यमुना के किनारे बेघर लोग गुजार रहे हैं दिल्ली की सर्द रातें, रैन बसेरों में नहीं मिल रही जगह
दिल्ली के यमुना नदी के किनारे पुराने अखबारों को बिछा कर लेटे और एक शॉल से सर्दी से बचने की कोशिश कर रहे मजदूर ओमप्रकाश ने कहा कि मैं यहीं पर रात बिताने वाला हूं। हमें रैन बसेरों जगह नहीं मिलती।
उत्तरी दिल्ली के कश्मीरी गेट क्षेत्र में सर्द रात में दर्जनों प्रवासी मजदूर यमुना नदी के किनारे देर रात इकट्ठे होने लगे हैं। दिल्ली सरकार के कई रैन बसेरों में जगह बनाने में असफल रहे इन बेघर मजदूरों का सिविल लाइंस क्षेत्र में स्थित दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के आवास के पास राष्ट्रीय राजधानी के खुले आसमान वाले बसेरों में से एक में स्वागत है।
यमुना नदी के किनारे पुराने अखबारों को बिछा कर एक शॉल से सर्दी से बचने की कोशिश कर रहे एक मजदूर ओमप्रकाश ने कहा, “मैं यहीं पर रात बिताने वाला हूं। हम रोज नहीं जा पाते, इसलिए हमें रैन बसेरों में नहीं रहने दिया जाता।”
मूल रूप से बरेली के रहने वाला ओमप्रकाश बीमार भी है। उन्होंने बताया कि उन्हें सांस की बीमारी है और दाईं जांघ में घाव है। कोई विकल्प नहीं होने के कारण नदी किनारे खुले में रात बिताने के लिए हाथ में कम्बल और शॉल पकड़े कई अन्य लोग भी मिले।
यमुना के इस किनारे पर प्रवासी लोग जानवरों के अवशेषों के साथ रहने को मजबूर हैं। इसके साथ उन्हें यमुना से आती तीखी गंध की सौगात भी मिलती है।
बिहार के कटिहार निवासी राजू ने बताया, “रैन बसेरों में सोने के लिए बहुत कम जगह मिलती है और दिन भर मेहनत करने के बाद रात में इतनी कम जगह में आराम से लेटना असंभव हो जाता है।” उन्होंने रैन बसेरों में चोरी होने की भी शिकायत की।
राजू ने आगे कहा, “हमारी कमाई बहुत कम है। हम रैन बसेरों में सोने के दौरान अपनी मेहनत की कमाई को लापता होते नहीं देख सकते”
दरभंगा के लल्लन मंडल ने उनका समर्थन करते हुए कहा कि वह भी रैन बसेरों में रहना चाहते हैं लेकिन दिन भर कमाई करने के बाद जब वहां सोने जाते हैं तो उनके रुपये चोरी कर लिए जाते हैं।उन्होंने आगे कहा आज इसलिये कष्टों में रह रहे हैं ताकि भविष्य में हमारे बच्चों को यह सब नहीं झेलना पड़े।
कटिहार निवासी आलम खान ने बताया कि वह रिक्शा चलाते हैं। दिनभर रिक्शा चलाने के बाद जब वह रात में रैन बसेरे में गए तो उनके साथ गाली-गलौज की गई। वह इसलिये वहां न जाकर यहीं खुले आसमान के नीचे रहते हैं। उन्होंने रैन बसेरों के कर्मियों पर पक्षपात का आरोप लगाया। उन्होंने कहा कि वे ज्यादातर अपने लोगों को ही आने की अनुमति देते हैं, दूसरों के बारे में कुछ नहीं सोचते।
देखते ही देखते उस जगह पर लगभग 150 लोग आ गए। सभी इस खुले आसमान के नीचे खाली बची थोड़ी सी जमीन पर जल्द से जल्द ‘कब्जा’ करने के लिए लालायित दिखे।
दिल्ली सरकार के दिल्ली नगरीय आश्रय सुधार बोर्ड (डीयूएसआईबी) ने 15 दिसम्बर 2017 को ‘विंटर एक्शन प्लान’ की घोषणा करते समय कहा था कि दिल्ली में इस समय 251 रैन बसेरे हैं जिनमें 83 रैन बसेरे इमारतों में बने हैं, 113 रैन बसेरे अस्थाई केबिन में संचालित हैं, जबकि 55 अस्थाई रैन बसेरे टेंट में बनाए गए हैं।
बोर्ड यह दावा करता है कि रैन बसेरों में लगभग 20 हजार लोग रह सकते हैं और मात्र 10 हजार लोग इस समय उनका उपयोग कर रहे हैं। दिल्ली सरकार ने यह भी घोषणा की कि जनवरी खत्म होने से पहले रैन बसेरों में रह रहे लोगों को नाश्ते में चाय और रस्क दिया जाने लगेगा।
बोर्ड ने कहा कि बेघरों को रैन बसेरों में लाने के लिए 20 दल सक्रिय हैं और वे प्रतिदिन रात में गश्त करते हैं। बेघर लोगों की सूचना देने के लिए कोई भी नागरिक दिन के 24 घंटे हमारे कंट्रोल रूम में पर फोन कर सकता है, रैन बसेरा मोबाइल एप पर भी सूचना दे सकता है।
सरकार के प्रयासों के बावजूद हजारों लोग अभी भी दिल्ली की सड़कों पर रहने को मजबूर हैं। बोर्ड के 2014 में कराए एक सर्वे के अनुसार दिल्ली में 16000 बेघर लोग हैं, जबकि विभिन्न गैर सरकारी संगठनों (एनजीओ) के अनुमान के मुताबिक यह संख्या एक लाख तक या उससे भी ज्यादा हो सकती है।
एनजीओ सेंटर ऑफ होलिस्टिक डिपार्टमेंट के कार्यकारी निर्देशक सुनील कुमार अलेडिया ने कहा कि राष्ट्रीय शहरी जीवन अधिकार मिशन के मानकों के अनुसार रैन बसेरों में प्रति व्यक्ति कम से कम 50 वर्गफीट की जगह मिलनी चाहिए लेकिन दिल्ली में जगह की कमी के चलते लोगों को मात्रा 10 से 12 वर्गफीट जगह ही मिल पाती है। इसलिये ज्यादातर लोग क्षमता से अधिक भरे रैन बसेरों में नहीं रहना चाहते हैं।
सुनील कुमार अलेडिया के अनुसार इस बार सर्दी के मौसम में 1 दिसम्बर 2017 से 14 दिसम्बर 2017 के बीच लगभग 108 बेघर लोगों की मौत हो चुकी है। उनके अनुसार 2016, 2015 और 2014 के दिसम्बर महीने में क्रमश: 235, 251 और 279 लोगों की मौत हुई थी।
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