेगी लेकिन आज मुख्य सचिव ने केंद्र से वित्तीय मदद के साथ-साथ केंद्रीय टीम भेजने का औपचारिक अनुरोध भी किया है। मुख्यमंत्री सहित उनके तमाम मंत्री, विधायक और प्रतिद्वंदी दलों के विधायक भी फील्ड में उतरे हुए हैं लेकिन अभी तक हुए नुकसान का सही आकलन नहीं हो पाया है। बाढ़ ने जिस भी गांव या कस्बे में पड़ाव डाला वहां तबाही के अंतहीन निशान छोड़ गई-जिसकी इबारत पढ़ने को सरकारी अमले को खासी मशक्कत करनी पड़ेगी। फिलहाल सूरत-ए-हाल यह है कि सूबे कोई कोना ऐसा नहीं बचा जहां मॉनसून की मूसलाधार बाढ़ के बाद तबाही न हुई हो। एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि हम औपचारिक तौर पर सामने से कुछ नहीं कह सकते लेकिन हुआ नुकसान अरबों रुपए का है। मूसलाधार बारिश के कुछ दौर इसी मानिंद जारी रहे तो यकीनन नुकसान में इजाफा होगा। मृत्यु दर बढ़ेगी। अभी सरकार इसलिए भी गिरदावर नहीं करवा रही कि मूसलाधार बारिश का सिलसिला न जाने कब तक चले। वरिष्ठ कांग्रेसी नेता और एलओपी प्रताप सिंह बाजवा कहते हैं, "गिरदावरी बेशक बाद में करा ली जाए लेकिन फिलहाल राज्य सरकार किसानों को कम से कम 25 हजार रुपए की सहायता फौरन दे। कुदरत की इस आफत ने किसानों को पूरी तरह कंगाल कर दिया है। खेत- मजदूर उनके सहारे हैं। जब किसान की जेब में ही कुछ नहीं होगा तो वह अपने कामगर को क्या देगा।" वामपंथी नेता मंगतराम पासला के अनुसार बरसात और बाढ़ से हुए नुकसान के लिए सरकार और प्रशासन का निकम्मापन भी जिम्मेवार है। 

वैसे, धान सहित ज्यादातर फसलें बर्बाद हो गईं हैं। जहां बचाव है, बाढ़ का पानी वहां तक जाने का खतरा भी बनाए हुए है। लोगबाग और फौजी जवान दिन- रात एक कर के तटबंध तथा तदर्थ बांध बनाते हैं लेकिन वह बाढ़ के तेज वेग के चलते टूट जाता है। इस तरह बाढ़ का पानी एक से दूसरे इलाके तक पहुंच जाता है। बाढ़ का पानी हरियाणा से पंजाब की ओर आ रहा है तो कहीं से पंजाब से हरियाणा की ओर जा रहा है। इस बहाव को रोकना मुश्किलें खड़ी कर रहा है। दोनों राज्यों के वरिष्ठ अधिकारियों की कई बैठकें इस बाबत हुईं हैं लेकिन आधुनिकता और नई से नई प्रणाली में भी प्रकृति के आगे किसका जोर चलता है? बाढ़ को लेकर भारत और पाकिस्तान के अधिकारी भी आपसी संपर्क में हैं। गुरदासपुर सेक्टर में पानी सीमा की कंटीली तारों को पार कर रहा है तो पाकिस्तान की ओर से फिरोजपुर बॉर्डर को बाढ़ का पानी  क्रॉस कर गया है। पानी आखिर पानी है और सरहदों से उसे कोई मतलब नहीं! पंजाब से सटी पाकिस्तान की सीमाओं को देखकर तो यही लगता है।


 दरअसल, मई में ही राज्य आपदा प्रबंधन ने मौसम विभाग की सूचनाओं के आधार पर सरकार को सचेत किया था कि इस बार मूसलाधार बारिश बाढ़ ला सकती है। लेकिन इसे गंभीरता से नहीं लिया गया। जून में नदी-नालों की सफाई होने लगी। पूर्वानुमान के मुताबिक जो काम तत्काल युद्ध स्तर पर हो जाना चाहिए था; उसे काफी देर से शुरू किया गया और तब तक पूलों के नीचे बेहिसाब पानी इकट्ठा हो गया था और आवाजाही के लिए या कहिए तबाही के लिए तैयार था। ग्रामीण अपने तौर पर भी नालों और नहरों की सफाई करते हैं और खतरा महसूस होने पर संबंधित विभाग को सूचित करते हैं। कुछ वर्षों से यह सब होना भी बंद हो गया। किसी चौकीदार तक ने सिंचाई विभाग तक कोई खबर पहुंचाई हो, मौजूदा हालात देख कर तो ऐसा नहीं लगता। 

