कागजी घोड़े दौड़ाने से तो काम होने से रहा, बिना राहत बिना पैकेज उद्योग कैसे खड़े होंगे, यही सबसे बड़ा सवाल
लॉकडाउन के कारण औद्योगिक गतिविधियों पर संकट है, इसमें दो राय नहीं। कामकाज हो नहीं रहा, फैक्ट्री से लेकर बाजार तक विभिन्न स्तरों पर करोड़ों का माल अटका हुआ है। महामारी से पहले जिन उद्यमियों ने भाग-भागकर बैंक से लोन मंजूर कराया, अब हाथें जोड़कर उसे कैंसिल करा रहे हैं।
लॉकडाउन के कारण औद्योगिक गतिविधियों पर संकट है, इसमें दो राय नहीं। कामकाज हो नहीं रहा, फैक्ट्री से लेकर बाजार तक विभिन्न स्तरों पर करोड़ों का माल अटका हुआ है। महामारी से पहले जिन उद्यमियों ने भाग-भागकर बैंक से लोन मंजूर कराया, अब हाथें जोड़कर उसे कैंसिल करा रहे हैं। जेब खाली है तो मजदूरों और कर्मचारियों को घर बैठाकर पैसे कहां से दें, समझ नहीं आ रहा। और सरकार है कि कागजों में लंबी-चौड़ी योजना बनाने में जुटी है। दावा किया जा रहा है कि 15 लाख लोगों को रोजगार देंगे। न कोई राहत, न पैकेज आखिर ये कैसे होगा, किसी को पता नहीं। और ऊपर से सोशल डिस्टेंसिंग वगैरह का पालन न करने पर फैक्ट्री के सील हो जाने का खतरा। उद्यमियों के लिए एक ओर कुआं एक ओर खाई की स्थिति।
यूपी सरकार की नई गाइड लाइन के बाद कोरोना के 10 से कम केस वाले जिलों में औद्योगिक गतिविधि चालू करने की कवायद हो रही है। प्रदेश में ऐसे 28 जिले हैं तो कोरोना फ्री जिलों की संख्या 17 है। प्रदेश के प्रमुख सचिव एमएसएमई डॉ. नवनीत सहगल का दावा है कि परस्पर दूरी और सेहत का ख्याल रखते हुए प्रदेश में 7000 इकाइयां चल रही हैं। इनमें खानपान से जुड़ी फैक्ट्रियां प्रमुख हैं। वर्तमान में 119 चीनी मिलें, 260 सीमेंट फैक्ट्रियां और 50 फीसदी क्षमता से स्टील फैक्ट्रियां चल रही हैं।
फैक्ट्रियों को चालू करने की कोशिशें भले हों लेकिन गीडा से लेकर नोएडा और वाराणसी से लेकर फिरोजाबाद तक उद्यमियों की दिक्कतों को लेकर संजीदगी नहीं है। बिजली के फिक्स चार्ज को लेकर दी जाने वाली छूट को लेकर मुख्यमंत्री कार्यालय और ऊर्जा मंत्री एक मत नहीं हैं। गौतमबुद्ध नगर, मेरठ से लेकर पश्चिमी उत्तर प्रदेश के अन्य जिलों में कोरोना के अधिक मामले हैं। यहां आईटी सेक्टर की कंपनियों ने फैक्ट्री शुरू करने की कोशिश की लेकिन तमाम दिक्कतें आ रही हैं।
इंडियन इंडस्ट्रीज एसोसिएशन के महासचिव मनमोहन अग्रवाल बताते हैं कि शासन द्वारा जारी दिशा-निर्देश के मुताबिक फैक्ट्री चलाना मुश्किल है। मजदूरों को फैक्ट्री तक लाना और उनसे सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करवाना सबसे कठिन काम है। यही नहीं, अगर इनका पालन कसौटी पर खरा नहीं उतरा तो फैक्ट्री सील भी की जा सकती हैं। ऐसे में उद्योगपति कोई खतरा मोल नहीं लेना चाहता। चैंबर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री यूपी स्टेट चैप्टर के को-चेयरमैन मनीष खेमका कहते हैं कि फैक्ट्री संचालन में सबसे बड़ा पेंच फैक्ट्री तक कच्चा माल पहुंचाना और फिर तैयार माल की बिक्री करना है। उद्यमी भी चाहते हैं कि अर्थव्यवस्था को कोई नुकसान न पहुंचे लेकिन अपनी गाढ़ी कमाई के लिए भी चितिं त होना स्वाभाविक है।
वेतन देने के हालात नहीं, चीन को चुनौती का प्लान
