मोदी सरकार की योजना को सफल बनाने के लिए बिजनौर में गरीबों का रोका गया राशन? 

टीकाकरण को लेकर केंद्र सरकार के लक्ष्य को पूरा कर इंद्रधनूष योजना को सफल बनाने के लिए बिजनौर में स्वास्थ्य और खाद्य विभाग के अधिकारियों ने कहा कि टीकाकरण कराने वाले को ही राशन दिया जाएगा।

फोटो: नवजीवन डेस्क 
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आस मोहम्मद कैफ

केंद्र सरकार के टीकाकरण के लक्ष्य को पूरा करने के लिए बिजनौर में स्वास्थ्य विभाग के अफसर मनमानी कर रहे हैं। यहां के एक ब्लॉक कोतवाली देहात में मीटिंग बुलाकर राशन डीलरों को फरमान जारी कर दिया गया है कि जो ग्रामीण टीकाकरण नहीं करवाते, उसकी राशनबंदी कर दी जाये। यह तब किया गया है जब राशन न मिलने के कारण देश भर में इंसानियत को शर्मसार करने वाली भूख से कई मौतें हो चुकी हैं। यह असंवेदनशीलता बिजनौर के स्वास्थ्य और खाद्य विभाग के अफसरों ने दिखाई है।

इस तुगलकी फरमान की कहानी 6 जनवरी को बिजनौर जनपद के कोतवाली देहात ब्लॉक में बुलाई गई मीटिंग में शुरू हुई। इस मीटिंग में लगभग एक दर्जन गांवों के राशन डीलरों को बुलाया गया था। यह सभी गांव दलित और अल्पसंख्यक बहुल है। कोतवाली देहात के स्वास्थ्य विभाग के नोडल अफसर एसीएमओ प्रमोद देशवाल, सप्लाई इंस्पेक्टर विनीत कुमार और यूनिसेफ के ब्लॉक कॉर्डिनेटर लोकेंद्र ने इस बैठक को संबोधित किया।

कुंझेता, मुजफ्फरनगर और महेशरी जट्ट सहित कई गांवों में इस फरमान पर प्रतिक्रिया सामने आई है और लोग डर गए हैं। महेशरी जट्ट के ग्रामीण यामीन के मुताबिक टीकाकरण का विरोध करने वाले जिम्मेदार लोगों के समझाने से मान जाते हैं। लेकिन इस तरह के फरमान और जबरदस्ती से शक पैदा होता है और इससे टीकाकरण के अभियान में रुकावट पैदा हो जायेगी। यह टीकाकरण अभियान केंद्र सरकार की मिशन इंद्रधनुष योजना के तहत चलाया जा रहा है और इसे प्रधानमंत्री की प्राथमिकता वाली योजनाओ में से एक माना जाता है।

दरअसल कुछ जिलों में टीकाकरण की दर 90 फीसद पहुंचाने का लक्ष्य है। इस योजना की मॉनीटिरिंग खुद पीएमओ कर रहा है। स्थानीय सामाजिक कार्यकर्ता जुबैर अहमद के मुताबिक, अफसरों पर लक्ष्य तक पहुंचने का दबाव है और इसलिए ही ऐसा फरमान जारी किया गया है। अफसर हर कीमत पर लक्ष्य पाना चाहते है, चाहे इसका तरीका कुछ भी हो।

बिजनौर देश के उन 82 जनपदों में से एक है जहां हर दूसरे बच्चे का टीकाकरण नहीं हुआ है। यहां 49 फीसदी बच्चों के टीके नहीं लगे हैं। कोतवाली देहात ब्लॉक के नोडल अफसर प्रमोद देशवाल पूर्व में किए एक प्रयोग की सफलता की कहानी बताते हैं। यहां के एक अन्य ब्लॉक चंदक में कई गांव में टीकाकरण का विरोध किया गया था। वहां जिला पूर्ति अधिकारी के माध्यम से राशन डीलरों का सहयोग लिया गया, तब यहां टीकाकरण 40 फीसद से 80 फीसद हो गया।

फोटो: नवजीवन डेस्क 
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बिजनौर के दर्जनों गांव में टीकाकरण का विरोध हो रहा है

चंदक से मिली सफलता के बाद इस प्रयोग को कोतवाली देहात में अमल में लाया गया है। इस ब्लॉक में 149 गांव हैं। इनमें से लगभग एक दर्जन गांवों में टीकाकरण का जबरदस्त विरोध हो रहा है। ऐसा क्यों हो रहा है यह हमें यूनिसेफ की जिला कोर्डिनेटर तरन्नुम सिद्दीकी बताती हैं, “लोगो में जागरूकता की कमी है, वे टीकाकरण नहीं चाहते हैं। इन गांवों में बहुत पिछड़ापन है और बहुत ज्यादा गरीबी भी। वे कहते हैं कि इससे उनके बच्चों को बुखार हो जाता है।”

गरीबी की वजह से यहां महिलाएं भी काम करती हैं। वे तीन दिन तक अपने बच्चे को गोद में लेकर नहीं बैठ सकतीं। कुछ और गलतफहमियां हैं, जिन्हें बातचीत से सुलझाया जा सकता है। तरन्नुम सिद्दीकी कहती हैं कि इलाके के समझदार लोगों को साथ लेकर इनका डर दूर किया जाना चाहिए।

नजीबाबाद के पूर्व विधायक शीशराम के अनुसार इस मनमानी से ग्रामीण जिद पर अड़ जायेंगे। जिन राशन डीलर्स को अफसरों ने राशनबंदी की ताकत दी है, गांव वालों की नजर में सबसे बड़े खलनायक वे ही बनेंगे। अगर लोग जिद पर अड़ गए तो बात और बिगड़ जायेगी। जिन भी अफसरों ने यह किया है यह बिल्कुल अनाड़ी फैसला है।

बिजनौर के डीएम जगतराज के अनुसार, उन्होंने ज्यादा से ज्यादा टीकाकरण कराने की बात कही है, राशनबंदी वाली बात उनकी जानकारी में नहीं है। कड़ी आलोचना के बाद अब स्वास्थ्य विभाग के अफसरों ने बात बदल दी हैं। इस अभियान में शामिल कोतवाली देहात के डॉक्टर प्रमोद देशवाल कहते हैं, “हम राशन रोक नहीं रहे, वह बात तो बस डराने के लिए कही थी।” कोतवाली देहात के पूर्व प्रधान इश्तियाक अहमद कहते हैं, “गांव वाले भोले-भाले लोग हैं, उन्हें डराने की जरूरत नहीं है। वे समझाने से मान जाते हैं।”

बिजनौर के निवासी युसूफ अंसारी कहते हैं, “बीमारियों से बचाव के लिए टीकाकरण बहुत जरूरी है, मगर राशनबंदी की धमकी बहुत गैर-पेशेवर तरीका लगता है। यह बिल्कुल गलत है। राशन के चलते देशभर में कई शर्मनाक घटनाएं हुई है।”

वकील नसीमुदीन हमें बताते है कि यह बिल्कुल गैर-कानूनी तरीका है और मानवधिकारों का हनन है। अगर कोई सन्देह है तो उन्हें सही तरह से समझाया जाना चाहिए। टीकाकरण का लक्ष्य पूरा करने के लिए स्वास्थ्य अफसरों का यह तरीका अपनाना सही नहीं है।

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