जल्ला के जुनून और पीरजादा की काबिलियत ने किया कठुवा की मासूम के साथ बर्बरता का खुलासा

शुरू में न तो रमेश कुमार जल्ला और न ही उनके डिप्टी नवीद को अंदाजा था कि उनके ही विभाग के जूनियर लोग इस अपराध में शामिल होंगे। जानकारी के मुताबिक आरोपियों ने योजना तो फूल प्रूफ बनाई थी।

फोटो: सोशल मीडिया
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आशुतोष शर्मा

कठुआ रेप केस में दिल दहलाने देने वाली जानकारियां सामने आने के बाद पूरा देश गुस्से में है। इस जघन्य अपराध की बलि चढ़ी मासूम बच्ची का चेहरा बरसों तक लोगों के जहन को कचोटता रहेगा। इस अमानवीय और क्रूरता की सीमाएं लांघने वाले अपराध का खुलासा करने वाले दो शख्स हैं, जिन्हें इस मामले की जांच के दौरान बेशुमार दुश्वारियों,धमकियों और सांप्रदायिक नफरत का शिकार होना पड़ा।

सबसे पहले नाम आता है जम्मू में क्राईम ब्रांच के एसएसपी रमेश कुमार जल्ला का। रमेश कुमार जल्ला कश्मीरी पंडित हैं और उनका परिवार उस दुर्भाग्यपूर्ण दौर का शिकार रहा है जब कश्मीरी पंडितों को अपने घरबार छोड़ने पड़े थे। लेकिन अपने काम में और इस मासूम बच्ची को इंसाफ दिलाने की उनकी कोशिशों में कोई कोताही नहीं रही। उन्होंने तब तक हार नहीं मानी जब तक परिस्थितिजन्य साक्ष्यों के साथ उन्होंने आरोपियों पर शिकंजा नहीं कस दिया।

एसएसपी जल्ला की टीम ने जो निष्कर्ष निकाला उसके मुताबिक पीड़ित बच्ची को कठुआ जिले में एक मंदिर में अगवा करके रखा गया था, उसके साथ लगातार बलात्कार किया गया, उसे यातनाएं दी गईं और आखिरकार उसकी हत्या कर दी गई। रमेश कुमार जल्ला ने इस पूरे मामले की जांच रिकॉर्ड समय में पूरी की और हाईकोर्ट द्वारा निर्धारित 90 दिन की समयसीमा पूरी होने से 10 दिन पहले ही 9 अप्रैल को चार्जशीट दाखिल कर दी। उन्हें इस दौरान विभिन्न गुटों के विरोध का सामना करना पड़ा। इन गुटों में जम्मू के वकीलों की ताकतवर लॉबी भी थी। उन्हें धमकियां भी मिलीं। जल्ला को वीरता के लिए राष्ट्रपति पदक मिल चुका है और एक बार आतंकवादियों से मुठभेड़ में वे जख्मी भी हो चुके हैं।

चार्जशीट में चार पुलिस वालों और एक रिटायर्ड सरकारी अफसर को आरोपी बनाया गया है। आरोप पत्र के मुताबिक यही रिटायर्ड सरकारी अफसर ही इस जघन्य अपराध का मास्टरमाइंड था। चार्जशीट में कहा गया है कि इस अपराध के पीछे मंशा जम्मू-कश्मीर के खानाबदोश समुदाय बकरवाल को हिंदू बहुल इलाकों से भगाना था और उन्हें भयभीत करना था। पुलिस के अनुसार, पीड़िता को उसके घर के पास से अगवा कर करीब के एक मंदिर में रखा गया, उसे नशा देकर बेहोशी की अवस्था में रखा गया। मंदिर में मास्टरमाइंड सांजी राम ने उस पर कोई तंत्र क्रिया भी की और उसके बाद उससे लगातार बलात्कार का गया। चार्जशीट में कहा गया है कि इन लोगों ने अपने एक परिचित को उत्तर प्रदेश से बुलाकर भी इस बच्ची का बलात्कार कराया।

रमेश कुमार जल्ला की अगुवाई में एक विशेष जांच दल यानी एसआईटी इस मामले की जांच में जुटा था। जल्ला ने इस एसआईटी के नेतृत्व की जिम्मेदारी एक शानदार ट्रैक रिकॉर्ड वाले एक युवा पुलिस अफसर नवीद पीरजादा को दी थी। नवीद पीरजादा, मुश्किल से मुश्किल केस हल करने में माहिर माने जाते हैं।

