जम्मू-कश्मीर में मंदिरों के सरकारी आंकड़े पर कश्मीरी पंडितों ने उठाया सवाल, कहा- मंदिर में कोई दिया जलाने वाला भी हो

घाटी में रह रहे कश्मीरी पंडितों का प्रतिनिधित्व करने वाली संस्था ने यह सवाल उठाया है। इन पंडितों ने आतंकवाद के उभरने के बाद भी घाटी से पलायन नहीं किया। संस्था ने गृह राज्य मंत्री किशन रेड्डी के बेंगलुरू में सोमवार को संवाददाता सम्मेलन में दिए गए आंकड़ों पर सवाल उठाया है।

फोटो: IANS
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आईएएनएस

जम्मू-कश्मीर में कुल 5,000 से 7,000 मंदिर है, लेकिन सरकार 50,000 मंदिरों के आंकड़े दे रही है? इस आंकड़े पर कश्मीरी पंडित संघर्ष समिति ने सवाल उठाया है कि ऐसा कैसे हो सकता है।घाटी में रह रहे कश्मीरी पंडितों का प्रतिनिधित्व करने वाली संस्था ने यह सवाल उठाया है। इन पंडितों ने आतंकवाद के उभरने के बाद भी घाटी से पलायन नहीं किया। संस्था ने गृह राज्य मंत्री किशन रेड्डी के बेंगलुरू में सोमवार को संवाददाता सम्मेलन में दिए गए आंकड़ों पर सवाल उठाया है।

रेड्डी ने कहा था कि जम्मू-कश्मीर में सालों से करीब 50,000 मंदिर बंद हैं, जिसमें से कुछ को नष्ट कर दिया गया है और उनकी मूर्तियों को विकृत किया गया है। मंत्री ने कहा कि एक सर्वेक्षण का आदेश दिया गया है और जम्मू-कश्मीर में तोड़े गए मंदिरों को बहाल करने की जरूरत है।

कश्मीरी पंडित संघर्ष समिति के अध्यक्ष संजय टिक्कू ने कहा, “पूरे जम्मू-कश्मीर में छोटे-बड़े कुल मंदिरों की संख्या 5000 से 7000 से ज्यादा नहीं होगी। हमारे सर्वेक्षण के अनुसार, कश्मीर घाटी में कुल 1,842 मंदिर, श्मशान भूमि, पवित्र झरने, पवित्र पेड़ और गुफाएं होंगी।”


संजय टिक्कू के अनुसार, संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन के दूसरे कार्यकाल के दौरान BJP नेता राजीव प्रताप रूडी के कश्मीर में मंदिरों की संख्या के सवाल पर भारत सरकार ने कहा कि कश्मीर में कुल मंदिरों की संख्या 464 है, जिसमें 174 मंदिरों को या तो तहस-नहस कर दिया गया है या वे खराब स्थिति में हैं।

संजय टिक्कू ने कहा, “मंदिरों के जीर्णोद्धार या पुनर्निर्माण के बारे में बात करते हुए यह भी देखना महत्वपूर्ण है कि कोई मंदिर में सुबह शाम दिया जलाने वाला भी हो।”

टिक्कू ने कहा, “आप मीडिया में दिखाने के लिए सिर्फ एक मंदिर को नहीं खोल सकते और वही मंदिर एक या दो साल में बंद हो जाता है। मेरा मानना है कि यह सबसे बड़ा पाप है।”

संजय टिक्कू ने कहा कि अनुच्छेद 370 को रद्द करने का फैसला केंद्र सरकार द्वारा राज्य की मुख्यधारा की राजनीतिक पार्टियों से सलाह के बगैर जल्दबाजी में लिया गया। उन्होंने कहा कि कश्मीर में रहने वाले पंडित इस कदम का सबसे ज्यादा खामियाजा भुगत रहे हैं।


टिक्कू ने कहा, “सिर्फ भारत सरकार जानती है कि अनुच्छेद 370 को क्यों रद्द किया गया, लेकिन संचार पर रोक और प्रतिबंध हमेशा के लिए नहीं रहेंगे। हमारे संबंधी और दोस्त चिंतित हैं और हमें हमेशा के लिए अंधेरे में नहीं रखा जा सकता है।”

टिक्कू ने कहा, “हमारी स्थिति भी कश्मीर के बहुसंख्यक समुदाय की तरह है, लेकिन मुस्लिम कम से कम अपने दोस्तों से मिल सकते हैं, अगर उनके पास भोजन नहीं है तो वे मस्जिद में जा सकते है या मोहल्ला समितियों से संपर्क कर सकते हैं? हमारा क्या?”


उन्होंने कहा, “कश्मीरी पंडितों के 808 परिवारों में से 150 परिवारों ने कश्मीर से पलायन नहीं किया, वे निजी नौकरियों पर निर्भर है, उन्हें दो महीनों से वेतन नहीं मिला है और वे भुखमरी की तरफ बढ़ रहे हैं।”

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Published: 26 Sep 2019, 12:07 PM