जुनैद हत्याकांड: 3 साल बाद भी इंसाफ की आस में बैठी एक मां, हरियाणा सरकार ने भी नहीं पूरे किए अपने वादे

22 जून 2017 को ईद की खरीदारी करके घर लौट रहे हाफिज जुनैद की बेहद दर्दनाक तरीके से चाकुओं से गोद कर हत्या कर दी गई थी। अब इस घटना को तीन साल हो गए हैं। जुनैद 15 साल का था।

फोटो: आस मोहम्मद कैफ
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आस मोहम्मद कैफ

"उस दिन मेरे तीन बच्चें खून से लथपथ पड़े थे। मेरे दिल की तो अल्लाह ही जान सके हैं ! दहशत में मेरे शौहर को हार्ट अटैक हो गया। ईद अब हमारी जिंदगी में कभी नही आएगी। बच्चों को घर से बाहर काम करने भेजते हुए डर लगता है। सब का काम छिन चुका है। जुनैद के अब्बा अब टैक्सी नही चलाते। शाक़िर तो बस अल्लाह ने बचा ही लिया। जिन लोगों ने जुनैद को मारा था वो बहुत ताक़तवर हैं। उनके साथ सब है। सिस्टम है। उनके ख़िलाफ़ कोई गवाही नहीं देना चाहते। महीनों से हमारे घर में एक टाइम सब्जी बनती है, वो जो कल ख़ैर-ख़्वाह बने थे अब एक फ़ोन भी नही करते,अब तीन साल हो गए हैं, मुझे हर दिन मेरा जुनैद याद आता है। उसका चेहरा मेरी आँखों के सामने रहता है"। यह सायरा का दर्द है। जुनैद की अम्मी। वो ही जुनैद जिसे तीन साल पहले ईद की खरीदारी करके से लौटते समय चाकुओं से गोद कर मार दिया गया था

22 जून 2017 को ईद की खरीदारी करके घर लौट रहे हाफिज जुनैद की बेहद दर्दनाक तरीके से चाकुओं से गोद कर हत्या कर दी गई थी। अब इस घटना को तीन साल हो गए हैं। जुनैद 15 साल का था। जुनैद मेवात में खुंदवाली गांव का रहना वाला था। 13 साल की उम्र उसकी दस्तारदबंदी हो गई थी। उसने अपना हिफ़्ज़ पूरा कर लिया था। दिल्ली से शामली जा रही पैसेंजर ट्रेन में बल्लभगढ़ स्टेशन पर जुनैद को मारकर फेंक दिया था। इस दौरान जुनैद के एक और भाई शाक़िर की गंभीर हालत हो गई थी। शाक़िर का एक हाथ अब तक काम नहीं करता है। सीट पर बैठने को लेकर हुए इस झगड़े में धार्मिक पहचान के चलते हमला करने की बात सामने आई थी। भीड़ के इस हमले की शर्मनाक घटना के 3 साल बाद अब आरोपियों को सज़ा मिलने की उम्मीद बहुत कम दिखाई देती है। अदालत से उन्हें एक महीने से भी कम वक़्त में ज़मानत मिल गई। ऐसा तमाम गवाहों के मुकरने के कारण हो रहा है। बताते हैं कि जुनैद के परिवार पर फैसले का दबाव भी बनाया गया मगर इस परिवार ने कोई समझौता नहीं किया। जुनैद की मां सायरा मेवाती तमाम आर्थिक परेशानियों के बाद भी जूझते हुए अपने बच्चें को इंसाफ दिलाने के लिए लड़ रही हैं।


तीन साल बाद उस दर्द को साझा करते हुए जुनैद की अम्मी सायरा बताती हैं "हम गरीब आदमी हैं, हम पर खर्चा भी नहीं है,आजकल तो पैसे वालों का काम होंवे हैं। इनके बालकन के अब्बा टैक्सी चलावें थे,अब ना चलावें है पक्का हाफ़िज़ था मेरा बेटा। दस्तारदबंदी हो चुकी थी। मेरे बच्चे के क़त्ल के केस में वाको (उन्हें) 28 दिन में ज़मानत मिल गई। स्टेशन पर सैंकड़ो लोग थे।सब नाट (मुकर) गए। किसी ने कुछ नहीं देखा ! पुलिस कहती है उन्हें पक्के गवाह ना मिले। सरकार ने 10 लाख देने की कही थी। एक रुपया नहीं दिया। पैसा होता तो जुनैद के लिए पैरोकारी में इंसाफ को दूर तक लड़ते। लड़ तो अब भी रहे हैं मगर कमज़ोर है। ख़ट्टर जी (हरियाणा सीएम) से मिलने पर अपने दूसरे बच्चें के लिए नौकरी मांगी। भीख नहीं मांग रहे थे। उन्होंने कहा है नहीं नौकरी, दिल्ली सरकार ने भी ना दी।"

