दिल्ली से चार साल में 1600 करोड़ के मोबाइल फोन गायब, बरामदगी के सवाल पर हंस पड़े थे गृह मंत्री राजनाथ सिंह
एक अनुमान के मुताबिक दिल्ली में हर महीने करीब दो लाख मोबाइल फोन या तो चोरी हो जाते हैं, गायब हो जाते हैं या फिर झपट लिए जाते हैं। इस साल 30 जून 2018 तक मोबाइल चोरी होने, खो जाने या लूट लिए जाने के 11,58,637 मामले दर्ज हो चुके हैं।
मोबाइल फोन चोरी होना या छीन लिया जाना दिल्ली में आम बात है। एक अनुमान के मुताबिक दिल्ली में हर महीने करीब दो लाख मोबाइल फोन या तो चोरी हो जाते हैं, गायब हो जाते हैं या फिर झपट लिए जाते हैं। इस तरह लगभग सात हजार लोग हर रोज अपना मोबाइल फोन गंवा देते हैं। मोबाइल फोन चोरी होने या खो जाने के मामले लगातार बढ़ रहे हैं। और इनकी बरामदगी का औसत लगातार गिरता जा रहा है।
इस साल यानी 30 जून 2018 तक ही मोबाइल चोरी होने या खो जाने या लूट लिए जाने के 11,58,637 मामले दर्ज हो चुके हैं। इनमें से 11,29,820 मामले मोबाइल खोने, 26,440 चोरी होने, 1,715 झपटमारी के और 662 मोबाइल फोन लूट लिए जाने के हैं। पिछले साल यानी 2017 में मोबाइल फोन से जुड़े कुल 14,81,147 मामले दर्ज हुए थे। इनमें से 14,18,541 मोबाइल खोने, 56,898 चोरी होने, 4,266 झपटमारी और 1,442 लूट के दर्ज हुए थे। ऐसे ही आंकड़े 2016 में भी थे।। उस साल मोबाइल से जुड़े कुल 3,82,116 मामले दर्ज हुए थे। इनमें से 3,56,667 मोबाइल खोने,18,687 चोरी के, 5,121 झपटमारी और 1,641 लूट के तहत दर्ज हुए।
यह आंकड़े चौंकाते हैं, क्योंकि 2015 में मोबाइल चोरी या खोने के सिर्फ 62,373 और साल 2014 में सिर्फ 66,724 मामले ही दर्ज हुए थे। इन दो वर्षों के बाद से मोबाइल फोन चोरी होने, झपट लिए जाने या लूट लिए जाने के मामलों में जबरदस्त बढ़ोत्तरी हुई है।
इन सारे आंकड़ों को मिलाकर देखें तो 2014 से 30 जून 2018 तक मोबाइल फोन चोरी होने या लूट लिए जाने के करीब 32 लाख मामले दर्ज हुए। इनमें से 30 लाख से ज्यादा (30,21,900) मामले तो पिछले ढाई साल यानी वर्ष 2016, 2017 और 30 जून 2018 तक के ही हैं। इन करीब 32 लाख फोन की कीमत का अनुमान 5000 रुपए प्रति फोन भी लगाया जाए तो करीब 1600 करोड़ रुपए होता है।
केंद्रीय गृहमंत्री को भी नहीं है मोबाइल चोरी रोकने की परवाह
2017 की वार्षिक प्रेस कांफ्रेंस में केंद्रीय गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने दिल्ली के पुलिस कमिश्नर अमूल्य पटनायक की मौजूदगी में ही मोबाइल फोन की बरामदगी में निराशाजनक प्रदर्शन के बारे में पूछे गए सवाल को हंसी में उड़ा दिया था। इसके पहले गृह राज्य मंत्री हंसराज अहीर ने तो राज्यसभा में यह तक कह दिया था कि छोटे मामले सुलझाने में पुलिस को तकलीफ होती है। कुल अपराध के 75 फीसदी मामलों को सुलझाने में नाकाम रहने वाली दिल्ली पुलिस को फटकार लगाने के बजाए संसद में गृह मंत्री राजनाथ शाबशी देंगे तो पुलिस भला मेहनत वाली तफ्तीश ही क्यों करेगी।
सच्चाई यह है मोबाइल फोन खोने में दर्ज हुए अधिकांश मामले चोरी और झपटमारी के ही होते हैं। अगर झपटमारी या चोरी में एफआईआर दर्ज होगी तो आंकड़ों में अपराध की बढ़ोत्तरी उजागर हो जाएगी। इसलिए दिल्ली पुलिस का अलिखित नियम है कि झपटमारी, जेबकटने या मोबाइल चोरी के अधिकांश मामलों में एफआईआर दर्ज न की जाए। झपटमारी, जेबकटने या मोबाइल चोरी की रिपोर्ट कराने पहुंचे शख्स को पुलिस कह देती है बरामदगी की संभावना तो कम है, तुम्हारा काम तो खोने की रिपोर्ट से भी चल जाएगा।
आंकड़े बताते हैं कि मोबाइल बरामदगी में कितनी शर्मनाक स्थिति है। वर्ष 2015 में मोबाइल चोरी या खोने के 62,373 और साल 2014 में 66,724 मामले दर्ज हुए थे। इनमें से साल 2015 में 3,415 और साल 2014 में 2,237 मोबाइल ही पुलिस बरामद कर सकी। साल 2014, 2015 और 30 जून 2016 तक मोबाइल चोरी या खो जाने के 1,53,579 मामलों में पुलिस सिर्फ 6,720 मोबाइल फोन ही बरामद कर पाई है। यह जानकारी राज्यसभा में खुद गृह राज्य मंत्री हंसराज गंगाराम अहीर ने दी।
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