NRC पर बीजेपी का दोहरापन, शाह देश भर में लागू करने पर आमादा, तो असम में लिस्ट रद्द कराना चाहती है राज्य सरकार
असम की बीजेपी सरकार ने केंद्र सरकार से वर्तमान एनआरसी को रद्द करने की मांग की है। असम के वित्त मंत्री हेमंत विस्वा सरमा ने कहा कि राज्य सरकार ने एनआरसी लिस्ट को स्वीकार नहीं किया है। सरमा ने आरोप लगाया कि एनआरसी पर राज्य सरकार को अलग रखकर काम हुआ है।
नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटिजन्स (एनआरसी) को लेकर बीजेपी का दोहरापन खुलकर सामने आ गया है। बुधवार को जहां बीजेपी के अध्यक्ष और देश के गृह मंत्री अमित शाह ने संसद में दहाड़ते हुए कहा कि एनआरसी को देशभर में लागू किया जाएगा, वहीं शाम होते-होते बीजेपी की असम सरकार ने अपनी पार्टी की केंद्र सरकार से राज्य में हाल में जारी एनआरसी लिस्ट को रद्द करने का आग्रह किया है। असम के वित्त मंत्री हेमंत बिस्वा सरमा ने कहा कि असम सरकार ने एनआरसी को स्वीकार नहीं किया है। असम सरकार और बीजेपी ने गृह मंत्री अमित शाह से वर्तमान स्वरूप में एनआरसी को अस्वीकार करने का अनुरोध किया है।
हालांकि सरमा ने कहा कि असम की बीजेपी सरकार ने पूरे देश के लिए एक राष्ट्रीय एनआरसी का समर्थ किया है। लेकिन उन्होंने कहा कि अगर राष्ट्रीय एनआरसी के लिए अहर्ता वर्ष 1971 है तो ये सभी राज्यों के लिए एक होना चाहिए। असम में एनआरसी के पूर्व राज्य समन्वयक प्रतीक हजेला पर हमला करते हुए सरमा ने आरोप लगाया कि असम सरकार को अलग रखकर एनआरसी की प्रक्रिया पूरी की गई, जिसका खामियाजा हम भुगत रहे हैं। सरमा ने कहा कि अब एक जनप्रतिनिधि के तौर पर हमें लोगों के जवाब देने में मुश्किल हो रही है।
खास बात ये है कि आज ही के दिन केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने एक तरह से दहाड़ते हुए संसद को बताया कि देशभर में एनआरसी लागू किया जाएगा। राज्यसभा में शाह ने एक बार फिर जोर देते हुए कहा कि एनआरसी सिटिजनशिप बिल से अलग है और इसके तहत सभी हिन्दू, बौद्ध, सिख, जैन, पारसी और ईसाई शरणार्थियों को भारतीय नागरिकता दी जाएगी जो पाकिस्तान, अफगानिस्तान या बांग्लादेश से भागकर यहां आए हैं।
संसद और बाहर एनआरसी को लेकर आक्रामक रुख अपनाए हुए अमित शाह ने असम का जिक्र करते हुए कहा कि राज्य में एनआरसी लिस्ट से बाहर रह गए लोगों को ट्रिब्यूनल में जाने का अधिकार है और ऐसे ट्रिब्यूनल पूरे राज्य में गठित किए जाएंगे। शाह ने ये भी कहा कि अगर किसी शख्स के पास ट्रिब्यूनल में अपील करने का भी पैसा नहीं है, तो असम सरकार को उसके लिए वकील रखने का खर्च उठाना होगा।
असम में एनआरसी को लेकर अब तक आक्रामक रही बीजेपी की राज्य सरकार और खुद हेमंत बिस्वा सरमा का नया रुख बीजेपी के दोहरेपन की तरफ इशारा करता है। दरअसल अब तक एनआरसी के जरिये अल्पसंख्यकों को निशाना बनाने का ख्वाब पालने वाली बीजेपी के मंसूबों पर उस समय पानी फिर गया था जब सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में तैयार एनआरसी के फाइनल लिस्ट का प्रकाशन हुआ। इस लिस्ट में बीजेपी की उम्मीद के विपरीत ज्यादातर हिंदुओं के नाम नहीं शामिल हुए थे। तकरीबन 19 लाख लोग इस लोस्ट से बाहर रह गए, जिनमें तकरीबन 13 लाख हिंदू धर्म के लोग हैं। इसी को लेकर बीजेपी असमंजस में आ गई है। अब तक एनआरसी पर आक्रामक रही बीजेपी ताजा लिस्ट से बगलें झांकने पर मजबूर हो गई और वह बार-बार बहाने से इसे रद्द् कराने का मौका तलाश रही है। लेकिन यहीं बीजेपी का दोहरापन सामने आ जाता है। एक तरफ पार्टी के अध्यक्ष दहाड़ मारकर पूरे देश में एनआरसी लाने की बात करते हैं, वहीं दूसरी तरफ उनकी पार्टी की सरकार और नेता उसे रद्द करने की मांग करते हैं।
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