‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’ को भी नहीं छोड़ा मोदी सरकार ने, प्रचार पर उड़ा दिए योजना के आधे से ज्यादा पैसे
केंद्र की मोदी सरकार ने साल 2015 की शुरुआत में काफी तामझाम के साथ ‘बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ’ योजना की शुरूआत की थी। अब चार साल बाद मोदी सरकार द्वारा जारी इस योजना के आंकड़े बताते हैं कि इसका लक्ष्य बेटियों को बचाने और पढ़ाने से ज्यादा खुद का प्रचार करना था।
मोदी सरकार द्वारा जारी आंकड़े बताते हैं कि इस योजना के लिए जारी राशि का आधे से ज्यादा पैसा सरकार ने सिर्फ प्रचार में खर्च कर दिया। आंकड़ों की पड़ताल से सामने आया है कि 2014 से 2018 के बीच योजना का करीब 56 प्रतिशत पैसा मीडिया से जुड़ी गतिविधियों पर खर्च किया गया है। वहीं आंकड़ों से पता चला है कि इस दौरान 25 प्रतिशत से भी कम पैसा जिलों और राज्यों को आवंटित किए गए। जबकि सरकार द्वारा योजना का करीब 19 प्रतिशत पैसा जारी ही नहीं किया गया।
यह जानकारी लोकसभा में पूछे गए सवाल के जवाब में महिला एवं बाल विकास राज्यमंत्री डॉ. वीरेंद्र कुमार ने 4 जनवरी को सदन में दी। कांग्रेस की सुष्मिता देव, टीआरएस, शिवसेना और बीजेपी के दो सांसदों द्वारा पूछे गए प्रश्न के जवाब में सरकार की ओर से बताया गया कि अभी तक इस योजना के लिए कुल 644 करोड़ रुपया जारी किया गया है। जिसमें से मात्र 159 करोड़ रुपये जिलों और राज्यों को भेजे गए हैं।
आंकड़े बताते हैं कि योजना के लिए साल 2014-15 में कुल 50 करोड़ रुपये का फंड आवंटित किया गया, जिसमें से 18.91 करोड़ रुपया प्रचार पर खर्च कर दिया गया और केवल 13.37 करोड़ रुपये ही जिलों और राज्यों को भेजे गए। यही नहीं शेष पैसे अब तक जारी ही नहीं किए गए। उसी तरह 2015-16 में भी 75 करोड़ रुपये का आवंटन हुआ। हालांकि इसमें से 39.08 करोड़ रुपये राज्यों को जारी किए गए और 24.54 रुपये प्रचार पर खर्च किए गए।
वहीं आंकड़ों से सामने आय़ा है कि बीते साल 31 दिसंबर तक कुल 648 करोड़ रुपये का आवंटन हुआ, जिसमें से 364.66 करोड़ रुपये प्रचार पर खर्च कर दिए गए। जबकि केवल 159.18 करोड़ रुपये जिलों और राज्यों को आवंटित किए गए। और खास बात है कि इसमें से करीब 124.16 करोड़ रुपये अब तक जारी ही नहीं किए गए हैं।
बता दें कि पीएम मोदी ने गिरते हुए लिंगानुपात को कम करने और समाज में लड़कियों के प्रति नजरिये में बदलाव करने के दो लक्ष्य तय करते हुए 22 जनवरी 2015 को ‘बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ’ योजना की शुरूआत की थी। लेकिन अब चार साल बाद सामने आए आंकड़ों से जाहिर हो गया है कि मोदी सरकार का असल लक्ष्य योजना की आड़ में अपना प्रचार करना था।
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