...तो प्रधानमंत्री मोदी करते 9 नवंबर को रायबरेली के ऊंचाहार पॉवर प्लांट का उद्घाटन !
रायबरेली के ऊंचाहार पॉवर प्लांट में विस्फोट से कुछ सवाल पैदा होते हैं, जिनके जवाब अभी तक सामने नहीं आए हैं। इन सवालों में कुछ तो ऊंचाहार प्लांट में काम करने वाले इंजीनियरों ने ही उठाए हैं।<b></b>
- रायबरेली के ऊंचाहार पॉवर प्लांट में हुए विस्फोट का कारण क्या पीएमओ का दबाव था?
- क्या इसी दबाव में सुरक्षा मानकों की परवाह किए बिना ही 500 मेगावाट के इस प्लांट को समय से पहले ही चला दिया गया?
- क्या इस प्लांट के महाप्रबंधक ने प्रोमोशन के लिए ले ली लोगों की जान?
- क्या एनटीपीसी चेयरमैन ने दिए थे इस प्लांट को समय से पहले चालू करने के निर्देश?
- क्या एनटीपीसी चेयरमैन का है कोई गुजरात और मोदी कनेक्शन?
यह वो सवाल हैं जो ऊंचाहार दुर्घटना के बाद मुंह बाय सामने खड़े हैं। लेकिन किसी भी सवाल का जवाब देने को न तो एनटीपीसी, न भारत हैवी इलेक्ट्रिकल्स लिमिटेड और न ही कोई अन्य अधिकारी देने को तैयार है। लेकिन ऊंचाहार परियोजना में काम करने वाले कई इंजीनियर, कर्मचारी और दूसरे लोग यह सारी बातें कर रहे हैं।
सबसे पहले ताजा अपडेट यह है कि एनटीपीसी हादसे में मरने वाले लोगों की संख्या 35 पहुँच गई है। शनिवार रात भी 2 मरीजों की इलाज के दौरान मौत हो गई। इसके अलावा 21 मरीजों को एयर एंबुलेंस से अब तक दिल्ली भेजा जा चुका है। 18 मरीज अभी भी लखनऊ में जिंदगी की जंग लड़ रहे है
इस बीच एनटीपीसी ने ऊंचाहार प्लांट के महाप्रबंधक (मेंटेनेंस) मलय मुखर्जी को निलंबित कर दिया है। कहा जा रहा है कि इन्हीं महाप्रबंधक प्रोमोशन की महत्वाकांक्षा में दो दिन से दिक्कतें आने के बावजूद प्लांट को चालू रखा और रिकॉर्ड समय में प्लांट से बिजली पैदा कर वाहवाही लूटने की कोशिश की।
दुर्घटना के दिन ही नाम न छापने की शर्त पर एक इंजीनियर ने यह बात उठाई थी। ऑल इंडिया पॉवर इंजीनियर फेडरेशन के चेयरमैन शैलेंद्र दुबे का कहना है कि, “किसी भी नए ताप विद्युत यूनिट को चालू होने और उससे उत्पादन शुरु होने में साढ़े तीन से चार साल तक का वक्त लगता है। इस दौरान प्लांट को सिर्फ चलाकर देखा जाता है और उससे विद्युत उत्पादन शुरु नहीं किया जाता। साथ ही सभी सुरक्षा मानकों की कई बार जांच होती है।”
शैलेंद्र दुबे का कहना है कि, “अगर एनटीपीसी के अधिकारी यह मान रहे हैं कि प्लांट के बॉयलर सेक्शन में 150 से 200 लोग काम कर रहे थे, ये इस बात की स्वीकारोक्ति है कि प्लांट का काम पूरा नहीं हुआ था।” दुबे का कहना है कि किसी भी चलते हुए प्लांट के बॉयलर सेक्शन में 5-6 लोगों से ज्यादा कभी भी एक साथ काम नहीं करते हैं। उन्होंने पूछा कि, “आखिर 150-200 लोग बॉयलर सेक्शन में क्यों काम कर रहे थे?” शैलेंद्र दुबे ने फेडरेशन की तरफ से इस हादसे की उच्च स्तरीय स्वतंत्र और निष्पक्ष जांच की मांग की है।
इस दौरान एनटीपीसी ऊंचाहार में काम करने वाले सूत्रों का कहना है कि इस प्लांट को समय से पहले पूरा करने का दबाव दरअसल एनटीपीसी के चेयरमैन और मैनेजिंग डायरेक्टर गुरदीप सिंह ने बनाया था। दरअसल गुरदीप सिंह इस प्लांट को तय समय सीमा से पहले पूरा कर इसका उद्घाटन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के हाथों करवाना चाहते थे।
क्या पीएम करने वाले थे इस प्लांट का उद्घाटन?
