लोकसभा-राज्यसभा टीवी के कर्मचारियों की नौकरी पर अब लटकी तलवार, दोनों चैनल के विलय की तैयारी में सरकार
लोकसभा चैनल 2004 के आम चुनावों के बाद मनमोहन सरकार द्वारा कई प्रमुख पेशेवर लोगों को साथ जोड़कर काफी सफलता के साथ शुरु किया गया था, लेकिन पिछले छह साल से इसमें संपादक, ऐंकर व पत्रकारों की टीम तय करने के लिए RSS व BJP पृष्ठ भूमि के लोगों को भरा जाने लगा।
लोकसभा व राज्यसभा टीवी चैनलों के आपस में विलय करने का सरकार ने शीर्ष स्तर पर फैसला ले लिया है। दोनों टीवी चैनलों के विलय के फैसले के साथ ही अब सारी अटकलें इस बात पर केंद्रित हो गई हैं कि नए चैनल की कमान किसके हाथ सौंपी जाएगी। नए चैनल का नाम संसद टेलीविजन रखा जाएगा।
दोनों संसदीय चैनल के विलय के बाद अब यह तय हो गया है कि दोनों चैनलों के सीईओ में से एक की या तो छुट्टी होगी या उन्हें एक दूसरे के अधीन काम करने को विवश होना होगा। चैनलों के विलय के सरकार के कदम के बाद जहां अब दोनों संस्थानों के कई पत्रकार व गैर पत्रकार तकनीकी स्टाफ को हटाया जाना लगभग तय हो गया है।
पीएमओ के सूत्रों का कहना है कि दोनों चैनलों की कार्यप्रणाली चूंकि एक जैसी है इसलिए सरकार ने महसूस किया कि इन पर दोहरा बजट खर्च करने का कोई औचित्य नहीं है। सरकार की ओर से इन दोनों चैनलों के विलय की घोषणा राज्यसभा महासचिव देश दीपक वर्मा ने हाल में बेलग्रेड में की है। जहां वे अंतर संसदीय फोरम की बैठक में शिरकत करने गए हुए थे।
सूत्रों का कहना है कि प्रधानमंत्री मोदी अपने पहले कार्यकाल में ही दोनों चैनलों का एक ही चैनल करने के पक्ष में थे। सरकार को सलाह दी गई कि जब संसद की कार्यवाही के सीधे प्रसारण का दौर है तथा दूरदर्शन के माध्यम से भी संसद के कामकाज का सीधा प्रसारण होता है तो ऐसी दशा में टीवी चैनलों के बीच गलाकाट प्रतियोगिता के इस दौर में ससंद के दोनों चैनलों के बीच आपसी प्रतियोगिता होने से कोई स्वस्थ परंपरा विकसित नहीं हो रही है।
पीएमओ ने इस बात पर भी चिंता प्रकट की संसद के चैनलों के संचालन में भारी सरकारी धन खर्च होता है तथा कुछ को छोड़कर कार्यक्रमों की गुणवत्ता हाल के दिनों में बुरी तरह प्रभावित हुई है। टीआरपी कम हुई है तथा संसद में विपक्षी पार्टियों ने भी इन चैनलों को सरकारी भौंपू बताने में कोई गुरेज नहीं किया।
लोकसभा चैनल तो 2004 के आम चुनावों के कुछ समय बाद मनमोहन सरकार ने शुरू किया था। तत्कालीन लोकसभा स्पीकर सोमनाथ चटर्जी ने लोकसभा के लिए अपना स्वतंत्र चैनल बनाने के लिए काफी रुचि दिखायी थी और उन्होंने शुरुआत में कई प्रमुख पेशेवर लोगों को चैनल के साथ जोड़कर शुरुआत काफी सफलता के साथ की। लेकिन पिछले छह साल से लोकसभा चैनल में संपादक से लेकर ऐंकर व पत्रकारों की पूरी टीम तय करने के लिए आरएएसएस व बीजेपी पृष्ठ भूमि के लोगों को भरा जाने लगा।
राज्यसभा टीवी भी शुरू में काफी लोकप्रिय रहा। उसके प्राईम टाईम कार्यक्रमों की रेटिंग निजी चैनलों को कड़ी टक्कर दे रही थी। लेकिन उप राष्ट्रपति पद पर वेंकैया नायडु के पदासीन होने के बाद उन्होंने कई विवादित लोगों को इस चैनल का सर्वे सर्वा बना दिया। इनमें प्रमुख नाम सूचना सेवा के एक अधिकारी ए ए राव का कार्यकाल विवादों भरा रहा। राव के खिलाफ कार्यालय में एक वरिष्ठ महिला सहकर्मी के साथ छेड़ाखानी और दुर्व्यवहार का मामला दिल्ली हाई कोर्ट में विचाराधीन है।
राव के कुछ माह पूर्व रिटायर होने के बाद वेंकैया नायडु ने भले ही उन्हें सेवा विस्तार दिया लेकिन पीएमओ के पास उनके खिलाफ गंभीर आचरण संबंधी शिकायतों के बाद उन्हें राज्यसभा टीवी के दायित्व से हटा दिया। हाल ही में राज्यसभा टीवी में एक और अधिकारी नरेंद्र कुमार जिन पर भी राव के इशारे पर ही काम करते का आरोप है को भी टीवी चैनल के दायित्वों से हटा दिया गया।
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