हरियाणा: लोकसभा चुनाव के बीच JJP में भगदड़, राज्य की सत्ता चलाती रही पार्टी के सामने वजूद का संकट
भाजपा के साथ सरकार में शामिल होना जेजेपी को मिले जनादेश के खिलाफ था। फिर तीन कृषि कानूनों के खिलाफ एक साल से अधिक चले किसानों के सबसे बड़े आंदोलन में जेजेपी भाजपा को पूरे समय डिफेंड करती रही।
हरियाणा में महज एक महीने पहले 12 मार्च तक जन नायक जनता पार्टी राज्य की सत्ता में भारतीय जनता पार्टी के साथ अहम भागीदार थी। पार्टी के चेहरे दुष्यंत चौटाला सरकार में डिप्टी-सीएम थे। पार्टी कोटे से एक कैबिनेट मंत्री और एक राज्य मंत्री था। 12 अप्रैल आते-आते महज 31 दिनों के अंदर ही 10 विधायकों वाली पार्टी में हालात इस कदर बिगड़ चुके हैं कि एक बाद एक पार्टी के दर्जन भर पदाधिकारियों ने इस्तीफा दे दिया है। इसमें विधायक भी शामिल हैं। कई और पार्टी छोड़ने की कतार में हैं। स्थिति यहां तक पहुंच गई है कि कौन पार्टी में है कौन नहीं है? इसको लेकर भी गंभीर सवाल हैं।
9 दिसंबर 2018 को हरियाणा के सियासी इतिहास में एक नई पार्टी का जन्म हुआ था, जिसका नाम जन नायक जनता पार्टी रखा गया। यह भी रोचक था कि देश के उप-प्रधानमंत्री रहे चौधरी देवी लाल के सपने पूरे करने के वादे के साथ बनाई गई इस पार्टी का गठन भी 1996 में देवी लाल की बनाई पार्टी हरियाणा लोक दल (राष्ट्रीय) का ही रूप इंडियन नेशनल लोकदल (इनेलो) को दो-फाड़ कर किया गया था। चौधरी देवी लाल की तीसरी पीढ़ी में विवाद के बाद अजय चौटाला के पुत्र दुष्यंत चौटाला और दिग्विजय चौटाला ने मुख्यतः इस पार्टी का गठन किया था। आज जन नायक जनता पार्टी के सामने गठन के महज साढ़े पांच साल बाद ही वजूद का संकट खड़ा हो गया है। एक ऐसे वक्त में जब सभी सियासी दल लोकसभा चुनाव के लिए अपने मोहरे सेट कर रहे हैं, जेजेपी में भगदड़ के हालात हैं। सबसे पहले प्रदेश अध्यक्ष निशान सिंह ने इस्तीफा दिया। उन्होंने कहा कि जजपा में मेरी भावनाओं का हनन किया गया। इसके बाद विधायक जोगीराम सिहाग ने भी इस्तीफा दे दिया। हालांकि, वह कह रहे हैं कि उन्होंने अभी सिर्फ पदों से इस्तीफा दिया है। वह पार्टी में बने हुए हैं। पार्टी की राष्ट्रीय महासचिव और नारनौल नगर परिषद की चेयरपर्सन कमलेश सैनी, प्रदेश महासचिव रेखा शाक्य, प्रदेश उपाध्यक्ष सुरेंद्र लेगा, प्रदेश महिला सचिव ममता कटारिया, भाजपा-जेजेपी गठबंधन के संयोजक रहे कप्तान मीनू बेनीवाल, ओम सिंह खोखरी, प्रदेश सचिव राजपाल राठी और पूर्व विधायक सतविंदर सिंह राणा ने भी पार्टी छोड़ दी है। विधायक जोगीराम सिहाग के साथ पहले से ही नाराज चल रहे 4 और विधायक रामकुमार गौतम, रामनिवास सुरजाखेड़ा, ईश्वर सिंह और एक महीने पहले तक कैबिनेट मंत्री रहे देबेंद्र बबली भी दूसरे दलों में रास्ते तलाश रहे हैं। बचे 5 विधायकों में रामकरण काला और अमरजीत ढांडा का मामला भी संदिग्ध है। इन दोनों विधायकों का स्पष्टीकरण आया है कि वह अभी जजपाई ही हैं। मतलब साफ है कि उनके सामने विकल्प खुले हैं। यह पूरा घटनाक्रम पिछले एक हफ्ते में हुआ है। इसके बाद जेजेपी के 10 में से सिर्फ 3 विधायक ही ऐसे बचे हैं, जिन्हें लेकर कोई संदेह नहीं है। इसमें खुद पूर्व डिप्टी सीएम दुष्यंत चौटाला, उनकी मां नैना चौटाला और परिवार के वफादर अनूप धानक हैं।
जेजेपी के लिए यह हालात बने क्यों?
