'नई शिक्षा नीति में रोडमैप की कमी, क्रिटिकल थिंकिंग और जिज्ञासा की भावना हुई दरकिनार, खर्च कहां से जुटाएगी सरकार'
कांग्रेस प्रवक्ता रणदीप सिंह सुरजेवाला ने कहा, 'नई शिक्षा नीति बहुत ही ढुलमुल है। कोरोना के समय जब शिक्षण संस्थान बंद हैं, इसे लागू करने की क्या जल्दी थी। इसे लेकर न तो व्यापक विचार विमर्श किया गया और न ही इसे लागू करने में कोई पारदर्शिता बरती गई है।
केंद्र सरकार नई शिक्षा नीति आ चुकी है। कांग्रेस ने शिक्षा नीति की आलोचना करते हुए कहा है कि ढुलमुल है। कांग्रेस ने प्रेस कॉन्फ्रेंस कर नई शिक्षा नीति की खामियों के बारे में बताया। इसमें रणदीप सुरजेवाला, एमएम पल्लम राजू और प्रो. राजीव गौड़ा ने हिस्सा लिया। कांग्रेस प्रवक्ता रणदीप सिंह सुरजेवाला ने कहा, 'नई शिक्षा नीति बहुत ही ढुलमुल है। कोरोना के समय जब शिक्षण संस्थान बंद हैं, इसे लागू करने की क्या जल्दी थी। इसे लेकर न तो व्यापक विचार विमर्श किया गया और न ही इसे लागू करने में कोई पारदर्शिता बरती गई है। शिक्षा बजट में कुल बजट का दो फीसदी भी पैसा नहीं दे पा रहे मोदी जी तो कुल GDP का 6 प्रतिशत किस जमाने में दिया जाएगा।' उन्होंने कहा कि नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति केवल शब्दों, चमक-दमक, दिखावे औक आडंबर के आवरण तक सीमित रही है। इस नीति में न तो तर्कसंगत कार्ययोजना और रणनीति है। और न ही स्पष्ट रूप से परिभाषित लक्ष्य है।
'न परामर्श, न चर्चा, न विचार विमर्श और न पारदर्शिता'
रणदीप सिंह सुरजेवाला ने कहा, 'अपने आप में बड़ा सवाल यह है कि शिक्षा नीति 2020 की घोषणा कोरोना महामारी के संकट के बीचों बीच क्यों की गई और वो भी तब, जब सभी शैक्षणिक संस्थान बंद पड़े हैं। सिवाय बीजेपी-आरएसएस से जुड़े लोगों के, पूरे शैक्षणिक समुदाय ने आगे बढ़ विरोध जताया है कि शिक्षा नीति 2020 बारे कोई व्यापक परामर्श, वार्ता या चर्चा हुई ही नहीं। हमारे आज और कल की पीढ़ियों के भविष्य का निर्धारण करने वाली इस महत्वपूर्ण शिक्षा नीति को पारित करने से पहले मोदी सरकार ने संसदीय चर्चा या परामर्श की जरूरत भी नहीं समझी। याद रहे कि इसके ठीक विपरीत जब कांग्रेस ‘शिक्षा का अधिकार कानून’ लाई, तो संसद के अंदर व बाहर हर पहलू पर व्यापक चर्चा हुई थी।'
'शिक्षा का सरकारी बजट = वादे के विपरीत सच्चाई'
उन्होंने आगे कहा, 'स्कूल और उच्च शिक्षा में व्यापक बदलाव करने, परिवर्तनशील विचारों को लागू करने तथा बहुविषयी दृष्टिकोण को अमल में लाने के लिए पैसे की आवश्यकता है। शिक्षा नीति 2020 में शिक्षा पर जीडीपी का 6 प्रतिशत खर्च करने की सिफारिश की गई है। इसके विपरीत मोदी सरकार में बजट के प्रतिशत के रूप में शिक्षा पर किया जाने वाला खर्च, 2014-15 में 4.14 प्रतिशत से गिरकर 2020-21 में 3.2 प्रतिशत हो गया है। यहां तक कि चालू वर्ष में कोरोना महामारी के चलते इस बजट की राशि में भी लगभग 40 प्रतिशत की कटौती होगी, जिससे शिक्षा पर होने वाला खर्च कुल बजट के 2 प्रतिशत (लगभग) के बराबर ही रह जाएगा। यानि शिक्षा नीति 2020 में किए गए वादों एवं उस वादे को पूरा किए जाने के बीच जमीन आसमान का अंतर है।'
'मध्यम वर्ग और गरीब के लिए नया ‘‘डिजिटल डिवाईड’’'
