रोजगार के आंकड़ों पर घिरी मोदी सरकार, देश बोला- ‘मैं भी बेरोजगार’
2017-18 में तो बेरोजगारी का स्तर 45 साल के रिकॉर्ड लेवल पर पहुंच गया। सीएमआईई की जनवरी में जारी रिपोर्ट में कहा गया था कि 2018 में करीब 1.1 करोड़ लोग बेरोजगार हो गए। इसके लिए 2016 में मोदी सरकार द्वारा की गई नोटबंदी और 2017 में लागू जीएसटी को जिम्मेदार बताया गया।
आंकड़ो की मानें तो रोजगार देने के मामले में मोदी सरकार पूरी तरह से फेल रही है। आज देश में करोड़ों युवा बेरोजगार है और सरकार से पूछ रहे हैं कि हर साल 2 करोड़ नौकरी देने के वादे का क्या हुआ? आज ट्विटर पर ‘मैं भी बेरोजगार’ पूरे देश में ट्रेंड कर रहा है। लाखों लोग इस हैज टैग के साथ ट्वीट कर रहे हैं। तो ऐसे में ये जानना जारूरी है कि मोदी सरकार के पांच साल के दौरान रोजगार का आलम क्या रहा।
डराने वाले हैं आंकड़े!
रोजगार देना तो दूर 2014 से अबतक कई लाख लोग अपनी नौकरी से हाथ धो चुके हैं। नेशनल सैंपल सर्वे ऑफिस (एनएसएसओ) की रिपोर्ट के मुताबकि देश में पुरुष कामगारों की संख्या तेजी से घट रही है। इस दौरान करीब 3.2 करोड़ अनियमित मजदूर बेरोजगार हो गए हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में कृषि एवं गैर-कृषि कार्यों में कार्यरत अनियमित श्रम कार्य बल में 7.3% पुरुष बेरोजगार हुए, जबकि महिलाओं के लिए यह दर 3.3% रही। सर्वे के अनुसार 2011-12 से राष्ट्रीय पुरुष कार्यबल 30.4 करोड़ से घटकर 28.6 करोड़ हो गया है। रिपोर्ट में यह भी दावा किया गया है कि भारत का राष्ट्रीय कार्यबल 4.7 करोड़ घट गया है जो सऊदी अरब की कुल जनसंख्या से भी अधिक है।
वहीं सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी (सीएमआईई) द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार फरवरी, 2019 के दौरान देश में बेरोजगारी की दर 7.2 फीसदी तक पहुंच गई है।
इतना ही नहीं साल 2017-18 में तो बेरोजगारी का स्तर 45 साल के रिकॉर्ड लेवल पर पहुंच गया। सीएमआईई की जनवरी में जारी रिपोर्ट में कहा गया था कि 2018 में करीब 1.1 करोड़ लोग बेरोजगार हो गए। इसके लिए 2016 में मोदी सरकार द्वारा की गई नोटबंदी और 2017 में लागू जीएसटी को जिम्मेदार बताया गया।
कई दशकों में पिछले पांच साल का वक्त शायद पहला ऐसा दौर है जब सबसे अधिक रोजगार खत्म हुए यानी नौकरियों से लोग निकाले गए। दुनिया के किसी देश में कभी कभी ही ऐसा होता है जब किसी देश में बेरोजगारी की दर आर्थिक विकास दर के इतने करीब पहुंच जाए। मोदी सरकार के तहत देश की औसत विकास दर 7.6 फीसद रही और बेकारी की दर 6.1 फीसद। वहीं यूपीए शासनकाल में बेरोजगारी की दर 2 फीसदी थी और विकास दर 6.1 फीसदी।
शहर गांव हर जगह रोजगार के लिए मारा मारी है। देश में ग्रामीण मजदूरी की दर चार साल के न्यूनतम स्तर पर है। आर्थिक उदारीकरण के बाद यह पहला मौका है जब संगठित और असंगठित, दोनों क्षेत्रों में एक साथ बड़े पैमाने पर रोजगार खत्म हुए।
दूरसंचार क्षेत्र में 2014 के बाद हर साल 20-25 फीसद लोगों की नौकरियां गईं। उद्योग का अनुमान है कि करीब दो लाख रोजगार खत्म हुए। वहीं बैंकिंग में मंदी, बकाया कर्ज में फंसे बैंकों के विस्तार पर रोक के कारण रोजगार खत्म हुए।
असंगठित क्षेत्र जो देश में लगभग 85 फिसदी रोजगार देता है, इस क्षेत्र में नोटबंदी और जीएसटी की वजह से लाखों लोगों की नौकरी चली गई। मोबाइल फोन उद्योग के मुताबिक, नोटबंदी के बाद मोबाइल फोन बेचने वाली 60 हजार से ज्यादा दुकानें बंद हुईं। छोटे कारोबारों में 35 लाख (मैन्युफैक्चरर्स एसोसिएशन सर्वे) और पूरी अर्थव्यवस्था में अक्तूबर, 2018 तक कुल 1.10 करोड़ रोजगार खत्म हुए हैं।
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