उत्तर प्रदेशः मथुरा के निकट दाऊ जी महाराज मंदिर को औरंगजेब ने दी थी पांच गांव की जागीर
इतिहासकार रज़ावी बताते हैं कि मथुरा के दाऊ जी महाराज मंदिर के अलावा काशी और मथुरा के दूसरे मंदिरों को भी औरंगजेब ने दान दिये। वैसे कई मंदिर, जिनमें पहले के मुगल बादशाहों ने दान देने की परंपरा शुरू की थी, उन्हें भी औरंगजेब ने जारी रखा।
मुगल सल्तनत का काल अक्सर कट्टरपंथी हिंदुत्ववादियों के निशाने पर रहता है। खासतौर पर बादशाह औरंगजेब अक्सर आलोचना के केंद्र में रहते हैं। मुगलिया सल्तनत में सबसे अधिक समय तक बादशाह रहे औरंगजेब पर अक्सर यह इल्जाम लगता है कि उसने अपने राज में बड़ी संख्या में मंदिर तुड़वाये। लेकिन इतिहास के पन्नों में कुछ और कहानियां भी हैं, जो उनकी गढ़ी गई छवि के विपरीत है। इस बारे में अलीगढ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में इतिहास विभाग के प्रमुख प्रो नदीम रज़ावी कहते हैं, “औरंगजेब पूरी तरह से एक शुद्ध बादशाह था। उसे राज करना था, इसके लिए उसे जहां जैसी जरुरत पड़ी, उसने वहां वैसा किया। कुछ जगहों पर उसने मंदिर तुड़वाये, तो कुछ जगहों पर उसने मंदिरों को दान भी दिया।”
अलीगढ़ से 64 किमी दूर बल्देव गांव में दाऊ जी महाराज का मंदिर ऐसा ही एक मंदिर है, जिसे औरंगजेब ने 5 गांव दान में दिए थे। इन 5 गांवों से सरकारी खजाने को मिलने वाला राजस्व आज भी मंदिर को दान में दिया जाता है। पूरे विश्व में हुरंगा होली के लिए मशहूर बल्देव गांव, मथुरा से उत्तर दिशा में 20 किमी की दूरी पर मौजूद है।
मथुरा श्रीकृष्ण की जन्मस्थली है। काशी के बाद यहां सबसे ज्यादा मंदिर हैं। इनकी संख्या हजारों में है। यहीं गोवर्धन, वृन्दावन जैसे धार्मिक केंद्र भी हैं। हिन्दू धर्म की मान्यताओं के अनुसार श्रीकृष्ण भगवान विष्णु के अवतार हैं और उन्हें सर्वोच्च सम्मान हासिल है। श्रीकृष्ण का जन्म मथुरा के एक कारागार में हुआ था। जहां उनके मामा कंस ने उनकी जान लेने की कोशिश की थी, मगर पिता वासुदेव उन्हें किसी तरह बचा पाने में कामयाब हुए थे।
अन्याय के खिलाफ न्याय की लड़ाई में श्रीकृष्ण को अपने बड़े भाई बलराम का सबसे ज्यादा सहयोग मिला। बल्देव भी उन्हीं का नाम है और श्रीकृष्ण उन्हें सम्मान और स्नेह से दाऊ जी कहकर बुलाते थे। मथुरा के निकट महावन तहसील के गांव में उन्हीं दाऊ जी का मंदिर है। लगभग 500 साल पुराने इस मंदिर को मुगल बादशाह औरंगजेब ने 5 गांव दान में दिए थे। इस बात की पुष्टि करते हुए मंदिर के सेवक अनिल कुमार पाण्डेय ने बताया, “इसका यह मतलब था की 580 एकड़ की जमींदारी दाऊ जी महाराज के नाम लिख दी गई थी, जिससे सरकारी खजाने में जमा होने वाला पैसा मंदिर की देखरेख को मिलता था। लगभग 10 हजार की आबादी वाले बल्देव कस्बे में यह बात सबको पता है।
