पैदावार से भी ज्यादा ‘दाल’ खरीदती है मध्य प्रदेश सरकार

जानकारी के मुताबिक मध्यप्रदेश सरकार ने पिछले 5 वर्षों के दौरान राज्य में किसानों द्वारा उगाए गए दाल की मात्रा से कहीं ज्यादा मात्रा में दाल खरीदी।

मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री  शिवराज सिंह चौहान/फोटोः Getty images
मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान/फोटोः Getty images
user

एलएस हरदेनिया

मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री और बीजेपी नेता यह दावा करते हुए नहीं थकते कि मध्य प्रदेश अब बीमारू राज्य नहीं रहा। यहां तक कि बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने भी शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्व में राज्य द्वारा की गई तरक्की की प्रशंसा की है। लेकिन जमीनी हकीकत पूरी तरह से अलग है।

अहम बात यह है कि मध्य प्रदेश भारत में सबसे अधिक भ्रष्ट राज्य के रूप में उभरा है। व्यापम घोटाले की खबरों ने सिर्फ देश में ही नहीं, बल्कि विदेश में भी सुर्खियां बटोरीं। एक दिन भी ऐसा नहीं गुजरता जब राज्य के समाचार पत्रों में यहां के भ्रष्टाचार से जुड़ी खबरें न छपती हों। सितंबर महीने के पहले तीन दिनों में इस संबंध में बड़ी खबरें छपीं।

अंग्रेजी समाचार पत्र द टाइम्स ऑफ इंडिया के भोपाल संस्करण ने 3 सितंबर को राज्य में मूंग दाल की खरीद में घोटाले की खबर छापी है। खबर के अनुसार, मध्यप्रदेश सरकार ने पिछले 5 वर्षों के दौरान राज्य में किसानों द्वारा उगाए गए दाल की मात्रा से कहीं ज्यादा मात्रा में दाल खरीदी।

सूचना का अधिकार कानून के तहत राज्य सरकार द्वारा दी गई जानकारी के मुताबिक राज्य सरकार ने मूंग दाल की खरीद में 1,200 करोड़ रुपये खर्च करने का दावा किया है। जानकारी के अनुसार, बाजार में पैदावार अप्रैल से ही पहंचने लगा था, जबकि खरीद की प्रक्रिया जुलाई में शुरू हुई। तब तक ज्यादातर किसानों ने अपना अनाज निजी व्यापारियों को बेच दिया होगा। यह तथ्य राज्य सरकार की खरीद के दावे पर सवाल खड़े करती है।

बडे पैमाने पर धोखाधड़ी की आशंका उस समय सही साबित हुई जब हरदा के जिलाधिकारी ने माना कि जिले में ऐसे 900 फर्जी किसानों की पहचान हुई है जिन्होंने सरकारी दस्तावेजों में राज्य सरकार को मूंग दाल बेचा है। जिले में दाल की खरीद पर लगभग 200 करोड़ रुपये खर्च किया गया था। एक किसान द्वारा हस्ताक्षर किए गए समझौता पत्र का इस्तेमाल फर्जी किसानों से खरीद में भी किया गया जिसमें खेती की कुल भूमि और अन्य विवरण दिए थे।

यह भी बात सामने आई कि तीन जांच समितियों के गठन और उनकी रिपोर्ट प्राप्त होने के बावजूद राज्य सरकार ने अब तक कोई कार्रवाई नहीं की है। ऐसा बताया गया कि पहली दो जांच समितियां किसी निर्णय पर नहीं पहुंच सकीं।

बुंदेलखंड में बांध: एक अन्य समाचार पत्र फ्री प्रेस जर्नल ने इस हफ्ते खबर छापी है कि उच्च न्यायालय के आदेश पर हुई जांच में बुंदेलखंड क्षेत्र में 350 रोक बांधों के निर्माण में अनियमितताएं उजागर हुई हैं।

यूपीए सरकार ने सूखा प्रभावित क्षेत्र में किसानों को राहत देने के उद्देश्य से रोक बांधों के निर्माण के लिए 3,800 करोड़ रुपये आवंटित किए थे। परियोजना का क्रियान्वयन राज्य सरकार के हाथ में था। मुख्य तकनीकी परीक्षक आर के मेहरा ने पुष्टि की है कि आवंटित राशि का 90 प्रतिशत बर्बाद हो गया।

सामाजिक कार्यकर्ता पवन घुवारा ने दावा किया कि उन्होंने भ्रष्टाचार और अनियमितताओं को लेकर कई बार सरकार के समक्ष शिकायत दर्ज कराई, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं की गई। इसके बाद उन्होंने हाईकोर्ट में एक याचिका दायर की जिसके बाद कोर्ट ने जांच के आदेश दिए। मेहरा ने कोर्ट को बताया कि उनकी जांच में पता चला है कि बांधों के निर्माण का काम डिजाइन और नक्शे की स्वीकृति से पहले ही शुरू हो गया था। कुछ जगहों पर तो निर्माण कार्य आधी आवंटित राशि में ही पूरा कर दिया गया।

600 करोड़ रुपये की धोखाधड़ीः हिंदी समाचार पत्र दैनिक भास्कर में एक अन्य रिपोर्ट में आरोप लगाया गया है कि संपत्ति पंजीकरण विभाग द्वारा कम स्टाम्प ड्यूटी लगाए जाने से राजकोष को 600 करोड़ का नुकसान उठाना पड़ा है। और नुकसान का यह आंकड़ा सिर्फ भोपाल का है। रिपोर्ट में दावा किया गया है कि इस हेर-फेर को आयकर विभाग ने उजागर किया है।

भोपाल में खस्ताहाल स्वास्थ्य सेवाः सुशासन का भ्रमजाल राज्य की राजधानी के बारे में छपी स्वास्थ्य सेवाओं से जुड़ी खबरों से टूट जाता है। भास्कर के मुताबिक भोपाल मेडिकल कॉलेज से जुड़े हमिदिया अस्पताल का कैथलैब कई महीनों से काम नहीं कर रहा है। इसकी वजह से हृदय रोग से पीड़ित गरीब मरीजों को एंजियोग्राफी और एंजियोप्लास्टी के लिए निजी अस्पतालों में भेजा जा रहा है। सुल्तानिया अस्पताल में भी ईसीजी मशीन सही से काम नहीं कर रही है, जो भोपाल में महिलाओं के लिए एक बड़ा अस्पताल है।

शिक्षकों के रिक्त पदः कई सालों से सरकारी स्कूलों में 31,000 हजार शिक्षकों के पद खाली हैं। राज्य में ऐसे स्कूलों की संख्या बहुत ज्यादा है जहां एक भी शिक्षक नहीं है। कई जगहों पर एक ही शिक्षक 5 कक्षाओं में पढ़ा रहे हैं। राज्य के स्कूलों की हालत ये है कि अंग्रेजी के शिक्षक विज्ञान पढ़ा रहे हैं और हिंदी के शिक्षक भूगोल और गणित पढ़ा रहे हैं।

अगर ये सब एक बीमारू राज्य के लक्षण नहीं हैं तो फिर क्या हैं?

Google न्यूज़नवजीवन फेसबुक पेज और नवजीवन ट्विटर हैंडल पर जुड़ें

प्रिय पाठकों हमारे टेलीग्राम (Telegram) चैनल से जुड़िए और पल-पल की ताज़ा खबरें पाइए, यहां क्लिक करें @navjivanindia


Published: 05 Sep 2017, 8:06 PM