हाथरस कांड: पीड़िता की मां ने बताई चौंकाने वाली बातें, गांव में नहीं रहना चाहता परिवार
पीड़िता का भाई कहता है कि अब हम इस गांव में नहीं रहना चाहते। ऊंची जाति के लोगों ने हमसे बात करना बंद कर दिया है। यहां दलितों के अधिकतर परिवार वालों ने हमसे दूरी बना ली है।
काश बुखार बताने वाले थर्मामीटर की तरह हमारे पास भी कोई ऐसा मापक यंत्र होता जिससे हमें यह पता कर सकते कि बुलगढ़ी में प्रवेश से पहले ही हमें मिले लगभग 50 साल के उस व्यक्ति के अंदर आखिर चल क्या रहा था! पहले उसने अपना नाम 'महेंद्र' बताया ! 15 मिनट की बातचीत में उसने अपने नाम को रमेश कर दिया और उसके जाते -जाते पूछा तो ' विजय 'बता दिया।
खैर वो जो कहकर गया था वो बात हमारे दिमाग मे गूंज रही थी। यह उसी अपरिचित व्यक्ति ने हमें बताया था कि वो भी उसी बूलगढ़ी गांव का है। तीन बार नाम बदलने वाले इस व्यक्ति ने बस एक बात बिल्कुल साफ साफ़ कही! कि ना तो वो ठाकुर है और न दलित मगर लड़की के साथ बहुत बुरा हुआ। पूरा गांव जानता है यह 'लड़का' इस 'लड़की' के पीछे पड़ा था। 600 लोगों की आबादी वाले गांव में कोई बात किसी से छुपती नही है। यह लड़की स्मार्ट थी। पढ़ाई लिखाई और सुंदरता हर तरह से। वो इस पर 'कब्जा' करना चाहता था। लड़की पर अपना अधिकार समझता था। एक बार पंचायत भी हुई थी। वो मान ही नहीं रहा था।
लड़की ने विरोध किया तो उसे यह सबक सिखाया गया। तीन बार नाम बदलने वाले इस रहस्यमयी व्यक्ति की अगली बात ने हमें झकझोर के रख दिया। जब उसने कहा "वो इन्हें इंसान नहीं समझ रहे थे, समझते तो क्या ऐसा करते, इस मामले में न्याय होना बहुत जरूरी है सीबीआई की जांच एकदम सही है। यह सच पूरा गांव जानता है। आजकल जात पात न्याय से बड़ी हो गई है।"
अलीगढ़ से आगरा जाते समय चंदपा थाने से आधे किलोमीटर की दूर यह है गांव। बूलगढ़ी नाम वाले इस गांव को तो कलंकित नहीं कहा जा सकता, लेकिन इस गांव पर एक ऐसा कलंक जरूर लगा है जो कभी नहीं मिट सकेगा। यह कलंक एक लड़की की गैंगरेप के बाद की गई हत्या और उसके बाद रात के अंधेरे में संगीनों के साये में उसकी लाश को बिना उसके परिवार की मर्जी वालों के जलाए जाने पर लगा है। विपक्षी दलों से लेकर विदेशी साज़िश तक बताने वाले सत्ता के पैरोकार अब मुहं में दही जमाकर बैठ गए हैं। गांव में अज़ीब माहौल है। कहीं कोई चौपाल नहीं। कहीं चार आदमी नहीं। कोई हुक्का नहीं। ये पता चल जाये कि रिपोर्टर है तो घूरकर ऐसे देखते हैं जैसे खा जाएंगे !
गांव के कृष्णदत्त शर्मा (62) बताते हैं कि मनहूसियत का साया पड़ गया है। सारी दुनिया में शादियां हो रही है। हमारे गांव के चार रिश्ते टूट गए हैं। गांव पर कलंक लग गया है। पता नहीं अब यह पाप कब धुलेगा ! कृष्णदत्त सीबीआई की चार्जशीट पर कोई टिप्पणी नहीं करते जिसमें लड़की के साथ चार लोगों द्वारा गैंगरेप होने की बात कही जा रही है। वो कहते हैं, "गांव की बहुत बदनामी हो गई है, बहुत बुरा हुआ, नहीं होना चाहिए था, इस कलंक को धुलने में बहुत समय लगेगा।"
पूरा गांव छावनी बना पड़ा है। गांव में पहला घर मुख्य आरोपी संदीप का है। दुनिया छोड़ कर जा चुकी पीड़िता लड़की के घर अब रेत की बोरियां के पीछे मोर्चा संभाले कमांडो खड़े हैं। आधुनिक बंदूकों के साथ यहां 125 जवान तैनात हैं। आने वाले हर एक आगंतुक का रिकॉर्ड रजिस्टर में दर्ज हो रहा है। सीबीआई के चार्जशीट दाख़िल किए जाने के बाद यहां फिर से पत्रकारों की आवाजाही होने लगी है।
पीड़िता की मां और पिता को पत्रकारों से बात करने से तो कोई मनाही नहीं है, लेकिन उनके इर्दगिर्द पुलिस रहती है। एक पुलिस अधिकारी कहते हैं कि आप जो भी चाहे सवाल पूछ सकते हैं। हम बाधा नही हैं बल्कि इनकी सुरक्षा के लिए हैं।
पत्रकार के भेष कोई दूसरा न हो इसलिए हम सतर्क रहते हैं। पीड़िता की मां कुछ नहीं बोलती, पिता कहते हैं "अब तो सबको पता चल गया कि सच क्या है। हमारी लड़की तो अमर हो गई मगर हम जिंदा ही मर गए हैं, गरीब और दलित की बेटी की भी इज्जत होती है, हमारी इज्जत को रौंदा गया है, लेकिन हमें यकीन है कि हमारी बच्ची को इंसाफ मिलेगा और इन राक्षसों को फांसी होगी।"
पीड़िता का भाई कहता है कि अब हम इस गांव में नहीं रहना चाहते। ऊंची जाति के लोगों ने हमसे बात करना बंद कर दिया है। यहां दलितों के अधिकतर परिवार वालों ने हमसे दूरी बना ली है। वो हमसे बात करते हुए संकोच करते हैं। वाल्मीकि समाज के चार घर हैं। एक हमारा है, हम मजदूरी नहीं करने जा रहे। हमारी अपनी कोई जिंदगी नहीं रह गई है। हमने डीएम को हटाने की मांग की थी वो अब तक यहीं हैं। हमें नौकरी और आवास देने का वायदा किया गया था वो नहीं मिला है। सीबीआई की बजाय यह विवेचना यूपी पुलिस करती तो केस ही बदल देती या बंद कर देती। पीड़िता की मां कहती है "कल वो मेरे सपने में आई थी चारपाई पर बैठी हुई चाय पी रही थी"।
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Published: 21 Dec 2020, 11:18 AM