शुरू में न तो रमेश कुमार जल्ला और न ही उनके डिप्टी नवीद को अंदाजा था कि उनके ही विभाग के जूनियर लोग इस अपराध में शामिल होंगे। जानकारी के मुताबिक आरोपियों ने योजना तो फूल प्रूफ बनाई थी। आरोपी वैसे तो पुलिस की पकड़ में आ गए थे, लेकिन उन्होंने न तो अपनी जुबान खोली थी और न ही स्थानीय पुलिस की भूमिका के बारे में कुछ कहा था। बल्कि उन्होंने तो यह कहकर जांच भटकाने की कोशिश की थी कि एक स्थानीय लड़के ने महज बचपने में यह अपराध अंजाम दे दिया।

रमेश जल्ला और नवीद पीरजादा की टीम ने बच्ची के शव की तस्वीरों की गहराई से जांच की और पाया कि शव पर कीचड़ लगी हुई है। लेकिन जो कीचड़ शव पर लगी थी, वह उस जगह की मिट्टी से बिल्कुल अलग थी जहां बच्ची का शव बरामद हुआ था। इससे यह तय हुआ कि उसकी हत्या कहीं और की गई। लेकिन कहां, यह एक कठिन प्रश्न था। एसआईटी ने रिकॉर्ड्स में से शव की और तस्वीरें हासिल कीं। लेकिन यह देखकर एसआईटी चौंक गई कि उन तस्वीरों में शव पर कीचड़ थी ही नहीं। इससे टीम को शक हुआ कि हो न हो, पुलिस विभाग में कोई है जो इस मामले में सबूतों से छेड़छाड़ कर रहा है। अंतत: यह सामने आया कि सबूत छिपाने के लिए बच्ची के कपड़े धो दिए गए थे।

पुलिस ने इस केस के मास्टरमाइंड रिटायर्ड सरकारी अफसर सांजी राम को आठ लोगों के साथ गिरफ्तार किया। इनमें उसका बेटा विशाल जंगोतरा और एक अव्यस्क भतीजा भी शामिल है। शुरु में इसी भतीजे को हाथों हुआ अपराध बताया गया था। लेकिन इस केस में कुदरत और दैवीय शक्तियां भी पीड़िता के साथ थीं। पहली बार मंदिर जाने पर टीम को कुछ हाथ नहीं लगा जिससे साबित होता कि बच्ची को वहां रखा गया था। लेकिन फिर एक कमरा दिखा जिस पर ताला लगा था। इसकी चाबियां सांजी राम के पास थीं। इस कमरे से बालों का गुच्छा मिला। इन बालों को डीएनए जांच के लिए भेजा गया। इसमें से एक बाल का पीड़िता के डीएनए से मिलान हो गया।

इस दौरान आरोपियों के समर्थन में लोग सड़कों पर आने लगे थे। जल्ला और उनकी टीम पर दबाव बढ़ रहा था। उन्हें जांच पूरी करने में भी दिक्कतें आने लगी थीं। कोशिश यही थी कि एसआईटी समयसीमा के अंदर जार्जशीट दाखिल न कर सके।

मूलत: श्रीनगर के रहने वाले जल्ला ने 1984 में पुलिस की नौकरी एक इंस्पेक्टर के तौर पर शुरु की थी। और अपनी लगन और मेहनत के दम पर एसएसपी, क्राइम ब्रांच के पद पर पहुंचे हैं। उन्होंने इस केस को हल करने और मजबूत चार्जशीट तैयार करने में दिनरात एक कर दिया।

इस मामले में आखिरकार एक स्पेशल पुलिस ऑफिसर दीपक खजूरिया और सुरिंदर कुमार, सहायक सब इंस्पेक्टक आनंद दत्ता, हेड कांस्टेबिल तिलकराद और परवेश कुमार के अलावा एक स्थानीय बाशिंदे को भी गिरफ्तार किया गया। इन लोगों पर सबूत मिटाने और बच्ची के कपड़े धोने का आरोप है। चार्जशीट के मुताबिक इन लोगों ने स्थानीय पुलिस को डेढ़ लाख रुपए देकर अपराध छिपाने में मदद की।

हत्या और बलात्कार की घटना से लोगों में जबरदस्त गुस्सा भर उठा था। इसके बाद ही सरकार ने जांच का जिम्मा क्राइम ब्रांच को सौंपा था। लेकिन हिंदू एकता मंच नाम के दक्षिणपंथी संगठन ने इस मामले की जांच में अवरोध पैदा किए। आरोपियों के समर्थन में मार्च निकाला और यहां तक कि जब पुलिस टीम चार्जशीट दाखिल करने अदालत पहुंची तो उसे ऐसा करने से रोकने की कोशिश की गई।

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Published: 13 Apr 2018, 2:30 PM