जन नायक जनता पार्टी की एक के बाद एक की गई गलतियां उसके इस हाल में पहुंचने के लिए जिम्मेदार हैं। जेजेपी गठन के महज 10 महीने के अंदर ही हुए विधानसभा चुनाव में उसे 14.85 फीसदी वोट मिल गए और उसके 10 विधायक जीत कर आ गए। इस सफलता के लिए जेजेपी को किस्मत का धनी माना गया। इसमें कई विधायक ऐसे थे, जो दूसरे दलों के बागी थे। जेजेपी से अधिक जीत में उनके खुद के दमखम का योगदान माना गया था। जेजेपी का मुख्य वोट बैंक जाट था, जिसने भाजपा के खिलाफ उसे वोट दिया था। जेजेपी को हिसार, फतेहाबाद, जींद और भिवानी जिले में मिली सीटें जाट बाहुल्य हैं। भाजपा को यमुना पार भेजने के वादे के साथ जेजेपी ने विधानसभा चुनाव लड़ा था। लेकिन 90 सदस्यीय विधानसभा में महज 40 विधायक ही जीत पाई भाजपा को सत्ता की कुर्सी तक पहुंचाने के लिए जेजेपी उसकी बैशाखी बन गई। जेजेपी सरकार में शामिल हो गई और दुष्यंत चौटाला डिप्टी सीएम बन गए। भाजपा के साथ सरकार में शामिल होना जेजेपी को मिले जनादेश के खिलाफ था। फिर तीन कृषि कानूनों के खिलाफ एक साल से अधिक चले किसानों के सबसे बड़े आंदोलन में जेजेपी भाजपा को पूरे समय डिफेंड करती रही। किसानों के वोट से सत्ता में भागीदारी तक पहुंच गई जेजेपी किसानों को शहीद होते देखते रही। किसानों के बड़े नेता चौधरी देवी लाल की विरासत पर दावा करने वाली जेजेपी की यह भूमिका हरियाणा में किसी के भी गले नहीं उतरी। उसी वक्त जेजेपी की जमीन हरियाणा में दरक चुकी थी। जेजेपी को भी यह बखूबी मालूम था। नए रास्ते खोलने की जुगत में वह राजस्थान के विधानसभा चुनाव में कूद पड़ी। लेकिन राजस्थान में उसे नोटा को मिले 0.96 प्रतिशत से भी कम 0.14 फीसदी मत ही मिले। राजस्थान में हुई हालत के बाद उसकी रही सही प्रतिष्ठा को भी गहरी चोट पहुंची। इसके बाद भाजपा के साथ सम्मानजनक स्तर पर बात करने की स्थिति भी उसकी नहीं रही। इसी का नतीजा था कि लोकसभा चुनाव में भाजपा से हिसार और भिवानी-महेंद्रगढ़ सीट मांग रही जेजेपी को उसकी हैसियत बताते हुए भाजपा ने सत्ता के साथ गठबंधन से भी बाहर का रास्ता दिखा दिया। अब जेजेपी में हालात पार्टी के वजूद को बचाने की स्थिति तक पहुंच गए हैं।
भाजपा सीढ़ी की तरह इस्तेमाल कर लात मार देती है : अजय चौटाला