मंदिर प्रबंधन से जुड़े एक और सेवक बृजेश कुमार पांडेय इससे जुड़ी एक कथा सुनाते हैं जिसे सभी ब्रजवासी जानते हैं। वो कहते हैं, “एक बार औरंगजेब मंदिरों को तोड़ता हुआ, मथुरा की तरफ बढ़ रहा था। उसे बल्देव मंदिर की जानकारी थी और वो जब भी अपने साथियों से इसके बारे में पूछता, तो वो जवाब देते कि बस दो कोस दूर है। घंटों सफर करने के बाद भी जब यही जवाब मिलता रहा कि “दो कोस दूर है” तब औरंगजेब ने भी दाऊ जी की शक्ति को पहचानते हुए मंदिर तोड़ने का इरादा त्याग दिया और 5 गांव की पेशन भी बांध दी।”
औरंगजेब की जिंदगी और शासनकाल पर शोध करने वाले एएमयू के प्रोफेसर नदीम रज़ावी कहते हैं, “ओरंगजेब सांप्रदायिक राजा नहीं था। अगर ऐसा होता तो वो हिंदुस्तान की महत्वपूर्ण रियासतों का गवर्नर राजपूतों को क्यों बनाता, जबकि ये रियासत सिर्फ शहजादे संभालते थे। वह विशुद्ध रूप से एक बादशाह था, जिसका शासन करने का अपना प्रबंधन था। कहीं वो मुसलमानों को खुश करता था और कहीं हिन्दुओं को।”
ब्रज की मशहूर हुरंगा होली के लिए मशहूर बल्देव के स्थानीय निवासी विपिन गर्ग बताते हैं कि यह होली मंदिर प्रांगण में खेली जाती है, जिसमें सैकड़ों देवर-भाभी सम्मिलित होते हैं। मंदिर के नक्कारखाने के बाहर एक शिलापट्ट लगा है, जिसपर औरंगजेब के मंदिर को दान दिए गये पांच गांव का वर्णन है। खास बात यह है कि औरंगजेब ने यहां शाही नक्कारखाने का निर्माण भी कराया था, जिसपर लिखा है, “इस शाही नक्कारखाने का निर्माण मुगल बादशाह आलमगीर औरंगजेब ने संवत १७२९, सन १६७२ में कराया था तथा नक्कारखाने के संचालन हेतु 5 गांव बातौर माफी जागीर मंदिर को भेंट किया। इस जागीर माफी को मुगलिया बादशाह शाहआलम ने बरकरार रखते हुए नक्कारखाने एवं मंदिर के भोगराग की व्यवस्था के लिए ढाई गांव और बढाकर साढ़े सात गांव की जागीर मंदिर के सेवायत श्री शोभरि वन्शावंताश आदिगोड़ विप्रवंश मार्तंड गोस्वामी श्री कल्याण देव जी के वंशज गो गोस्वामी हंसराज जी एवं जगन्नाथ जी को भेंट दिया तथा मंदिर की व्यवस्था के संचालन के लिए बलभद्र कुंड के मालिकाना हक के साथ सम्पूर्ण परगना महावन में प्रति गांव दो रुपया अतिरिक्त मालगुजारी सर्देही वास्ते देवस्थान श्री दाऊ जी महाराज को भेंट की जिसका फरमान ११९६ फसली यानी संवत १८४० विक्रम चेत्र शुक्ल 3 को जारी किया गया।”
इतिहासकार रज़ावी बताते हैं कि इसके अलावा काशी और मथुरा के दुसरे मंदिरों को भी औरंगजेब ने दान दिया। कुछ मंदिरों में जिनमें पहले के मुगल बादशाहों ने दान देने की परंपरा शुरू की थी उसे भी औरंगजेब ने जारी रखा।
हालांकि, महावन के तहसीलदार पवन पाठक इस संबंध में कोई दस्तावेज तो उपलब्ध नहीं करा पाए, लेकिन मथुरा के प्रसिद्ध इतिहासकार घनश्याम पांडे दावा करते हैं कि औरंगजेब ने दाऊ जी महाराज मंदिर को पांच गांव की जागीर माफी दी थी, जिसके पुख्ता प्रमाण हैं। मंदिर के रिसीवर आरके पांडेय भी इस बात की पुष्टि करते हैं। फिलहाल औरंगजेब के नाम वाले शिलापट्ट को वहां से हटा दिया गया है। आरके पांडेय के मुताबिक शिलापट्ट सुरक्षित है। नक्कारखाने में निर्माण कार्य चलने के कारण उसे फिलहाल हटाया गया है। कार्य पूरा होने के बाद उसे वहीं स्थापित कर दिया जाएगा।
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