जस्टिस अरुण मिश्रा ने खुद को जज लोया केस से अलग किया: क्या यह ‘उन’ 4 जजों के ‘विरोध’ की पहली जीत है?
जज बी एच लोया केस की सुनवाई के बाद आर्डर में जस्टिसअरुण मिश्रा और जस्टिस एम शांतनागौदर की बेंच ने लिखा कि केस किसी ‘उपयुक्त बेंच’ के सामने पेश किया जाए।
सुप्रीम कोर्ट के उन चार जजों ने लगता है अपने ‘विरोध’ का पहला दौर जीत लिया है, जिन्होंने प्रेस कांफ्रेंस कर संवेदनशील मामलों को अपने पसंद की बेंच में सुनवाई के लिए देने के लिए मुख्य न्यायाधीश के फैसलों का मुद्दा उठाया था।
सीबीआई के विशेष जज बी एच लोया की रहस्यमय मौत की जांच की मांग करने वाली दो याचिकाओं की मंगलवार 16 जनवरी को सुनवाई के बाद दिए ऑर्डर में जस्टिस अरुण मिश्रा और जस्टिस एम शांतनागौदर ने जो लिखा है उससे संकेत मिलते हैं कि जस्टिस अरुण मिश्रा ने इस केस से खुद को अलग कर लिया है। सुनवाई के बाद दिए ऑर्डर में लिखा है कि:
“सात दिन के अंदर दस्तावेज रिकॉर्ड में जमा कराए जाएं और अगर सही समझा गया तो इनकी प्रति याचिकाकर्ताओं को भी दी जाए। मामला उपयुक्त बेंच के समक्ष पेश किया जाए।”
जिन दो लोगों ने याचिका दायर की है, उनमें से एक सामाजिक कार्यकर्ता तहसीन पूनावाला हैं और दूसरे मुंबई के एक पत्रकार बंधुराज संभाजी लोन हैं। 16 जनवरी को सुनवाई के दौरान महाराष्ट्र सरकार के वकील हरीश साल्वे ने मौजूदा बेंच के सामने कुछ गोपनीय और संवेदनशील दस्तावेज पेश किए। बेंच ने अपनी टिप्पणी करते हुए दस्तावेजों को याचिकाकर्ताओँ को देने को कहा और सुनवाई एक सप्ताह के लिए स्थगित कर दी।
हालांकि मौजूदा बेंच ने 16 जनवरी को इस केस की सुनवाई करने से पहले कोई हिचकिचाहट नहीं दिखाई थी, इसलिए कहा जा सकता है कि ऑर्डर देते वक्त केस किसी ‘उपयुक्त बेंच’ के सामने पेश करने की टिप्पणी बाद में सोच कर की गई है। कानून के जानकारों का कहना है कि इस तरह की टिप्पणी आमतौर पर तभी की जाती है जब कोई बेंच किसी मामले से खुद को अलग करना चाहती है और यह इस बात की स्वीकृति होती है कि यह बेंच मामले की सुनवाई के लिए उपयुक्त बेंच नहीं है। ऐसी स्थिति में केस को चीफ जस्टिस के सामने रखा जाता है और वह उसे किसी अन्य बेंच को सौंपते हैं।
इस बीच खबरें आई थीं कि जब सोमवार को सुप्रीम कोर्ट में कामकाज शुरु होने से पहले परंपरा के मुताबिक जज जब चाय पर मिले थे तो जस्टिस अरुण मिश्रा अपने साथी जजों जस्टिस जे चेलामेश्वर, जस्टिस रंजन गोगोई, जस्टिस मदन बी लोकुर और जस्टिस कूरियन जोसेफ के सामने रुआंसे हो गए थे और उन्होंने कहा था कि खराब सेहत के बावजूद वह अपना काम ईमानदारी से कर रहे हैं और उनका नाम बिना वजह उछाया गया। सूत्रों का कहना है कि चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा और जस्टिस जे चेलामेश्वर दोनों ने ही उन्हें दिलासा दिया था।
सुप्रीम कोर्ट के कामकाज पर नजर रखने वाले विशेषज्ञों का मानना है कि शायद भावनाओँ में बहकर ही जस्टिस अरुण मिश्रा ने खुद को जज लोया के केस की सुनवाई से अलग करने का फैसला लिया है।
दरअसल जज बी एच लोया का केस इसलिए भी महत्वपूर्ण हो गया है क्योंकि सुप्रीम कोर्ट के 4 वरिष्ठ जजों ने शुक्रवार 12 जनवरी को प्रेस कांफ्रेंस कर कोर्ट की कार्यशैली पर सवाल उठाए थे और एक सवाल के जवाब में कहा था कि “हां” जज लोया का केस भी इसमें शामिल है। गौरतलब है कि जज बी एच लोया जब केस की सुनवाई कर रहे थे, उस केस में बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह भी आरोपी थे। जज लोया की रहस्यमय हालात में दिल का दौरा पड़ने से नागपुर में मौत हो गई थी।
अलबत्ता, 17 जनवरी से जिन महत्वपूर्ण याचिकाओँ पर सुनवाई के लिए जो पीठ गठित की गई हैं, उनमें कोई बदलाव नहीं किया गया है। जो नई बेंच गठित की गई है, उसमें ‘वे’ चारों जज शामिल नहीं हैं।
17 जनवरी से जिन अहम याचिकाओं पर सुनवाई शुरु होनी है, उनमें आधार की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिका, सबरीमाला मंदिर में महिलाओँ के प्रवेश, पारसी महिलाओं की धार्मिक पहचान और धारा 377 की समीक्षा के केस शामिल हैं।
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