कांग्रेस नेता ने पल्लम राजू ने कहा, 'शिक्षा नीति 2020 का मुख्य केंद्र ‘ऑनलाइन शिक्षा’ है। ऑनलाईन शिक्षा के आधार पर पढ़ने वाले विद्यार्थियों का औसत भर्ती अनुपात मौजूदा 26 प्रतिशत से बढ़ाकर 50 प्रतिशत तक करने का दावा किया गया है। लेकिन गरीब और मध्यम वर्ग परिवारों में कंप्यूटर/इंटरनेट न उपलब्ध होने के चलते गरीब और वंचित विद्यार्थी अलग थलग पड़ जाएंगे और देश में एक नया ‘डिजिटल डिवाईड’ पैदा होगा। हाशिए पर रहने वाले वर्गों के 70 प्रतिशत से अधिक बच्चे पूरी तरह ऑनलाईन शिक्षा के दायरे से बाहर हो जाएंगे, जैसा कोविड-19 की अवधि में ऑनलाईन क्लासेस की एक्सेस में गरीब के बच्चे पूर्णतया वंचित दिखे। ग्रामीण इलाकों में कंप्यूटर/इंटरनेट की अनुपलब्धता या सीमित पहुंच के चलते ग्रामीण बनाम शहरी का अंतर और ज्यादा बढ़ेगा तथा शहर बनाम गांव के बंटवारे को और मुखर करेगा। यहां तक कि UDISE+ (’यूनिफाइड डिस्ट्रिक्ट इन्फॉर्मेशन ऑन स्कूल एजुकेशन’, स्कूल शिक्षा विभाग, भारत सरकार) डेटा के अनुसार केवल 9.85 प्रतिशत सरकारी स्कूलों में ही कंप्यूटर हैं तथा इंटरनेट कनेक्शन केवल 4.09 प्रतिशत स्कूलों में है। इससे खुद ऑनलाइन शिक्षा के तर्क सवालिया निशान खड़ा हो जाता है।'
'सामाजिक और आर्थिक रूप से वंचित समूहों- दलित/आदिवासी/ओबीसी के समक्ष चुनौतियां'
कांग्रेस नेता ने आगे कहा, 'शिक्षा नीति 2020 में शैक्षणिक संस्थानों में दलित, आदिवासी, ओबीसी आरक्षण का कोई उल्लेख नहीं - चाहे वह छात्रों के लिए हो, शिक्षकों के लिए या अन्य कर्मचारियों के लिए। वास्तव में, शिक्षा नीति 2020 में सामाजिक और आर्थिक रूप से वंचित वर्गों को शामिल करने या लाभ देने बारे किसी प्रावधान का उल्लेख नहीं है। शिक्षा नीति 2020 में प्राईवेट शिक्षा पर ज्यादा निर्भरता और सरकारी शिक्षण संस्थानों को कम करने का प्रावधान किया गया है। लेकिन जब सरकारी शिक्षण संस्थान बंद होते जाएंगे, तो फिर, दलित, आदिवासी, ओबीसी विद्यार्थियों के लिए कम होने वाले शैक्षणिक अवसरों का क्या विकल्प होगा? शिक्षा नीति में इसकी कोई चर्चा नहीं है।'
उन्होंने कहा कि, 'विश्वविद्यालयों, शिक्षण संस्थानों की ‘स्वायत्तता’ और ‘अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता’ पर हो रहे हमलों ने शिक्षा नीति के ‘क्रिटिकल थिंकिंग’ एवं ‘जिज्ञासा की भावना’ जागृत करने के उद्देश्य को खारिज कर दिया गया। क्योंकि मोदी सरकार के संरक्षण में बीजेपी और उसके छात्र संगठन सुनियोजित साजिश के तहत विश्वविद्यालयों पर लगातार हमले बोल रहे हैं, शिक्षण संस्थानों की स्वायत्तता को समाप्त किया जा रहा है और शिक्षकों एवं छात्रों की बोलने की आजादी का गला घोंट दिया गया है। शैक्षणिक संस्थानों में भय, उत्पीड़न, दमन और दबाव का माहौल फैला है। यहां तक कि मेरिट को दरकिनार कर बीजेपी-आरएसएस विचारधारा वाले लोगों को ही विश्वविद्यालय के कुलपति और अन्य महत्वपूर्ण पदों से नवाजा जा रहा है। बनारस हिंदू विश्वविद्यालय, इलाहाबाद विश्वविद्यालय, पंजाब विश्वविद्यालय, गुजरात विश्वविद्यालय, राजस्थान विश्वविद्यालय, दिल्ली विश्वविद्यालय, जेएनयू, भगवंत राव मंडलोई कृषि महाविद्यालय (खंडवा, एमपी), जेएमआई, एनआईएफटी मुंबई, हैदराबाद सेंट्रल यूनिवर्सिटी (रोहित वेमुला), आईआईटी मद्रास, आईआईएम आदि पर एक सोची समझी नीति के चलते लगातार हमले बोले जाने के अनेकों उदाहरण सार्वजनिक पटल पर मौजूद हैं।'
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Published: 02 Aug 2020, 3:41 PM