आखिर कितना झूठ बोलेंगे मोदी और शाह, गृह मंत्रालय ही कहता है- NRC का पहला कदम है NPR

रोचक यह है कि जनसंख्या रजिस्टर का उल्लेख न तो ‘सिटीजनशिप एक्ट-1955’ में था और न ही 2003 के संशोधन में। साल 2003 में तत्कालीन एनडीए सरकार में सिटीजनशि‍प एक्ट 1955 में रूल्स के जरिये भारतीय नागरिकों के राष्ट्रीय रजिस्टर (एनआरआईसी) को इसमें शामिल किया गया।

फोटोः सोशल मीडिया
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नवजीवन डेस्क

देश में नागरिकता संशोधन कानून और एनआरसी को लेकर जारी संशय और डर के बीच मोदी सरकार ने मंगलवार को कैबिनेट बैठक में राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर (एनपीआर) अपडेशन को मंजूरी देते हुए इसके लिए 3941 करोड़ रुपये के बजट की भी मंजूरी दे दी। अब पूरे देश में 2021 की जनगणना के साथ एनपीआर अपडेशन का काम भी होगा। लेकिन नागरिकता संशोधन कानून और एनआरसी के विरोध में उतरे लोग एनपीआर को लेकर भी सवाल उठा रहे हैं। लोग इसे एनआरसी के लिए उठाया गया पहला कदम बता रहे हैं। आपत्ति करने वालों का कहना है कि एनपीआर के जरिये मोदी सरकार देश में एनआरसी लागू कर रही है। बस फर्क इतना है कि इसे एनआरसी न कह कर एनआरआईसी कहा जाएगा।

हालांकि केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने मंगलवार को पसंदीदा न्यूज एजेंसी को दिए विशेष साक्षात्कार में जोर देते हुए कहा कि एनपीआर और एनआरसी एक दूसरे से नहीं जुड़े हुए हैं। अमित शाह ने ये भी दोहराया कि हाल ही में पीएम मोदी ने एनआरसी और डिटेन्शन कैंप के बारे में जो कहा, वह सही है। यहां तक कि एनपीआर और नागरिकता कानून का विरोध करने वालों पर भी शाह ने इस दौरान तीखा हमला किया।

सच्चाई ये है कि देश के गृह मंत्री और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बार-बार देश से झूठ बोल रहे हैं। और इस बात की पोल कोई और नहीं अमित शाह का गृह मंत्रालय और मोदी सरकार के मंत्री ही खोल रहे हैं। अमित शाह के सबसे बड़े झूठ की पोल उन्ही के मंत्रालय में रहे गृह राज्यमंत्री किरण रिज्जू के एक सवाल के दिए जवाब से खुल जाती है, जिसमें उन्होंने एनपीआर को एनआरआईसी की दिशा में पहला कदम बताया है। 26 नवंबर 2014 को संसद में दिए एक सवाल के जवाब में रिज्जू ने कहा था कि “एनपीआर भारत में रहने वाले स्वभाविक और अस्वाभाविक सभी तरह के बाशिंदों का एक रजिस्टर है। स्वाभाविक बाशिंदों की नागरिकता को सत्यापित कर तैयार किया जाने वाला एनपीआर, एनआरआईसी की दिशा में पहला कदम है।”

इसी तरह की बात तत्कालीन गृह राज्यमंत्री किरण रिज्जू ने ही 13 मई 2015 को संसद में एक सवाल के जवाब में दोहराया था। उन्होंने कहा था, “2004 में संशोधित किया गया नागरिकता अधिनियम-1955, केंद्र सरकार को अनिवार्य रूप से प्रत्येक नागरिक को पंजीकृत करने और उसे राष्ट्रीय पहचान पत्र जारी करने करने की क्षमता प्रदान करता है। यह निर्णय लिया गया है कि राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर (एनपीआर) को पूरा किया जाना चाहिए और इसे अपने तार्किक निष्कर्ष पर ले जाना चाहिए, जो कि है हर सामान्य निवासी की नागरिकता का सत्यापन कर एनपीआर और राष्ट्रीय पहचान पत्र जारी कर भारतीय नागरिकों का राष्ट्रीय रजिस्टर (एनआरआईसी) का निर्माण किया जाएगा।”

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दरअसल 31 जुलाई, 2019 को जारी गैजेट नोटिफिकेशन के साथ ही देश में एक नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटीजन्स (एनआऱसी) तैयार करने की प्रक्रिया शुरू है। नोटिफिकेशन में कहा गया है कि ‘सिटीजनशि‍प रूल्स-2003 (रजिस्ट्रेशन ऑफ सिटीजन्स ऐंड इश्यू ऑफ नेशनल आइडेंटिटी कार्ड्स) के नियम 3 के उपनियम 4 के तहत तय किया गया है कि असम के अलावा पूरे देश में घर-घर गणना के लिए फील्डवर्क के जरिये जनसंख्या रजिस्टर (पीआर) को तैयार और अपडेट किया जाए। दरअसल ‘सिटीजनशि‍प रूल्स 2003 (रजिस्ट्रेशन ऑफ सिटीजन्स ऐंड इश्यू ऑफ नेशनल आइडेंटिटी कार्ड्स) का नियम 3 नेशनल रजिस्टर फॉर इंडियन सिटीजन्स (एनआरआईसी) की बात करता है और इसका उप-नियम 4 नेशनल रजिस्टर ऑफ इंडियन सिटीजन्स तैयार करने की बात कहता है।

मोदी सरकार के मंत्री बार-बार कह रहें है कि राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर (एनपीआर) की प्रक्रिया सबसे पहले साल 2010-11 में यूपीए सरकार के समय शुरू की गई थी। लेकिन तथ्य यह है कि इसे कभी भी एनआरआईसी के मकसद से आगे नहीं बढ़ाया गया। उस समय शुरू हुए एनपीआर को 2015 में जाकर अपडेट किया गया, लेकिन यह कभी भी एनआरआईसी के स्तर तक नहीं पहुंचा। वहीं सच्चाई ये है कि साल 2003 में तत्कालीन वाजपेयी की एनडीए सरकार के दौरान सिटीजनशि‍प एक्ट 1955 में एक सिटीजनशि‍प (संशोधन) एक्ट-2003 (सीएए 2003) लाया गया और इसके द्वारा (a) ‘अवैध प्रवासी’ और (b) भारतीय नागरिकों का राष्ट्रीय रजिस्टर (एनआरआईसी) को इसमें शामिल किया गया।

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सबसे रोचक बात यह है कि जनसंख्या रजिस्टर का उल्लेख न तो ‘सिटीजनशिप एक्ट 1955’ में था और न ही 2003 के संशोधन में था। इसे साल 2003 रूल्स के द्वारा लाया गया था। इसी तथ्य के उजागर होने के बाद पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने राज्य में जनसंख्या रजिस्टर (एनपीआर) का काम रोक दिया था। अब पंजाब, केरल और दिल्ली जैसे कई राज्यों के मुख्यमंत्रियों ने भी एनपीआर और एनआरआईसी का विरोध किया है।

इसलिए पीएम मोदी और गृहमंत्री अमित शाह के लाख दावों के बावजूद यह भ्रम दूर हो जाना चाहिए कि देश भर में एनआरसी लाने की घोषणा अभी तक नहीं हुई है। इसमें केवल इतना अंतर है कि इसे एनआरआईसी कहा गया है और इसमें असम को बाहर रखा गया है। क्योंकि असम में एनआरसी की प्रक्रिया पहले से जारी है, जो 1985 में हुए असम समझौते के मुताबिक लागू किया गया है।

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