देश के 100 से अधिक फिल्मकारों की जनता से अपील, ‘लोकसभा चुनाव में बीजेपी को न दें वोट’
बीजेपी के धार्मिक ध्रुवीकरण, जनता से झूठे वादे, गौरक्षा के नाम पर सांप्रदायिक दंगे और मॉब लिंचिंग जैसी घटनाओं को बढ़ावा दिए जाने का जिक्र करते हुए देश के 100 से ज्यादा फिल्मकारों ने लोगों से आगामी लोकसभा चुनाव में समझदारी से मतदान करने की अपील की है।
आगामी लोकसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी को वोट ना देने के लिए 100 से भी ज्यादा फिल्मकारों ने देश के लोगों से अपील की है। इन फिल्मकारों के अनुसार बीजेपी ने सत्ता में आने के बाद धार्मिक धुव्रीकरण किया है और देश में नफरत की राजनीति को बढ़ाया है।
एक अंग्रेजी अखबार में छपी खबर के अनुसार इन सभी फिल्मकारों ने ‘लोकतंत्र बचाओ मंच’ के तहत एकजुट होकर लोगों से बीजेपी को वोट न देने की अपील की है। इन फिल्मकारों में आनंद पटवर्धन, दीपा धनराज, देवाशीष मखीजा, एसएस शशिधरन, सुदेवन, गुरविंदर सिंह, पुष्पेंद्र सिंह, कबीर सिंह चौधरी, अंजलि मोंटेइरो, प्रवीण मोरछले और उत्सव के निर्देशक और संपादक बीना पॉप जैसे बड़े स्वतंत्र फिल्मकारों के नाम शामिल हैं। इन सभी ने अपना यह बयान शुक्रवार को ‘आर्टिस्ट यूनाइट इंडिया डॉट कॉम’ नाम की एक वेबसाइट पर डाला है।
एनडीए सरकार की धुव्रीकरण और घृणा की राजनीति के बारे में बताते हुए सभी फिल्मकारों ने कहा है कि 2014 में आई इस सरकार ने दलितों, मुसलमान और किसानों को हाशिए पर धकेल दिया है। सरकार देश के न्याय तंत्र को अपने फाएदे के लिए इस्तेमाल कर रही है। इसके अलावा उन्होंने कहा कि देश की सांस्कृतिक और वैज्ञानिक संस्थानों को लगातार कमजोर करने वाली इस सरकार में सेंसरशिप में बढ़ोत्तरी हुई है।
बीजेपी द्वारा देश में धार्मिक ध्रुवीकरण, जनता से झूठे वादे, गौरक्षा के नाम पर सांप्रदायिक दंगे और मॉब लिंचिंग जैसी घटनाओं का जिक्र करते हुए फिल्मकारों ने लोगों से समझदारी से मतदान करने की अपील की है। उन्होंने कहा, “आगामी लोकसभा चुनाव में समझदारी से मतदान नहीं करेंगे तो फासीवाद हमें मुश्किल में डाल देगा.”
एयूआई डॉट कॉम पर अपलोड किये गए अपने बयान में फिल्कारों ने यह भी कहा है कि देश में कोई भी व्यक्ति या संस्था सरकार के किसी फैसले या बयान पर अपनी असहमति जताता है तो उसे राष्ट्र विरोधी या देशद्रोही जैसी संज्ञा दे दी जाती हैं।
फिल्मकारों के बयान में यह भी कहा गया है कि सत्ताधारी पार्टी देशभक्ति जैसे शब्दों को अपना वोट बैंक बढ़ाने के लिए इस्तेमाल कर रही है और साथ ही देश के सशस्त्र बलों को अपनी रणनीति में शामिल करके राष्ट्र को युद्ध में उलझाने की कोशिश कर रही है।
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