शाक़िर एसआरएस में गाड़ी चलाने का काम करता था। अब वो नहीं चलाता है। हाशिम का हाथ कट चुका है। जुनैद के अब्बू जैनुलआबेदीन अब टैक्सी नहीं चलाते हैं। वो अब दिल के मरीज़ हैं और उनके स्टन पड़ चुके हैं। जुनैद का परिवार अब भीषण आर्थिक संकट जूझ रहा है। जुनैद की मौत के बाद इमाम संगठन के अध्यक्ष उमेर इलियासी ने परिवार की मदद करवाने का भरोसा दिया था। मगर किया कुछ नही। सायरा को अफ़सोस है कि मेवात के तीनों बड़े नेता आफ़ताब,जाहिदा और वाज़िद अली ने भी इस मुश्किल में उनकी सुध नही ली। तमाम दूसरे वादे भी बस वादे निकले।


सायरा कहती हैं "जुनैद की मौत के एक डेढ़ महीने बाद तक लोग आते रहे। तीन महीने तक तो मैं सदमे में घर से बाहर ही नहीं निकली। उसके बाद ईदी लेकर इमरान प्रतापगढ़ी आए। उनने बड़ी आवाज़ लगाई। उस बेचारे की सुनी ना किसी न। अब तीन साल हो गए हैं। उसके बाद तो कौम के खैर-ख़्वाह बनने वाले नेताओं का फ़ोन भी नही आया। हरियाणा सरकार ने भी कोई वादा नहीं निभाया। अब जो कमाते हैं उसी से चंडीगढ़ और फरीदाबाद के चक्कर काट रहे हैं। मेरा बच्चा कौम के नाम पर मारा गया था और कौम ने हमें अकेला छोड़ दिया, हम तो नूं भी कहते हो सके बड़े बड़े आदमी के बड़े बड़े काम होंवे! फुरसत नही मिली"

फोटो: आस मोहम्मद कैफ
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जुनैद की अम्मी सायरा कहती हैं "अब हम किसी को कुछ नहीं कहेंगे, कब्र का हाल तो मुर्दा ही जान सके है। अब हमारा दर्द अल्लाह के सिवा कौन जाने हैं ! जो दो पैसे का काम करें थे वो भी बंद हो गया । बेटा का बेटा गया और एक महीने में जमानत में हो गई और मेरे शौहर को सदमा हो गया, हार्ट अटैक पड़ गो! छोटा मोटा दर्द नहीं है, उनपे पावर है, रुपया है, इसलिए उनकी जमानत हो गई। सुनवाई ना है, सीएम साहब से चार मर्तबा मिली। हरियाणा की सरकार ने एक पैसे नहीं दिया। अख़बार में छपवा दिया। 10 लाख देंगे। मेरे 8 बच्चें है। अब 7 बचे हैं। हमारा उनसे कोई लड़ाई नहीं थी।मेरे बच्चें की बस मज़हब की पहचान थी।"

22 जून 2017 को घटी दर्दनाक घटना के समय जुनैद की उम्र महज 15 साल थी। हमलावर भीड़ में कई आपराधिक प्रवर्ति के लोग थे। उनके आपराधिक इतिहास पाए गए। दिल्ली से बल्लभगढ़ तक पैसेंजर ट्रेन में कथित तौर पर सीट को लेकर इस झगड़े में जुनैद के भाई शाक़िर को भी पांच चाकू लगे थे। जुनैद के एक और भाई हाशिम का भी हाथ कट गया था। जुनैद ने मौके पर ही दम तोड़ दिया था और शाक़िर को अस्पताल में भर्ती करवाया गया था। इस सबके बीच हाशिम ने जो कुछ बताया वो रोंगटे खड़ा करने वाला था। हाशिम ने बताया था कि उन पर हमले के दौरान उन्हें किसी ने नही बचाया और लोग खड़े देखते रहे, हद यह है कि उन्हें बुरा भी नहीं लग रहा था।

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