जानिए लोकसभा चुनाव 2019 के वो मुद्दे जिस पर पीएम मोदी को जवाब देना होगा मुश्किल
चुनाव आयोग आज लोकसभा चुनाव के तारीखों का ऐलान कर सकता है। 2019 लोकसभा चुनाव में कई ऐसे मुद्दे हैं जिस पर पीएम मोदी को जनता को जवाब देना होगा। 2014 लोकसभा चुनाव के दौरान अपनी रौलियों में नरेंद्र मोदी ने कई वादे किए थे। अब पांच साल बाद जनता उनसे उन वादों का हिसाब मांगेगी।
चुनाव आयोग आज लोकसभा चुनाव के तारीखों का ऐलान कर सकता है। ऐसे में ये जानना जरूरी है कि इस बार के चुनाव में वो कौन से मुद्दे हैं जिसको लेकर विपक्ष सरकार को घेरने की कोशिश करेगा।
मोदी सरकार से किसान हैं नाराज!
2014 लोकसभा चुनाव से पहले तब के बीजेपी के प्रधानमंत्री के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी ने किसानों के लिए कई बड़े वादे किए थे। लेकिन क्या उन वादों पर अमल किया गया? किसानों को उनका हक दिलाने की बात करने वालो पीएम मोदी उनको हक दिला पाए? किसानों की नाराजगी को देखकर लगता तो नहीं है। कृषि क्षेत्र की मुख्य समस्या है कम विकास दर और खाद्य पदार्थो का कम दाम। देश भर के किसान न्युनतम मूल्य को बढ़ाने के लिए सरकार के खिलाफ विरोध प्रदर्शन करते रहे हैं। किसानों को लागत के हिसाब से उपज पर मूल्य नहीं मिल रहा। कर्ज के बोझ से दबे किसान हर दिन आत्महत्या करने को मजबूर हो रहे हैं। अब चुनाव में किसान पीएम मोदी को पिछले चुनाव के वक्त किए गए वादों को याद दिलाएंगे और सवाल पूछा जाएगा।
नौकरियों का अकाल
हमारे देश में बेरोजगारी हमेशा से एक बड़ा मुद्दा रहा है। बेरोजगारी वर्तमान सरकार की सबसे बड़ी असफलता कही जा सकती है। हर साल एक करोड़ नौकरी देने का वादा कर के सत्ता में आने वाली पार्टी की सरकार ने कुछ ऐसे फैसले लिए जिसकी वजह से हालात और खराब हो गए। नोटबंदी और जीएसटी की वजह से लाखों लोग बेरोजगार हो गए और कइयों के व्यवसाय चौपट हुए। एक रिपोर्ट के मुतबाकि नोटबंदी की वजह से करीब 15 लाख लोग बेरोजगार हो गए। बेरोजगारी का आलम यह है कि 2017-18 में बिगत 45 सालों में सबसे कम नौकरियां उत्पन्न हुई। सरकार का नौकरी का हालात बताने वाला विभाग राष्ट्रीय सांख्यिकी आयोग से कई इस्तीफा भी हो चुके है। विपक्ष का आरोप है की सरकार आंकड़ों को छुपाने के वास्ते अधिकारियो पर दवाब बना रही है।
राफेल डील
इस लोकसभा चुनाव में राफेल डील भी एक बड़ा मुद्दा है। राफेल डील को लेकर कांग्रेस लगातार मोदी सरकार को कटघरे में खड़ी करती रही है। कांग्रेस इस डील में भारी अनियमितताओं का आरोप लगा रही है। उसका कहना है कि सरकार प्रत्येक विमान 1,670 करोड़ रुपये में खरीद रही है जबकि पूर्ववर्ती यूपीए सरकार ने प्रति विमान 526 करोड़ रुपये कीमत तय की थी। साथ ही कांग्रेस पार्टी मोदी सरकार से लगातार यह सवाल पूछती आई है कि सरकारी ऐरोस्पेस कंपनी एचएएल को इस डील में शामिल क्यों नहीं किया गया।
हाल की चुनाव रैलियों में कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने सीधे तौर पीएम मोदी पर हमला बोलते हुए कहा कि पीएम मोदी ने अनिल अंबानी को इस डील का फायदा पहुंचाया। राहुल गांधी का आरोप है कि डसॉल्ट ने मोदी सरकार के दबाव में अनिल अंबानी की कंपनी रिलायंस डिफेंस को ऑफसेट पार्टनर चुना, जबकि उसके पास इस क्षेत्र में कोई अनुभव नहीं है।
लोकतांत्रिक संस्थाओं और प्रक्रियाओं को कम करके आंकना
इस सरकार के सत्ता में आने के साथ ही विपक्षी पार्टियों का एक बड़ा आरोप यह भी रहा है कि यह सरकार लोकतांत्रिक संस्थाओं और प्रक्रियाओं को कम करने का प्रयास कर रही है। विपक्षी पार्टियों के अनुसार यह सरकार लोकतांत्रिक संस्थाओं को नष्ट भी कर रही है। विपक्षी पार्टियों के अनुसार न्यायिक प्रक्रिया, संसद, जनसंचार, रिजर्व बैंक, सीबीआई, जनसूचना का अधिकार सहित सभी इस तरह के जान कल्याणकारी संस्थाओ को सरकार नजरअंदाज कर रही है। पश्चिम बंगाल की मुख्य मंत्री ममता बनर्जी संविधान बचाओ की मांग को लेकर धरने पर बैठ गयी जिसका कई पार्टियों ने समर्थन भी किया।
रामजन्मभूमि विवाद
यह विवाद भारत की राजनीती को पिछले 3 दशकों से प्रभावित कर रही है। बीजेपी इस पर अपनी सुविधा की राजनीति करती रही है। हालांकि इस बार राम मंदिर मुद्दे पर बीजेपी को चुनाव में ज्यादा फायदा नहीं मिलने वाला। अब लोग पार्टी से सवाल कर रहे हैं कि मंदिर कब बनेगा ये बताइए सरकार।
नागरिकता संशोधन विधेयक
लोकसभा चुनाव 2019 में नागरिकता संशोधन विधेयक भी एक मुद्दा है। इस विधेयक का सबसे ज्यादा विरोध असम में हो रहा है। असम सहित पूर्वोत्तर में इस संशोधन विधेयक का विरोध करने वालों का कहना है कि इससे क्षेत्र में सामाजिक व जनसांख्यिकीय संरचना बुरी तरह प्रभावित होगी। उन्होंने इसे असम समझौता, 1985 के विरुद्ध भी माना है, जो 25 मार्च, 1971 के बाद बांग्लादेश से आने वाले अवैध प्रवासियों को वापस उनके देश भेजने की बात करता है।
उनका कहना है कि ऐसे प्रवासियों की पहचान और उन्हें वापस उनके देश भेजने के लिए हुए समझौते में किसी भी कीमत पर बदलाव नहीं किया जाना चाहिए।
अफगानिस्तान, बांग्लादेश या पाकिस्तान से आए जिन लोगों को सितंबर 2015 में भारत में रहने की अनुमति दी गई, वे ऐसे लोग थे, जो 31 दिसंबर, 2014 से पहले या उस दिन तक भारत पहुंच गए थे। इसी तरह उक्त देशों से आए कुछ अन्य अवैध प्रवासियों को उनके देश वापस भेजने की बजाय जुलाई 2016 में भी उन्हें नागरिकता देने का मुद्दा उठा और विधेयक लोकसभा में पेश किया गया, जिसके बाद से पूर्वोत्तर उबल पड़ा।
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