संविधान दिवस पर राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद बोले- “सभी संविधान की मर्यादा में रहकर करें काम”
राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने मंगलवार को कहा कि देश में हर प्रकार की परिस्थिति का सामने करने के लिए संविधान सम्मत रास्ते उपलब्ध हैं और ‘‘इसलिये संविधान की मर्यादा, गरिमा और नैतिकता के अनुरूप काम करें ।’’
संविधान दिवस के मौके पर मंगलवार को राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू ने संसद के संयुक्त सत्र को संबोधित किया। राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने कहा कि हमने अपने संविधान में विश्व के कई संविधानों की उत्तम व्यवस्था को बखूबी अपनाया है। इसके लिए सभी देशवासी सराहना के पात्र हैं। संसद के केन्द्रीय कक्ष में आयोजित लोकसभा और राज्यसभा संयुक्त बैठक को संबोधित करते हुए राष्ट्रपति ने कहा, ‘‘भय, प्रलोभन, राग-द्वेष, पक्षपात और भेदभाव से मुक्त रहकर शुद्ध अन्तःकरण के साथ कार्य करने की भावना को हमारे महान संविधान निर्माताओं ने अपने जीवन में पूरी निष्ठा और ईमानदारी से अपनाया था।
राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने मंगलवार को कहा कि देश में हर प्रकार की परिस्थिति का सामने करने के लिए संविधान सम्मत रास्ते उपलब्ध हैं और ‘‘इसलिये संविधान की मर्यादा, गरिमा और नैतिकता के अनुरूप काम करें ।’’ उन्होंने कहा कि वर्तमान समय में हम सभी को संवैधानिक मूल्यों, ईमानदारी को अपनाते हुए भय, प्रलोभन, पक्षपात, राग द्वेष और भेदभाव से मुक्त रहकर काम करने की आवश्यकता है।
राष्ट्रपति ने कहा, ‘‘ संविधान के अनुसार, प्रत्येक नागरिक का यह कर्तव्य है कि वह संविधान के आदर्शों और संस्थाओं का आदर करे; आजादी की लड़ाई के आदर्शों का पालन करे; ऐसी प्रथाओं का त्याग करे जो महिलाओं की गरिमा के विरुद्ध हैं; तथा हमारी संस्कृति की गौरवशाली परंपरा का महत्व समझे और उसका परिरक्षण करे।’’ कोविंद ने कहा, ‘‘ हमारे देश में हर प्रकार की परिस्थिति का सामने करने के लिये संविधान सम्मत रास्ते उपलब्ध है । इसलिये हम जो भी कार्य करें, उसके पहले यह जरूर सोचे कि क्या हमारा कार्य संवैधानिक मर्यादा, गरिता और नैतिकता के अनुरूप है।’’
संविधान के आदर्शो के प्रति संकल्पबद्ध रहने पर जोर देते हुए उन्होंने कहा , ‘‘मुझे विश्वास है कि इस कसौटी को ध्यान में रखकर अपने संवैधानिक आदर्शो को प्राप्त करते हुए हम सब भारत को विश्व के आदर्श लोकतंत्र के रूप में सम्मानित स्थान दिलायेंगे।’’ कोविंद ने कहा कि 25 नवंबर 1949 को संविधान सभा में अपने अंतिम भाषण में डा. अंबेडकर ने कहा था कि संविधान की सफलता भारत के लोगों और राजनीतिक दलों के आचार पर निर्भर करती है। उन्होंने कहा, ‘‘हमारे संविधान निर्मताओं में यह विश्वास जरूर रहा होगा कि उनकी भावी पीढ़ियां, अर्थात हम सभी देशवासी भी, उन्हीं की तरह, इन जीवन-मूल्यों को, उतनी ही सहजता और निष्ठा से अपनाएंगे। आज इस पर हम सबको मिलकर आत्म-चिंतन करने की जरूरत है ।’’
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