स्वतंत्रता दिवस पर राष्ट्रपति का संदेश, ‘अधूरे कामों को पूरा करने के लिए संकल्प लेने का दिन’
राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने कहा कि बुधवार को हमारी आजादी के 71 साल पूरे हो रहे हैं और यह दिन अपने पूर्वजों के योगदान को याद करने के साथ ही राष्ट्रनिर्माण के अपूर्ण कार्यो को पूरा करने के लिए संकल्प लेने का भी दिन है।
स्वतंत्रता दिवस की पूर्व संध्या पर राष्ट्र के नाम अपने संबोधन में मंगलवार को राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने कहा कि बुधवार को हमारी आजादी के इकहत्तर वर्ष पूरे हो रहे हैं और यह दिन अपने पूर्वजों के योगदान को याद करने के साथ ही राष्ट्रनिर्माण के अपूर्ण कार्यो को पूरा करने के लिए संकल्प लेने का भी दिन है। राष्ट्रपति ने कहा, “15 अगस्त का दिन, प्रत्येक भारतीय के लिए पवित्र होता है, चाहे वह देश में हो, या विदेश में। हमारा तिरंगा हमारे देश की अस्मिता का प्रतीक है। इस दिन, हम देश की संप्रभुता का उत्सव मनाते हैं और अपने पूर्वजों के योगदान को कृतज्ञता से याद करते हैं।” उन्होंने कहा कि यह दिन, राष्ट्र-निर्माण में, उन बाकी बचे कार्यो को पूरा करने के लिए संकल्प लेने का भी दिन है, जिन्हें हमारे प्रतिभाशाली युवा अवश्य ही पूरा करेंगे।
राष्ट्रपति ने अपने संबोधन में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का विशेष रूप से जिक्र करते हुए कहा कि गांधी जी हमेशा खुले दिल से सपर्क बढ़ाने की बात करते थे। चाहे वह अर्थव्यवस्था हो या स्वास्थ्य या कोई और क्षेत्र। उन्होंने कहा कि इस वर्ष का स्वतंत्रता दिवस इसलिए भी विशेष है कि इस वर्ष 2 अक्टूबर को हम गांधी जी की 150 जयंती मनाने जा रहे हैं।
राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने कहा कि देश आज एक निर्णायक दौर से गुजर रहा है, ऐसे में ध्यान भटकाने वाले मुद्दों में उलझने और निरर्थक विवादों में पड़ने की बजाए सभी को एकजुट होकर गरीबी, अशिक्षा और असमानता को दूर करने का प्रयास करना चाहिए। किसानों की मेहनत और योगदान का जिक्र करते हुए राष्ट्रपति ने कहा कि हमारे किसान, उन करोड़ों देशवासियों के लिए अनाज पैदा करते हैं, जिनसे वे कभी मिले भी नहीं होते। किसान देश के लिए खाद्य और पौष्टिक आहार उपलब्ध करा कर हमारी आजादी को ताकत देते हैं। उन्होने कहा कि स्वतंत्रता सेनानियों के सपनों का भारत बनाने के लिए किसानों की पैदावार और आमदनी बढ़ाने के लिए आधुनिक तकनीक और अन्य सुविधाएं उपलब्ध कराए जा रहे हैं।
राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने कहा, “वर्ष 1947 में, 14 और 15 अगस्त की मध्य-रात्रि के समय, हमारा देश आजाद हुआ था। यह आजादी हमारे पूर्वजों और सम्मानित स्वाधीनता सेनानियों के वर्षों के त्याग और वीरता का परिणाम थी। वे चाहते, तो सुविधापूर्ण जीवन जी सकते थे। लेकिन देश के प्रति अपनी अटूट निष्ठा के कारण, उन्होंने ऐसा नहीं किया। वे एक ऐसा स्वाधीन और प्रभुता-सम्पन्न भारत बनाना चाहते थे, जहां समाज में बराबरी और भाईचारा हो। हम उनके योगदान को हमेशा याद करते हैं।”
राष्ट्रपति ने अपने संबोधन में देश के सैनिकों, अर्द्धसैनिक बलों के अदम्य साहस और बलिदान का भी जिक्र किया। उन्होंने कहा कि पुलिस और अर्धसैनिक बल अनेक चुनौतियों का सामना कर आतंकवाद का मुकाबला करते हैं और अपराधों की रोकथाम और कानून-व्यवस्था की रक्षा करते हैं। उन्होने कहा कि स्वाधीनता सेनानियों के सपनों का भारत बनाने के लिए उनके काम-काज और व्यक्तिगत जीवन में सुधार लाने का काम किया जा रहा है।
राष्ट्रपति ने कहा, “अगर हम स्वाधीनता का सिर्फ राजनैतिक अर्थ लेते हैं तो लगेगा कि 15 अगस्त, 1947 के दिन हमारा लक्ष्य पूरा हो चुका था। उस दिन राजसत्ता के खिलाफ संघर्ष में हमें सफलता प्राप्त हुई और हम स्वाधीन हो गए। लेकिन, स्वाधीनता की हमारी अवधारणा बहुत व्यापक है। इसकी कोई बंधी-बंधाई और सीमित परिभाषा नहीं है। स्वाधीनता के दायरे को बढ़ाते रहना, एक निरंतर प्रयास है। 1947 में राजनैतिक आजादी मिलने के, इतने दशक बाद भी, प्रत्येक भारतीय, एक स्वाधीनता सेनानी की तरह ही देश के प्रति अपना योगदान दे सकता है।” उन्होंने कहा, “हमें स्वाधीनता को नए आयाम देने हैं और ऐसे प्रयास करते रहना है, जिनसे हमारे देश और देशवासियों को विकास के नए-नए अवसर प्राप्त हो सकें।”
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