बीते 23 अप्रैल को अफसरों के साथ बैठक में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने तीन से छह महीने के अंदर 15 लाख से अधिक लोगों को रोजगार मुहैया कराने के लिए रोडमैप तैयार करने का निर्देश दिया है। इसके साथ ही बदले वैश्विक परिदृश्य में चीन का विकल्प बनने को लेकर औद्योगिक विकास मंत्री सतीश महाना को संभावना तलाशने का निर्देश दिया। इसके उलट जिन फैक्ट्रियों में मजदूर काम कर रहे हैं, उनके मालिकों ने वेतन नहीं देने को लेकर हाथ खड़े कर दिए हैं। गोरखपुर गीडा से लेकर नोएडा तक के उद्यमियों ने तो कमिश्नर को लिख कर दे दिया है कि वे उन्हीं कर्मचारियों को वेतन दे पाएंगे जो काम पर आ रहे हैं। चेम्बर ऑफ इंडस्ट्रीज के अध्यक्ष विष्णु अजीत सरिया का कहना है कि उद्यमी बैंक की किस्त, बिजली बिल जैसे फिक्स चार्ज को देने को लेकर परेशान है। तैयार माल के लिए बाजार है नहीं, ऐसे में काम पर आने वाले मजदूरों और कर्मचारियों को वेतन दे दें, वहीं बहुत है।
उद्यमियों की मुश्किलें भी सुनें ‘सरकार’
दरअसल, बयानों में फैक्ट्री को चालू रखना जिनता आसान दिख रहा है हकीकत में है बहुत कठिन। उद्यमियों के दुश्वारियों को आरिफ और निखिल जालान जैसे उद्यमियों की दिक्क्तों से समझा जा सकता है। मैनेजमेंट की पढ़ाई पूरी करने के बाद गोरखपुर के डॉ.आरिफ साबिर ने गोरखपुर औद्योगिक विकास प्राधिकरण (गीडा) में भाइयों के सहयोग से बीते वर्ष अत्याधुनिक मशीनों के सहारे फर्नीचर का काम शुरू किया था। करीब 30 करोड़ के निवेश के साथ शुरू हुए उद्योग को रफ्तार मिली तो उन्होंने कुछ और मशीनों के लिए बैंक से 4 करोड़ रुपये के ऋण के लिए आवेदन किया। कोरोना वायरस के संक्रमण को लेकर चालू लॉकडाउन ने सबकुछ बदल दिया। फिलहाल, फैक्ट्री पर ताला लटका है। बैंक को मना कर दिया कि 4 करोड़ के ऋण वाली फाइल बंद कर दें। साबिर के सामने असल चुनौती बैंक की किस्त, कर्मचारियों का वेतन और बिजली के फिक्स चार्ज को मिलाकर 20 लाख के इंतजाम को लेकर है। आरिफ बताते हैं कि अप्रैल और मई में वैवाहिक कार्यक्रमों के चलते बेहतर बिक्री की उम्मीद में आसपास के डीलरों को करीब 4 करोड़ रुपये का फर्नीचर उधार में दे दिया। फैक्ट्री अचानक बंद होने से करीब 15 लाख का केमिकल बर्बाद हो गया। समझ नहीं आ रहा है कि अप्रैल का वेतन कहां से दें।
250 करोड़ टर्न ओवर वाली अंकुर पूर्वांचल में धागा बनाने वाली सबसे बड़ी फैक्ट्री है। इसके मालिक निखिल जालान बताते हैं कि उत्पादन ठप है। कच्चा माल, मशीन में फंसा माल, तैयार माल और बाजार में उधार पर बेचे गए माल को मिलाकर करीब 40 करोड़ की पूंजी फंसी हुई है। मजदूरों और कर्मचारियों को मार्च का वेतन तो दे दिया लेकिन अप्रैल का वेतन कैसे दें? निखिल ने यूपी इन्वेस्टर्स समिट में 400 करोड़ की लागत वाले अत्याधुनिक स्टील प्लांट का अनुबंध किया था। निर्माण कार्य तेजी से चल रहा है। निखिल बताते हैं कि बैंक से नए प्लांट को लेकर 250 करोड़ का ऋण मंजूर हो गया है। गनीमत रही कि रकम जारी नहीं हुई थी। वरना किस्त देने में बर्बाद हो जाते। खैर, अब बैंक को ऋण के लिए मना कर दिया है। गीडा में करीब 600 छोटे बड़े उद्योग हैं। ग्रीन जोन के चलते प्रशासन द्वारा फैक्ट्रियों के संचालन का दबाव बना तो करीब 50 इकइयां जैसे-तैसे चालू हुईं। उन्हीं फैक्ट्रियों में उत्पादन हो रहा है, जहां तैयार मॉल के लिए बाजार दिख रहा है। गैलेंट फ्लोर मिल की क्षमता प्रतिदिन 300 टन आटा, सूजी, मैदा और चोकर तैयार करने की है। जहां 300 मजदूर काम करते थे, वहां 50 से 60 मजदूर हैं। उत्पादन का चेन ऐसा है कि सोशल डिस्टेंसिंग का पालन मुश्किल है। यूनिट के हेड भाष्कर तिवारी का कहना है कि आर्डर और खपत को देखकर ही माल तैयार कर रहे हैं। यहां का गैलेंट इस्पात देश के टॉप टेन सरिया उत्पादन करने वाली इकाइयों में है। मालिक चन्द्र प्रकाश अग्रवाल कहते हैं कि सरिया की खपत तो तभी होगी जब इन्फ्रास्ट्रक्चर का काम शुरू होगा। मॉल तैयार कर तो लें, लेकिन बेचें कहाँ?
