साझी संस्कृति और विरासत का खूबसूरत उदाहरण हैं भाषाएं, फर्क मिटाने के लिए अनुवाद को मिले बढ़ावा: किरन मनराल

लेखिका किरन मनराल का मानना है कि हमारे देश में एक साथ कई भाषाओं का होना हमारी मिली-जुली संस्कृति और विरासत का खूबसूरत उदाहरण है और भाषाओं का फर्क मिटाने के लिए हमें अनुवाद को बढ़ावा देने की जरूरत है।

फोटोः सोशल मीडिया
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आईएएनएस

फिक्शन और गैर-फिक्शन दोनों ही वर्ग में प्रकाशित हो चुकीं 8 आठ किताबों की प्रसिद्ध लेखिका किरन मनराल का मानना है कि भाषा की उत्पत्ति का मूल उद्देश्य विचारों का आदान-प्रदान करना और समाज के सभी लोगों को एक दूसरे से जोड़ना है। लेकिन आज के समय में भाषा का इस्तेमाल विभाजन करने, श्रेष्ठता का प्रभाव जमाने और खुद को दूसरों से अलग और संभ्रांत दर्शाने के लिए किया जा रहा है। ऐसे में हमारे देश की विभिन्न भाषाओं के खजाने की अहमियत को समझना वक्त की जरूरत है।

किरन मनराल का मानना है कि मातृभाषा और हमारे देश में विभिन्न भाषाओं का जो प्रचुर खजाना है, उसके इस्तेमाल को बढ़ावा दिया जाना चाहिए। वह कहती हैं, "हम भारतीय बहुभाषी हैं और यह एक खूबसूरत तथ्य है। सभी भाषाओं की उत्पत्ति विचारों के अदान-प्रदान की मूलभूत जरूरत के चलते हुई है। हमारे पास हमारी मातृभाषा होती है और उसके बाद आमतौर पर हिंदी और अंग्रेजी। हमें अपनी भाषाओं की प्रचुरता पहचानने और इसकी सराहना करने की जरूरत है। शायद और किसी देश में इतनी ज्यादा आधिकारिक भाषाएं नहीं हैं। इनके अलावा क्षेत्रीय भाषाएं और बोलियां भी हैं, जिनमें से कुछ दुर्भाग्यवश लुप्त हो रही हैं। हर भाषा के साथ उसकी पूरी लिखित संस्कृति है। हमें इसका सम्मान करना चाहिए न कि अपनी भाषाओं को हमारे बीच मतभेद उत्पन्न करने के लिए इस्तेमाल करना चाहिए।"

किरन मनराल ने कहा कि यह बहुभाषावाद, जो हमारे देश की पुरानी ताकतों में से एक हुआ करता था, अब देश के लिए एक बड़े खतरे की तरह उभर रहा है और इसका इस्तेमाल कर धर्म, बहुलता और अल्पसंख्यकों के नाम पर दरारें पैदा की जा रही हैं। भाषाओं के बीच के फर्क को मिटाने का सुझाव देते हुए वह कहती हैं, "मुझे लगता है कि हमारे देश में एक साथ कई भाषाओं का होना हमारी मिली-जुली संस्कृति और विरासत का खूबसूरत उदाहरण है। भाषाओं का फर्क मिटाने के लिए हमें अनुवाद को बढ़ावा देने की जरूरत है, ताकि हम विभिन्न भाषाओं के लेखन का लाभ उठा सकें। साथ ही हमें लिखित और मौखिक दोनों प्रारूपों में मातृभाषाओं के इस्तेमाल को भी बढ़ावा देने की जरूरत है।"

खुद एक अंग्रेजी लेखिका किरन मनराल हिंदी में लिखने की इच्छा पर कहती हैं, "मुझे उम्मीद है, मैं कभी ऐसा जरूर करूंगी, लेकिन उसके लिए मुझे पहले अपने हिंदी भाषा के कौशल को सुधारने की जरूरत है।" मनराल अपनी क्षमता से अक्सर गंभीर सामाजिक मुद्दों को उठाती रही हैं और इस नाते वह अपने साहित्यिक कार्यो में व्यस्त रहने के बावजूद अपनी इस सामाजिक जिम्मेदारी को बखूबी निभाती हैं। सोशल मीडिया पर कई वर्षो तक चले बाल यौन दुर्व्यवहार जागरुकता माह (सीएसएएएम) और महिलाओं के खिलाफ हिंसा जागरुकता माह (वीएडब्ल्यूएएम) अभियानों की मनराल संस्थापक सदस्यों में से एक हैं। मुंबई आतंकी हमले के बाद उन्होंने एक स्वयंसेवी नेटवर्क 'इंडिया हेल्प्स ' की स्थापना की थी, जिसने आतंकी हमले के साथ ही मुंबई विस्फोट के पीड़ितों की मदद के लिए काफी काम किया।

मनराल एक शानदार ब्लॉगर भी रही हैं, जिसमें उन्होंने बेहद सहज तरीके से मातृत्व से लेकर नारीवाद से जुड़े हर विषय पर लिखा है। उनके ब्लॉग्स को भी काफी पसंद किया गया।

आज हर पृष्ठभूमि के लोगों द्वारा किताबें लिखे जाने पर उन्होंने कहा, "इस बात को लेकर मेरे दोनों तरह के विचार हैं। मुझे लगता है कि हर किसी के पास कहने के लिए कोई न कोई कहानी होती है, लेकिन साथ में ही मैं मानती हूं कि हर कोई कहानी कहने की कला में पारंगत नहीं हो सकता। आमतौर पर लोग सिर्फ कहानी लिखते हैं। लेकिन फिक्शन लिखना इससे कहीं बढ़कर अहम बात है। उन्होंने कहा कि इसके लिए लेखन की बारीकियों को समझना, शैली, भाषा और सही शब्दों के चयन के प्रति लगाव और किरदारों को एक सही शक्ल में ढालने की जरूरत होती है। एक रोचक कहानी और एक अच्छी किताब के लिए इन सभी चीजों का सही तालमेल होना जरूरी है।

लेखन से पहले पत्रकार रह चुकीं किरन मनराल अपनी पसंद के बारे में कहती हैं, "ईमानदारी से कहूं तो, मुझे लगता है कि दोनों की ही अपनी चुनौतियां और मांग होती हैं, जो एक दूसरे से काफी अलग होती हैं। पत्रकारिता में कोई भी मामले की नब्ज को पकड़ना, शोध करना और तथ्यों को जितना हो सके संक्षेप में कहना सीखता है। और मुझे लगता है कि फिक्शन लिखते समय ये सभी चीजें बेहद काम आती हैं, क्योंकि इसमें भी लेखक महसूस करता है कि शोध का कितना महत्व है और उतना ही कहानी के प्रवाह का। एक पाठक के तौर पर हर चीज पर सवाल उठाना, तथ्यों पर भरोसा करना लेकिन साथ ही तर्क के बजाय अपने ज्ञान के भी इस्तेमाल से कहानी कहने का महत्व होता है।" मनराल ने कहा, "लेकिन फिक्शन में आप कहानी की रचना करते हैं, आप उसे जन्म देते हैं और वह हमेशा हमेशा के लिए आपके साथ रहती है।"

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