इसी कवायद में प्लांट के महाप्रबंधक मलय मुखर्जी को निर्देश दिए गए थे कि इसे हर हालत में तैयार किया जाए ताकि 9 नवंबर 2017 को पीएम इसका उद्घाटन कर पाएं। सूत्रों का कहना है कि 9 नवंबर 2017 को भी अगर इसका उद्घाटन होना था तो भी सुरक्षा मानकों यानी सेफ्टी प्रोटोकॉल के मददेनजर इसका ट्रायल रन 31 अक्टूबर से पहले ही बंद कर दिया जाना चाहिए, फिर भी पहली नवंबर 2017 को यह प्लांट चलाया गया और हादसा हो गया।
सूत्रों के मुताबिक चूंकि प्लांट में लगातार दिक्कतें आ रही थीं, इसीलिए बॉयलर सेक्शन में 150-200 लोगों को लगाया गया था जो मैन्युअली कोयले की राख को हटाने में लगे थे। ऐसे में आशंका यह भी है कि प्लांट पूरी तरह से तैयार नहीं हुआ था, और किसी भी दिन ऐसी दुर्घटना का शिकार हो सकता था। कुछ इंजीनियरों इस बात को लेकर हतप्रभ है कि क्या होता अगर जिस दिन प्रधानमंत्री उद्घाटन करने आते, और उस दिन ये दुर्घटना हो जाती!
इस बात को लेकर भी चर्चा है कि अगर 9 नवंबर को प्रधानमंत्री को ऊंचाहार आना था, तो कोई सुरक्षा ड्रिल क्यों नहीं की गई। यह सामान्य प्रक्रिया है कि प्रधानमंत्री के किसी भी दौरे से हफ्तों पहले आयोजन स्थल की सुरक्षा जांच होती है और हर किस्म की संभावनाओँ और आशंकाओं को ध्यान में रखते हुए जरूरी कदम उठाए जाते हैं।
सूत्र यहां तक बताते हैं कि एनटीपीसी ने उस प्लांट के उद्घाटन के लिए पहले 7 नवंबर 2017 का दिन तय किया था, लेकिन पीएमओ ने इसे 9 नवंबर कर दिया था, क्योंकि इससे पहले प्रधानमंत्री व्यस्त थे। एनटीपीसी सूत्रों का कहना कि उन्हें बताया गया था कि इस प्लांट का उद्घाटन 9 नवंबर को होगा और उसके बाद ही इससे कमर्शियल प्रोडक्शन शुरु होगा, लेकिन अति उत्साह में जीएम ने पहले ही इससे कमर्शियल प्रोडक्शन शुरु करा दिया।
सूत्र बताते हैं कि बॉयलर में आ रही दिक्कतों के बारे में प्लांट अधिकारियों को बताया गया था लेकिन उस पर ध्यान नहीं दिया गया। इतना ही नहीं उत्तर प्रदेश सरकार के एक निरीक्षक ने बिना प्लांट का दौरा किए ही इसका कंप्लीशन सर्टिफिकेट जारी कर दिया था।
आखिर इतनी जल्दबाजी क्यों दिखा रहा था एनटीपीसी?
दरअसल, एनटीपीसी चेयरमैन गुरदीप सिंह को प्रधानंत्री नरेंद्र मोदी का करीबी माना जाता है। एनटीपीसी चेयरमैन बनने से पहले तक वे गुजरात बिजली बोर्ड के मुखिया थे, जहां उनकी नियुक्ति नरेंद्र मोदी के मुख्यमंत्रित्व काल में हुई थी। और जब नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री बने तो नियुक्ति प्रक्रियाओं का पालन किए बिना ही पीएमओ के निर्देश पर गुरदीप सिंह को एनटीपीसी का चेयरमैन बनाया गया। इस नियुक्ति में पब्लिक एंटरप्राइज़ सिलेक्शन बोर्ड को बाईपास करते हुए एक विशेष कमेटी बनाई गई थी जिसने गुरदीप सिंह एनटीपीसी चेयरमैन के पद के लिए सिलेक्ट किया।
फिलहाल इस हादसे की जांच जारी है और देखना है कि क्या कारण सामने आता है और इसके लिए किसे जिम्मेदार ठहराया जाता है।
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