हरियाणा: किसानों को नहीं मिल रहा फसल का वाजिब दाम, मंडियों की अव्यवस्था से भी परेशान, पूर्व सीएम हुड्डा ने उठाए सवाल

कोरोना संकट से जूझ रहे हरियाणा में खेती-किसानी पर यहां के किसानों के भविष्य का ताना बाना टिका हुआ है। अंदेशे के मुताबिक 15 अप्रैल से शुरू हुई सरसों की खरीद सरकार की कागज पर बनाई गई व्यवस्था की भेंट चढ़ती नजर आ रही है।

फोटो: सोशल मीडिया
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धीरेंद्र अवस्थी

कोरोना संकट से जूझ रहे हरियाणा में खेती-किसानी पर यहां के किसानों के भविष्य का ताना बाना टिका हुआ है। अंदेशे के मुताबिक 15 अप्रैल से शुरू हुई सरसों की खरीद सरकार की कागज पर बनाई गई व्यवस्था की भेंट चढ़ती नजर आ रही है। सरकारी खरीद आरंभ होने से पहले ही मजबूरन अपनी काफी सरसों बाजार में कम रेट पर बेच कर लुट चुका किसान अब मंडियों की मुश्किलों से जूझ रहा है। पूर्व मुख्यमंत्री और नेता प्रतिपक्ष भूपिंदर सिंह हुड्डा ने सरसों ख़रीद के दौरान मंडियों में किसानों को हो रही परेशानियों को लेकर सरकार से सवाल किए हैं। उन्होंने कहा कि सरकार ने वादा किया था कि वह किसान की फसल का दाना-दाना खरीदेगी, लेकिन प्रदेश भर से ख़बरें आ रही हैं कि मंडियों में सरसों की ख़रीद सही तरीके से नहीं हो रही है। मंडी में अपनी सरसों लेकर पहुंचे किसानों से नमी के नाम पर पैसे काटे जा रहे हैं। उन्हें फसल का पूरा रेट नहीं दिया जा रहा। ख़रीद प्रक्रिया इतनी जटिल है कि वह किसानों के पल्ले ही नहीं पड़ रही है। फसल की ख़रीद एकसाथ करने की बजाय किसानों को बार-बार मंडियों में बुलाया जा रहा है। इससे किसानों का ट्रांसपोर्ट ख़र्च भी बढ़ता है और वक़्त की बर्बादी भी होती है। साथ ही लॉकडाउन के नियमों और सोशल डिस्टेंसिंग का पालन भी नहीं हो पाता।

तीन दिन में सरकार ने अनुमानित उत्पादन का लगभग 5% सरसों ही ख़रीदा है। अन्नदाता को डर है कि कहीं उनकी फसल बिकने से पहले ही 20 तारीख़ को मंडी में सरसों की ख़रीद बंद न हो जाए। फिलहाल जो व्यवस्था है, उसके हिसाब से पूरी फसल की ख़रीद हो पानी मुश्किल लगती है, क्योंकि टोकन के लिए ही किसान को घंटों लाइन में खड़ा होना पड़ रहा है। किसानों को एक दिन पहले मैसेज आता है कि कल अपनी सरसों मंडी में लेकर आएं। कई किसानों को देर रात 11-12 बजे मैसेज आता है कि उनकी फसल कल सुबह खरीदी जाएगी, इसलिए आनन-फ़ानन में किसान के लिए मंडी पहुंचना मुश्किल हो जाता है।


नेता प्रतिपक्ष ने सरकार से आग्रह करते हुए कहा है कि व्यवस्था को दुरुस्त करने के लिए ज़रूरी है कि सरकार आढ़तियों के साथ समन्वय बनाये। उनको हैंडलिंग एजेंट बनाया जाए। सरकार अपने वादे के मुताबिक किसान का दाना-दाना ख़रीदे। इसके लिए ख़रीद की तारीख़ को और बढ़ाया जाए। नमी के नाम पर किसान को परेशान करना बंद हो। बार-बार मंडी में बुलाने की बजाय एक बार में ही उसकी पूरी फसल ख़रीदी जाए। जो किसान पोर्टल पर रजिस्ट्रेशन नहीं करवा सके, उनके रजिस्ट्रेशन की प्रक्रिया भी मौक़े पर पूरी की जाए। हुड्डा ने कहा कि इन सुझावों को सिर्फ़ सरसों नहीं गेहूं ख़रीद के लिए भी अपनाया जाए।

क्योंकि सरसों की खरीद आख़िरी पड़ाव पर है और गेहूं की ख़रीद शुरू होने वाली है, लेकिन अब भी आढ़तियों और सरकार में विवाद जारी है। हुड्डा ने मांग की कि सरकार आढ़तियों से हुए समझौते के मुताबिक ख़रीद प्रक्रिया को आगे बढ़ाए। मुश्किल के इस दौर में ख़रीद से ठीक पहले नई प्रक्रिया और नये खाते खुलवाने की शर्त लगाना सही नहीं है। इससे विवाद बढ़ेगा, जिसका सीधा नुकसान किसान को होगा। सरकार सुनिश्चित करे कि मंडियों में किसान को कोई परेशानी ना हो।

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