मोदी सरकार में हर साल घट रहा है रोजगार, सवर्णों को 10 फीसदी आरक्षण के बाद नौकरियां कहां से लाएगी सरकार
मोदी सरकार जब से केंद्र की सत्ता में आयी है, तब से हर साल सरकारी नौकरियां लगातार घटती जा रही हैं। ऐसे में सवाल उठता है कि हाल ही में आर्थिक रूप से पिछड़ों को 10 फीसदी आरक्षण देने वाली मोदी सरकार नौकरी कहां से देगी।
केंद्र की मोदी सरकार ने हाल ही में संविधान संशोधन कर आर्थिक रूप से पिछड़े वर्ग के लोगों के लिए सरकारी नौकरियों में 10 फीसदी आरक्षण के प्रावधान को लागू कर दिया। लेकिन देश के युवाओं के सामने आज के समय सबसे बड़ा सवाल ये है कि आखिर ये नौकरियां हैं कहां? क्योंकि पीएम मोदी के देश की बागडोर संभालने के बाद से सरकारी नौकरियों में बढ़ोतरी की जगह लगातार कमी आती जा रही है। आंकड़ें इस बात के गवाह हैं कि साल 2014 के बाद से हर साल सरकार की नौकरियों की संख्या में कमी आई है।
आंकड़ों के हिसाब से देश में सबसे ज्यादा नौकरियां केंद्र सरकार पैदा करती थी, लेकिन 2014 के बाद से इसमें 75,000 की कमी आई है। साल 2018-2019 के बजट में पेश आंकड़ों के अनुसार 1 मार्च, 2014 की तुलना में केंद्र सरकार के कर्मचारियों की संख्या में 75,231 की कमी आई है। साल 2018-19 के बजट में केंद्रीय कर्मचारियों की वास्तविक संख्या 32.52 लाख बताई गई थी। जबकि इससे पहले 1 मार्च, 2014 को यह संख्या 33.3 लाख थी। इसमें केवल रक्षा सेवा छोड़कर भारतीय रेल समेत 55 मंत्रालय और विभाग शामिल हैं। केंद्र सरकार हर साल बजट में अपने कर्मचारियों की संख्या की घोषणा करती है और बताती है कि पिछले साल यह संख्या कितनी थी और आने वाले साल में कितनी रहेगी।
खास बात ये है कि पिछले चार साल से मोदी सरकार हर साल 2 लाख अतिरिक्त कर्मचारियों को जोड़ने की बात कर रही है। लेकिन केंद्रीय कर्मचारियों की असल संख्या लगातार घटती जा रही है। साल 2018-19 के बजट में कर्मचारियों की अनुमानित संख्या 35 लाख से ऊपर बताया गया था, यानी 2.50 लाख नौकरियों का सृजन किया जाना था, जो नहीं हुआ। सरकारी नौकरियों में आई कमी की एक बड़ी वजह ये भी है कि बीते कई सालों में सेवानिवृत्त हुए लोगों की जगह पर नए कर्मचारियों की भर्ती नहीं हुई है।
सरकार के आंकड़ों के अनुसार कर्मचारियों के मामले में भारतीय रेलवे की हालत बहुत खराब है। उसके कर्मचारियों की संख्या 2018 में घटकर 2010 के स्तर पर पहुंच गयी। 2017 में रेलवे में 23,000 कर्मचारियों की छंटाई की गई थी। साल 2016 में जहां भारतीय रेल में 13.31 लाख कर्मचारी थे, वहीं यह आंकड़ा अब घटकर 13.08 लाख पर पहुंच गया है।
ऐसे में सबसे बड़ा सवाल यह उठता है कि आखिर आर्थिक रूप से पिछड़ें वर्गों यानी सवर्णों को आरक्षण देने के बाद उन्हें देने के लिए नौकरियां कहां से आएंगी? देश में पहले से ही नौकरियां कम हैं और अब इस आरक्षण की वजह से संकट और गहराता जाएगा।
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