गोदाम में करोड़ों का माल, पुराने ऑर्डर रद्द हो रहे
कानपुर में 10 हजार से अधिक फैक्ट्रियों में करोड़ों रुपये का माल तैयार है। देश से लेकर लेकर विदेशों के आर्डर रद्द हो रहे हैं। लेदर इंडस्ट्री वेलफेयर एसोसिएशन के प्रवक्ता अय्यर जमाल का कहना है कि 25 हज़ार करोड़ का चमड़ा उद्योग बर्बादी के कगार पर है। 5 हजार करोड़ से अधिक के आर्डर रद्द हो चुके हैं। वहीं ताजनगरी आगरा में 250 कंपनियां ऐसी हैं जो यहां बनें जूतों को विदेशों में भेजती हैं। करीब 20 हजार करोड़ वाले उद्योग से जुड़े 5 लाख मजदूर और कारीगर बेकाम हो गए हैं। लखनऊ जरदोजी हस्तशिल्प विकास समिति के अध्यक्ष सैय्यद इकरार हुसैन रिजवी कहते हैं कि सरकार रिक्शा चालकों और घुमंतू मजदूरों के खाते में हजार रुपये भेज रही है लेकिन इस कारोबार से जुड़े लोगों की अनदेखी हो रही है। सुहागनगरी फिरोजाबाद में कांच, चूड़ी, बोतल ग्लास, मोती आदि का उत्पादन करने वाली करीब 200 फैक्ट्रियां बंद हैं। लगन को देखते हुए मार्च, अप्रैल और मई महीना इस कारोबार के लिए अहम होता है। कारोबारी हनुमान प्रसाद गर्ग का कहना है कि फैक्ट्री मालिकों को प्रतिदिन 60 से 80 लाख रुपये का नुकसान हो रहा है। लॉकडाउन के बाद से मुरादाबाद के पीतल कारोबारियों को अब तक ढाई से तीन हजार करोड़ रुपये का नुकसान हो चुका है।
प्रधानमंत्री के संसदीय क्षेत्रवाराणसी में भी ताबाही
पीएम मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी का बनारसी साड़ी उद्योग से लेकर भदोही का कालीन उद्योग तबाही के कगार पर है। कालीन निर्यात एवं संवर्धन परिषद के चेयरमैन सिद्धनाथ सिंह कहना है कि फिलहाल जून तक राहत की उम्मीद नहीं दिख रही है। इस उधोग को 2000 करोड़ का नुकसान है। देश में इससे जुड़े 700 से ज्यादा एक्सपोर्टर और करीब 15 लाख के ऊपर बुनकर, छोटे व्यापारी प्रभावित हैं। यहाँ के कॉरपेट की खपत टर्की, चीन, अमेरिका, जर्मनी, जापान जैसे देशों में है। बनारस साड़ी उद्योग को भी करीब 200 करोड़ का झटका लगा है। इससे जुड़े करीब सात लाख लोगों के रोजी-रोटी पर संकट आ गया है।
Google न्यूज़, नवजीवन फेसबुक पेज और नवजीवन ट्विटर हैंडल पर जुड़ें
प्रिय पाठकों हमारे टेलीग्राम (Telegram) चैनल से जुड़िए और पल-पल की ताज़ा खबरें पाइए, यहां क्लिक करें @navjivanindia