जन नायक जनता पार्टी के अध्यक्ष अजय चौटाला का सत्ता से बाहर किए जाने पर दर्द भी छलका है। उन्होंने कहा, 'मैं नहीं, भाजपा के सभी सहयोगी कहते हैं कि भाजपा सहयोगी को सीढ़ी के तौर पर उपयोग करती है और ऊपर चढ़ते ही सीढ़ी को लात मार देती है। उन्हें अभी भी इस बात की कसक है कि भाजपा ने लोकसभा चुनाव में उनके साथ गठबंधन नहीं किया। वह कह रहे हैं कि जेजेपी और भाजपा साथ में लोकसभा चुनाव लड़ते तो परिणाम बेहतर आते। पार्टी में भगदड़ के सवाल पर उनका कहना है कि किसी के आने-जाने से कोई फर्क नहीं पड़ता, लेकिन पार्टी में सन्नाटा कुछ और कहानी कह रहा है।
इनेलो में वापसी के सवाल पर अभय चौटाला ने गद्दार और कलंक कहा
पार्टी में मची भगदड़ के बीच अजय चौटाला ने बयान दिया है कि अगर ओमप्रकाश चौटाला बुलाएं तो कल चले जाएंगे। जिस दिन अलग हुए थे उस दिन भी यही कहा था कि एक दिन ऐसा आएगा कि ओपी चौटाला रि-थिंक करेंगे। यह माना जा रहा है कि अजय चौटाला ने यह बयान एक रणनीति के तौर पर दिया है। इसका मकसद पार्टी में मची भगदड़ को थामना है। कार्यकर्ताओं में उत्साह को बरकरार रखना है। लेकिन इनेलो के प्रधान महासचिव अभय चौटाला के जवाब से यह संभावनाएं भी फिलहाल खत्म हो गईं। अभय सिंह चौटाला ने पलटवार करते हुए कहा है कि कि अजय सिंह और उनके पूरे परिवार का असली चेहरा प्रदेश की जनता के सामने बेनकाब हो गया है। ये स्वर्गीय चौ. देवीलाल की नीतियों पर चलने की बात करते थे। लेकिन सत्ता हाथ में आते ही पूरे प्रदेश को लूटने में लग गए। ये चौ. देवीलाल के नाम पर कलंक हैं। इनेलो सुप्रीमो चौ. ओम प्रकाश चौटाला कई बार अनेक मंचों पर साफ कर चुके हैं कि ये इनेलो के गद्दार हैं और इन गद्दारों की इनेलो में कोई जगह नहीं है। अभय चौटाला ने कहा कि अजय सिंह और दुष्यंत पार्टी में मची भगदड़ से हताश और निराश हैं। जेजेपी में मची भगदड़ को रोकने के लिए जेजेपी और इनेलो को एक करने जैसे भ्रमित करने वाले बयान अजय सिंह दे रहे हैं। सच्चाई यह है कि ये अब सामाजिक और राजनीतिक तौर पर पूरी तरह से नकारे जा चुके हैं। इस जंग में इनेलो के नेता भी कूद पड़े हैं। इनेलो के प्रदेश अध्यक्ष रामपाल माजरा एक कदम और आगे चले गए। राम पाल माजरा ने सोशल मीडिया अकाउंट (X) पर जजपा के इस्तीफों पर तंज कसते हुए लिखा कि जजपा का राजनीतिक ही नहीं सामाजिक अंत भी तय है। गद्दारों की पार्टी में 4 लोग ही बचेंगे अब। 4 लोगों से उनका मतलब जेजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अजय चौटाला, नैना चौटाला, दुष्यंत चौटाला और दिग्विजय चौटाला यानी पूरे परिवार से है।
Google न्यूज़, नवजीवन फेसबुक पेज और नवजीवन ट्विटर हैंडल पर जुड़ें
प्रिय पाठकों हमारे टेलीग्राम (Telegram) चैनल से जुड़िए और पल-पल की ताज़ा खबरें पाइए, यहां क्लिक करें @navjivanindia