बाढ़ की रोकथाम के तमाम बंदोबस्त मूसलाधार बारिश के चलते धरे के धरे रह गए। पश्चिमी विक्षोभ को भी यहां गंभीरता से नहीं लिया गया। पंजाब में बाढ़ हिमाचल प्रदेश और जम्मू-कश्मीर की नदियों के ओवरफ्लो होने तथा यहां से कई गुणा ज्यादा बारिश होने की वजह से भी आई। सूबे का सरहदी जिला पठानकोट एक तरफ हिमाचल प्रदेश और दूसरी तरफ जम्मू से सीधे तौर पर जुड़ा हुआ है। अब उसका संपर्क इन दोनों राज्यों से टूट गया है क्योंकि दोनों राज्यों का पानी भारी वेग के साथ यहां के तमाम तटबंधों को तोड़कर सड़क मार्ग तक का नामोनिशान मिटा गया। रेल लाइनें कई- कई फुट पानी में बह गईं। फौरी आलम यह है कि पठानकोट से हिमाचल और जम्मू बोट के जरिए भी नहीं जाया जा सकता। कई तटों पर सैनिकों ने मोर्चा संभाल रखा है लेकिन पानी के प्रवाह का क्या भरोसा। थोड़ा तेज हुआ तो सब कुछ बहा ले जाएगा। फिरोजपुर, फाजिल्का और गुरदासपुर में भी स्थिति अलहदा नहीं। इन जिलों के तकरीबन 800 गांव शेष दुनिया से कटे हुए हैं। जो लोग राहत शिविरों, सैन्य कैंपों और गुरुद्वारों में नहीं जा पाए; वे अपने घर की छतों पर पनाह लिए हुए हैं। हवाई साधनों से उन तक भोजन पहुंचाया जा रहा है।                                            


आसन्न बाढ़ ने हजारों बेजुबान पशुओं और पोल्ट्री जानवरों को मार दिया। उनकी वजह से अब संक्रमण फैल रहा है और चिकित्सा विभाग के पास मुनासिब दवाइयों का अभाव है। हालांकि इंसानों के साथ-साथ पशुओं का इलाज भी किया जा रहा है लेकिन मेडिकल दल हर जगह नहीं पहुंच पा रहे। कहीं-कहीं तो आठ फुट से भी ज्यादा पानी खड़ा है। सच्चाई यह है कि अगर वक्त रहते संक्रमित लोगों का इलाज नहीं किया गया तो राज्य में महामारी फैल सकती है। खासतौर से बाढ़ ग्रस्त गांवों, कस्बों और शहरी इलाकों में। शहरी इलाके भी बाढ़ की चपेट में हैं। मसलन पटियाला। यहां की गई पॉश कॉलोनियां तक बाढ़ में डूबी हुई हैं। विश्व प्रसिद्ध कस्बे करतारपुर में बाढ़ का पानी खड़ा है और उसे हटाने में संगत दिन रत एक किए हुए हैं। मानसा का सरदूलगढ़ कस्बा बाढ़ में डूबा हुआ है। मूसलाधार बारिश और पहाड़ों से आने वाला पानी नहीं रुका तो कई शहरों में ऐसी नौबत आ सकती है।         

दूसरे राज्यों के बेशुमार लोग पंजाब में फंसे हुए हैं क्योंकि हफ्ता भर से कई रेलगाड़ियां रद्द हैं। परिवहन के अन्य साधन भी। उन्होंने राहत शिविरों या गुरुद्वारों में पनाह ली हुई है। अफवाहें फैलाने वाले शरारती तत्व सक्रिय हैं। विशेषकर वे नशेड़ी जिन्हें ऐसे मौकों की तलाश रहती है। खैर, इस बार की बाढ़ से कई सबक लेने की जरूरत है लेकिन पहल राहत कार्यों को देनी चाहिए। जिंदगियां रहेंगीं तो सबक काम आएंगे!  

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